81/84 महादेव :श्री पिंगलेश्वर महादेव मंदिर

By AV NEWS

देवा वश्याभविष्यन्तिस्वर्गस्तेषां न संशय:।

भविष्यतिचवशगानगरी चामरावती।।

धर्मोधनेनसहित: कुले तेषां न नश्यति।

पितृणामक्षया तृप्तिर्भविष्यति न संशय:।।

(अर्थात्- इस लिंग के दर्शन करने वाले पर देवता प्रसन्न होंगे तथा वह स्वर्ग प्राप्त करेगा। अमरावती नगरी उसके वश में रहेगी। उसके कुल में कभी धर्म का नाश नहीं होगा तथा उसके पितर अक्षय रूप से तृप्त रहेंगे।) यह मंदिर उज्जैन मक्सी मार्ग पर पंवासा-शंकरपुरा होकर सांची दूध प्लांट से आगे बाईं और मुड़कर जयगुरुदेव आश्रम के सामने पुन: बायें मुड़कर आता हैं।

यहां रेलवे क्रॉसिंग के बाद दायें मुड़कर ग्राम पिंगलेश्वर में यह मंदिर स्थित है जो पंचक्रोशी यात्रा का पहला और आखिरी पड़ाव भी है। इसका मुख्य प्रवेश द्वार उत्तरमुखी है जिसमें प्रवेश करने पर हमारे बायें इमली के विशाल वृक्ष के नीचे एक मंदिर में क्रमश: पशुपतिनाथ, सामने दीवार पर शिव-पार्वती, पार्वती व ध्यानस्थ शिव की प्राचीन काले पाषाण की मूर्तियां हैं। प्रांगण में हमारे दायीं ओर पीपल वृक्ष के नीचे 3 फीट ऊंची हनुमान्जी की सिंदूरचर्चित मूर्ति है।

इसके आगे बढ़कर 9 सीढिय़ां चढ़कर 6 प्राचीन स्तंभों का सभामंडप है जहां से पूर्वाभिमुखी 6 फीट ऊंची प्रवेश द्वार के भीतर 3 एक-एक फीट की बड़ी सीढिय़ां उतरकर करीब 70 वर्गफीट के गर्भगृह में आते हैं। यहां 4 फीट चौड़ी चौकोर पीतल की जलाधारी पर करीब डेढ़ फीट ऊंची पीतल की रैलिंग लगी है।

जलाधारी पर 2 शंख तथा सूर्य-चंद्र सहित एक बड़े आकार का नाग उत्कीर्णित है जो 3 फीट परिधि के सवा फीट ऊंचे काले पाषाण के भव्य लिंग को आवेष्ठित कर उस पर छाया किये हुए है, नाग का फण असामान्य चौड़ा है। हमारे बायें गर्भगृह की दीवार पर गणेश, मध्य में माला जपते हुये शिवजी तथा पार्वतीजी की मूर्तियां हैं, कार्तिकेय नहीं है। 1 फीट ऊंचे आसन पर बाहर काले पाषाण के प्राचीन नंदी विराजित हैं। यात्रियों के लिये बड़े सभागृह सहित अन्य विकास कार्य दिनांक 1 जुलाई 2013 के शिलालेख के अनुसार तत्कालीन अध्यक्ष, मप्र पर्यटन निगम डॉ. मोहन यादव द्वारा करवाये गये।

लिंग के माहात्म्य की कथा- पिंगलेश्वर वही गुहय-पवित्र-प्रलय में अविनाशी, अनन्यवत, असंख्य गुणयुक्त तथा भुक्ति व मुक्तिप्रद स्थान है जिसके संबंध में देवी पार्वती ने मंदराचल की पावन कंदरा में महादेव से जानना चाहा था। महादेव कहते हैं तब मैं तुम्हें साथ लेकर स्वर्ग से भी सुखप्रद रम्य महाकालवन लेकर आया, ऐसा महादेव देवी से कहते हैं। तदनंतर भगवान् ने पिंगलेश्वर की कथा सुनाते हुये कहा कि ब्राह्मण पिंगल की एक कन्या पिंगला थी। उसकी पत्नी पिंगाक्षी के मृत हो जाने पर ब्राह्मण बड़ा दु:खी था।

वह कन्या पिंगला के साथ तपोवन में चला गया तथा मातृहीना कन्या का पालन करते करते एक दिन मृत हो गया। पिंगला मातृ पितृ शोक से अत्यंत व्यथित होकर विह्वल हो गई। वह आत्महत्या का सोचने लगी, तभी ऋषिगण उसे सांत्वना देने लगे। इसी समय पर हितैषी धर्मदेव स्थविर ब्राह्मण का वेशधारण कर उसे बहुविधि सांत्वना देने लगे।

उसने कहा पूर्व में तुम एक सुन्दरी नारी वेश्या थी, नृत्य गीत तथा वीणावादन में निपुण। एक गुणी ब्राह्मण जिसने चार वर्ष तक तुम्हारे साथ रमण किया उसकी एक शूद्र ने तुम्हारे घर में हत्या कर दी। ब्राह्मण के माता-पिता ने पिंगला को पुत्र वियोग का कारण मानकर शाप दिया कि वह जन्मांतर तक पतिहीना होगी।

पिंगला ने ब्राह्मण वेशधारी धर्म से पूछा यदि मैं अधम थी तो मेरा जन्म ब्राह्मण के यहां कैसे हुआ। तब ब्राह्मण ने बताया कि तुमने विषयासक्त ब्राह्मण को राजा से मुक्त करवाने का पाप किया था तथा उसका पाप अपना मान लिया था। तुम उसके साथ रमण करने लगी थी। इस पुण्यफल से तुमने ब्राह्मण कुल में जन्म लिया। पिंगला ने कहा हे देव! आप कौन हैं तथा मुझे भवबंधन से मुक्त होने का उपाय बताएं। तब धर्म ने उसे महाकालवन भेजा जहां एक लिंग के दर्शन से पूर्वजन्म की पापिनी पिंगला ने मुक्ति लाभ किया। यह लिंग पिंगलेश्वर नाम से प्रसिद्ध हुआ।

फलश्रुति- जो मानव इस लिंग के दर्शन करेगा, उस पर इंद्र प्रसन्न होंगे तथा वह स्वर्ग प्राप्त करेगा। सहस्र अश्वमेध यज्ञ का फल उसे प्राप्त होगा।

लेखक – रमेश दीक्षित

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