गुरु का शिष्य जीवन में अधिक महत्व है। गुरु शिष्य के जीवन में वह व्यक्ति होता है, जो उन्हें अच्छी शिक्षा के साथ बहुत सी अन्य महत्वपूर्ण चीजों को सिखाता है। एक गुरु अपने विद्यार्थियों के लिए बहुत अधिक मायने रखता है। वह उनके जीवन में विकास की प्रारम्भिक अवस्था से हमारे परिपक्व होने तक बहुत अधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वह उन्हें और उनके भविष्य को देश के जिम्मेदार नागरिक बनाने की ओर मोड़ देते हैं
गुरु और शिष्य का अटूट संबंध
गु का अर्थ है अंधकार और रु का अर्थ है निकालने वाला ।जो अंधकार से निकालकर प्रकाश की ओर ले जाता है ,वही गुरु है ।जिसे हम विभिन्न नामों से जानते हैं ,शिक्षक ,आचार्य गुरु ,मास्टर ,टीचर आदि अनेक नाम हैं ।हमारे देश में गुरु-शिष्य की परंपरा रही है। भारतीय दर्शन यह बताता है कि गुरुओं का सम्मान माता पिता के समान ही शिष्य किया करते थे।
प्राचीन काल में अथवा पौराणिक कथाओं के माध्यम से हमें जानकारी मिलती है कि गुरु शिष्य संबंध कितने मधुर हुआ करते थे। गुरुओं का शिष्य सदैव सम्मान करते थे ,आदर करते थे और उनकी शिक्षाओं को अपने जीवन में उतारते थे।
गुरु शिष्य का सम्बन्ध (प्रेम) पवित्र व निस्वार्थ होता है। एक गुरु का अपने शिष्य के प्रति अगाध प्रेम होता है। वही शिष्य में अपने गुरू के प्रति पूर्ण श्रद्धा व समर्पण का भाव होना चाहिए। गुरु शिष्य का सम्बन्ध निस्वार्थ होना चाहिए। गुरु और शिष्य के बीच केवल शाब्दिक ज्ञान का ही आदान प्रदान नहीं होता था बल्कि गुरु अपने शिष्य के संरक्षक के रूप में भी कार्य करता था।
अतः गुरु कभी भी अपने शिष्य का अहित नहीं चाहता है। वह हमेशा अपने शिष्य का भला सोचता है। शिष्य का यही विश्वास गुरु के प्रति उसकी अगाध श्रद्धा और समर्पण का कारण रहा है।
जीवन में गुरु का महत्व
जिस तरह एक बच्चे की माँ उसकी प्रथम गुरु होती है जिसे वो खाना पीना, बोलना, चलना, आदि तौर तरीके सिखाती है। ठीक उसी तरह गुरु अपने शिष्य को जीवन जीने का तरीका बताता है। उसे सफलता के हर वो पहलु बताता है जो उसके लिए उपयुक्त हो। इस संसार सागर में सफलता पाने के लिए हर किसी को गुरु की आवश्यकता होती है। गुरु के बिना सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती है।
एक गुरु ही होता है जो निस्वार्थ भाव से अपने शिष्य को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। तभी तो गुरु शब्द में ”गु” का अर्थ अंधकार (अज्ञान) और ”रु” का अर्थ प्रकाश (ज्ञान) होता है। भारतीय संस्कृति में गुरु का बहुत महत्व है। इसीलिए गुरु को ‘ब्रह्मा-विष्णु-महेश’ कहा गया है तो कहीं ‘गोविन्द’।
प्राचीन समय से ही गुरु का सम्मान होता आ रहा है। गुरु को एक समाज सुधारक के रूप में देखा जाता है। अतः हर किसी को गुरु का सम्मान करना चाहिए। एक बच्चा जन्म से 5 वर्ष या 6 वर्ष तक अपनी माँ के पास रहता है जो उसकी प्रथम गुरु होती है। वह अपनी माँ से ही व्यवहार आचरण और बोलना व खाना पीना सीखता है।
इसके बाद जब वह 5-6 वर्ष का हो जाता है तब उसे एक ऐसे गुरु की आवश्यकता होती है जो उसके भविष्य का निर्माण कर सके। इसके लिए वह पाठशाला में प्रवेश लेता है।
इस दुनिया में ऐसा कोई इंसान नहीं है जो बिना गुरु के सफल हुआ हो। यदि डॉक्टर, वकील, इंजीनियर,समाज सेवक,ट्रेनर,सैनिक, आदि बनाना चाहते है तो इसके लिए आपको उसी क्षेत्र के एक गुरु की आवश्यकता होती है। यही गुरु आपको सफलता के द्वार तक लेकर जाता है।