नतस्यसन्ततिच्छेदोय: पश्यति दिनेदिने। नियमेन गणाध्यक्षजायतेब्रह्मणोदिनम।
(अर्थात- जो प्रतिदिन पुष्पदन्तेश्वर का दर्शन करेगा उसकी वंश परंपरा उच्छिन्न नहीं होगी।)
यह मन्दिर काका रामचंद्र रघुवंशी मार्ग पर पानदरीबा में पोस्ट ऑफिस की गली में घाटी पर चढ़कर दिखाई देता है। इसका मुख्य द्वार लोहे की चैनल का बना है जिसके अंदर जाते ही हमारे बाईं ओर श्यामवर्ण पाषाण की एक जलाधारी के मध्य लिंग स्थित है।
मात्र साढ़े चार फीट पूर्वाभिमुखी प्राचीन प्रस्तर स्तम्भों का प्रवेश द्वार है जिसके भीतर जाने पर करीब 5 फीट चौड़ी संगमरमर की चौकोर जलाधारी बनी हुई है जिसके मध्य करीब 4 फीट चौहद्दी (परिधि) का एक फीट ऊंचा दिव्य एवं वृहदाकार लिंग स्थापित है। यह लिंग ऊपर से चिपटा है केवल छोर हल्का-सा उतार लिए हैं।
महादेव के उज्जैन स्थित 84 लिगों में शायद एक-दो मंदिरों में ही इतने बड़े लिंग के दर्शन हुए हैं। गर्भगृह में सम्मुख पार्वती की तथा बाईं ओर गणेशजी की ढाई फीट ऊंची सिंदूरचर्चित दर्शनीय मूर्ति स्थापित है। फर्श व आधी दीवार पर संगमरमर जड़ा है, जबकि ऊपरी दीवार अति प्राचीन स्याह काले पत्थरों से निर्मित है। बाहर 9 इंच ऊंची आसंदी पर काले पाषाण के वाहन नंदी विराजित हैं। एकांत में होने से मंदिर असुरक्षित भी बताया गया।
लिंग के माहात्म्य की कथा- पूर्वकाल में शिनि नामक एक ब्राह्मण ने पुत्र प्राप्ति के लिये बाहु एवं पैर ऊध्र्व में करके बारह वर्षों तक घोर तप किया। उसके तप से पर्वत हिलने और पृथिवी कम्पित होने लगी, तब पार्वती ने महादेव से कहा आप ब्राह्मण को पुत्र क्यों नहीं दे रहे हैं? तब महादेव ने विप्र को पुत्र देने तथा पार्वती के गौरव के लिये गणों को बुलाया। देवाधिदेव ने उनसे ब्राह्मण का पुत्रत्व ग्रहण करने का पूछा, सभी अधोमुख हो गये। महादेव ने अप्रिय आचरण के लिए पुष्पदंत को शापित कर वीरक को ब्राह्मण पुत्र बनने का आदेश दिया।
उधर पुष्पदन्त रोने लगा। प्रभु की शरण में आकर उसने कहा हे देव! मैं अज्ञानी हूं, प्रणत तथा दीन हूं। भक्त और पुत्र समान होते हैं, मुझे क्षमा करिये। तब मैंने पुष्पदन्त को महाकाल वन जाकर तुम्हारे नाम से प्रख्यात होनेवाले लिंग की आराधना करने का कहा। लिंग दर्शन से तुम्हे अभिष्ट लाभ होगा। महादेव भी उसके साथ महाकाल वन आये। पुष्पदंत की आराधना से लिंग प्रसन्न हुआ तथा उसी का नाम ग्रहण कर लिया। महादेव ने पुष्पदंत का आलिंगन किया तथा उसे गोद में बैठाया।
फलश्रुति- मनुष्य यदि प्रात: पुष्पदन्तेश्वर लिंग का दर्शन करता है तो वह सब पापों से मुक्त होकर अश्वमेध यज्ञ फल का लाभ प्राप्त करता है। इस लिंग का प्रतिदिन दर्शन करनेवाला पृथिवी पर समस्त भोगोपभोग करके भूमंडल पर सार्वभौम राजा के रूप में जन्म लेगा।