शंकर जी का बेटा गाड़ी में बैठा…’ क्या इस तरह के मर्यादाहीन गीतों से होगी हमारे आराध्य देव की पूजा ?

ऐसे रॉक गाने और डीजे कब तक संस्कृति और परंपराओं का बनाते रहेंगे मखौल…
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उज्जैन। दो साल से प्रतिबंध के बाद इस वर्ष गणेशोत्सव को लेकर जोश,उत्साह और उमंग स्वाभाविक है। लेकिन कल कुछ जगहों पर जो देखने और सुनने को मिला वह हमारी सनातन धार्मिक प्रक्रिया और परम्पराओं के बिलकुल विपरीत लगा। प्रथम पूज्यनीय देवता गजानंद जी के स्थापना दिवस पर शहर में हर किसी के मन में यह सवाल था,कि आखिर हम किस दिशा में जा रहे है। यह कैसी आस्था जिसमें हमारे आराध्य देव गणपति जी के ऊपर बने रॉक और पॉप गीतों द्वारा संस्कृति-परंपराओं का मखौल उड़ाया गया है।
गणेश चतुर्थी पर शहर में अनेक मंडल-संस्थान वाहनों पर भगवान गणेशजी की मूर्तियों को लेकर निकले। डीजे पर भजन या धार्मिक गीत की बजाए गणेश जी पर बने पॉप और मिक्सिंग सॉन्ग संस्कृति और परंपराओं का मजाक बना रहे थे। ‘शंकर का बेटा गाड़ी में बैठा’ जैसे गीतों पर युवा झुम रहे थे। यह भगवान, देवी-देवताओं और धर्म की गरिमा के विपरीत था। इस स्थिति का कथित तौर पर उन्हें की आनंद मिल रहा था जो चल समारोह में शामिल थे। शेष जिन भी लोगों ने वह गीत सुने वे मन ही मन दुखी थे।
धर्म का मजाक बनाने वाले गीतों को बंद करना किसके जिम्मे है पता नहीं, लेकिन इसे रोकने के लिए आमजनों को ही पहल करना होगी। गणेश स्थापना व विसर्जन की शोभायात्राओं को बेहूदा गीतों से दूर रखने के कदम उठाने होगें। यह समझना होगा कि गणेशोत्सव केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है अपितु इसका सामाजिक और राष्ट्रीय महत्व भी है। ऐसे में हम सभी का दायित्व बनता है कि हम इस उत्सव को धार्मिक, प्राचनी मान्यताओं को कायम रखने की दिशा में एक शस्त्र की तरह उपयोग करें। आज आवश्यकता इस बात की है कि इस उत्सव के माध्यम से सनातन परम प्रयोगवादी, प्रगतिवादी व परम प्रासंगिक रहने के सारस्वत भाव की प्राण प्रतिष्ठा की जाए।









