वेद तो नारी को पृथ्वी की सम्राज्ञी बनने का अधिकार देते हैं

By AV NEWS

वेदमर्मज्ञ अपर्णा शुक्ल ने डॉ. सुमन स्मृति अभा सद्भावना व्याख्यानमाला में कहा

उज्जैन। सृष्टि के नियमों को जानने के लिए वेद नियमों का प्रादुर्भाव हुआ है। वेदों का अर्थ सिर्फ कर्मकांड तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह तो मानवमात्र के कल्याण के लिए दिया गया एक ईश्वरीय ज्ञान है। वेदों में नारी को यज्ञ के समान पूजनीय माना गया है। वेद तो नारी को पृथ्वी की सम्राज्ञी तक बनने का अधिकार देते हैं।

आज नारी पर जिस प्रकार अत्याचार हो रहे हैं और उसका शोषण हो रहा है, ऐसा लगता है कि हम वेदों से दूर होते जा रहे हैं। जो लोग घर की चेतन माता की उपेक्षा करते हैं और फिर मंदिरों में जाकर देवी मां की पूजा का दिखावा करते हैं उन्होंने वेदों को सच्चे अर्थों में समझा ही नहीं है।

वेदों के वास्तविक संदेश और शिक्षा की आवश्यकता है। उक्त विचार वेद मर्मज्ञ एवं समाज सेविका अपर्णा शुक्ल ने भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा आयोजित पद्मभूषण डॉ. शिवमंगल सिंह सुमन स्मृति अभा सद्भावना व्याख्यानमाला के तृतीय दिवस पर प्रमुख वक्ता के रूप में व्यक्त किए। शुक्ल ने वैदिक विचारधारा में नारी विषय पर अपनी बात रखते हुए कहा कि वेदों में स्त्री को ज्ञानवान, कर्तव्यवान, अहिंसा, प्रेम और ममता की प्रतिमूर्ति के रूप में दर्शाया गया है।

नारी भूमि के समान क्षमाशील है। व्याख्यानमाला का आरंभ संस्थाध्यक्ष श्रीकृष्णमंगल सिंह कुलश्रेष्ठ द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ हुआ। संचालन प्राचार्य डॉ. नीलम महाडिक ने किया। डॉ. केशवमणि शर्मा, राजेंद्र नागर निरंतर, संजय कुलकर्णी, सुधीर श्रीवास्तव, डॉ. रामसेवक सोनी, मोहन नागर, सीताराम परमार आदि उपस्थित थे।

गृहस्थ आश्रम की धुरी नारी है

समारोह की अध्यक्षता करते हुए वेद मर्मज्ञ और शिक्षाविद आचार्य देवकरण शर्मा ने कहा कि जहां-जहां नारी की पूजा होती है वहां-वहां देवता निवास करते हैं। वेदों में नारी को सृष्टि का समान भाग कहा गया है। गृहस्थ आश्रम की धुरी नारी है। नारी परिवार बनाती है, फिर समाज बनाती है और इसी क्रम में राष्ट्र का निर्माण करती है। अन्य संस्कृतियों के आक्रमण जब भारत पर हुए तब नारी की तत्कालीन रक्षा करने के लिए कुछ आपात धर्म अपना लिए गए। बाल विवाह, पर्दा प्रथा जैसी कुरीतियां इसी के परिणाम है।

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