पदाधिकारियों ने हार-जीत के दावे की बजाय रूको और देखो नीति अपनाई
उज्जैन। नगर जिला भाजपा द्वारा 17 जुलाई का इंतजार चुप्पी के साथ किया जा रहा है। अंदरखाने की खबर बताती है कि परिणाम आने तक रूको और देखो की नीति पर सभी पदाधिकारी एवं जनप्रतिनिधि चल रहे हैं। हार-जीत के दावे तो ठीक, पार्टी प्लेटफार्म पर वार्ड वार वोटों का विश्लेषण भी नहीं किया गया है, ऐसा सूत्रों का दावा है।
नगर जिला भाजपा ने इस बार का नगर निगम चुनाव बगैर किसी रणनीति के लड़ा। सूत्रों के अनुसार पार्टी के भीतर टिकटों को लेकर जिस प्रकार से दो फाड़ हुई, उसे लेकर सात वर्षो से काम कर रहे कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट गया। करीब दो माह पूर्व ही कुछ समर्थकों को उनके आकाओं ने हरी झण्डी दिखा दी थी कि तुम तैयारी करो, तुम्हारा टिकट पक्का समझो।
यह बात जब वार्डो तक गई तो अंदर ही अंदर मनमुटाव के हालात पैदा हो गए। इसका नतीजा करीब 17 सीटों पर देखने को मिलेगा, ऐसा वार्ड एवं मण्डल के कतिपय पदाधिकारियों का कहना है।
उनका आरोप है कि टिकट वितरण में प_ावाद हावी रहा। यही कारण है कि काम करनेवालों को घर बैठा दिया गया और जिन्होने कभी वार्ड की गली-नाली नहीं देखी, उन्हे टिकट दिया गया। परिणामों को लेकर कयास लगाया जा रहा है कि शायद ही बोर्ड बने।
कांग्रेस ने की थी संघ पद्धति से तैयारी
शहर जिला कांग्रेस तो इस चुनाव में पूरी तरह से कहीं दिखी नहीं क्योंकि उसके नेता जो कि अलग-अलग गुट से हैं, अपनों तक ही सिमटे रहे। लेकिन महापौर पद के प्रत्याशी महेश परमार ने पूरे चुनाव में अपनी अलग रणनीति पर काम किया। उनके नजदीकि सूत्रों का कहना है कि महेश परमार ने संघ पद्धति अपनाई और पूर्व से टिकट घोषित होने के चलते उन्होने मिले पर्याप्त समय का लाभ उठाया।
परमार ने तकरीबन सभी समाजों की अलग से बैठक ली तथा किसी बड़े नेता का मुंह ताकने की बजाय समाजों से समुह में चर्चा की। उनकी मांगों को सुना और समस्याओं को जाना। वादा किया कि वे जो भी मांगे हैं,उन्हे महापौर बनने के बाद पूरा करेंगे।
ऐसे में उनको दोहरा लाभ मिल सकता है। परमार समर्थकों के अनुसार पार्षद और महापौर,दोनों के लिए वोट मांगे। करीब 20 सीटें ऐसी है,जिन पर कांग्रेस पार्षदों की जीत तय है। इन सीटों से महेश परमार को सीधा लाभ होगा। वहीं शेष 15 सीटों पर कांगे्रस बढ़त ले चुकी थी। इसप्रकार दावा किया जा रहा है कि कांग्रेस 35 सीटों पर विजयी हो सकती है।
बोर्ड निर्भर करेगा… महापौर किस पार्टी का है?
कांग्रेस-भाजपा के चुनावी गणितों को आधार बनाया जाए तो पार्षदों की संख्या को लेकर दोनों दलों के अपने-अपने कयास है। लेकिन राजनीति के चाणक्यों का कहना है कि बोर्ड किस दल का बनेगा, यह निर्भर करेगा कि महापौर किस दल का जीतता है।
उदाहरण दिया कि जब कांग्रेस का महापौर जीतकर आया था तो पार्षदों की संख्या कम थी लेकिन निर्दलीय पार्षदों को एमआयसी में लाकर बोर्ड बना लिया गया था।
इस बार जिस दल का महापौर जीतकर आएगा, उसके हाथ में बाजी रहेगी। यदि उसकी पार्टी के पार्षद कम आए और निर्दलीय 4 या 5 जीतकर आए गए तो महापौर उन निर्दलीयों को अपने पाले में करके बोर्ड बना सकता है। यह दाव दोनो पार्टियों के लिए बराबरी का होगा। ऐसे में वार्डो से हटकर महापौर कौन बनेगा, इस पर सभी की नजरें टिकी हुई है।