Advertisement

कांग्रेस में बाहुबलियों का आना दुर्भाग्यजनक रहा – सत्यनारायण पंवार

कांग्रेस आज-कल

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

Advertisement

ललित ज्वेल. उज्जैन:पूर्व सांसद एवं सेवादल के मूल कार्यकर्ता सत्यनारायण पंवार ने अक्षरविश्व से चर्चा में कांग्रेस की आज की स्थिति एवं ऐतिहासिक विरासत को लेकर सधी हुई टिप्पणी की- उन्होने कहाकि कांग्रेस में बाहुबलियों का आना दुर्भाग्यजनक रहा। एक समय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू एवं लालबहादुर शास्त्री बगैर सुरक्षा के भीड़ में घुसकर आम आदमी से रूबरू हुआ करते थे। बाद के दिनों में कांग्रेस के नेता और मंत्री अनजान भय से डरने लगे और कार्यकर्ताओं की जगह बाहुबलियों को अपने साथ में रखना शुरू कर दिया।

श्री पंवार अपनी बात जारी रखते हुए कहते हैं-जब नेताओं को लगा कि वे गलती पर हैं तो जनता के बीच जाने में उन्हे डर लगने लगा। चुनाव जीतने में मुश्किल आने का अंदेशा उन्हे होने लगा। तब उन्होने बाहुबलियों का साथ चुनाव जीतने में लिया।

Advertisement

समय आगे बढ़ा और बाहुबलियों को लगने लगा कि जब वे चुनाव जीतवा सकते हैं तो स्वयं क्यों नहीं लड़ सकते……? बस, यहीं पर चूक की उस समय के वरिष्ठ नेताओं ने। सत्ता काबिज रहें, इस सोच के साथ क्षैत्रिय नेताओं के दबाव में आ गए। फिर बाहुबलियों को भी टिकट मिलने लगे। कुछ बाहुबली चुनाव जीत गए तो सभी को चस्का लग गया। इसकी पूर्ति कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने की। इसप्रकार से

बाहुबलियों का चुनाव लडना,जीतना और समाज पर एक नई हुकूमत लादने का काम चल पड़ा। जनता के मन में कांग्रेस की ऐसी नीतियों को लेकर भय पैदा हुआ वहीं शोषित हो रहे लोगों के मन में बदलाव की भावना आने लगी। इसमें दो पीढिय़ां खप गई। तीसरी पीढ़ी ने बदलाव को हाथों हाथ लिया,जो आज हम देख रहे हैं।

Advertisement

अब भाजपा में भी वही सब गुण समा गए
श्री पंवार ने दावा किया और कहा-ऐसा नहीं है कि आज जो चल रहा है वह बहुत कुछ अच्छा है। आज भाजपा में भी वे सभी गुण समा गए हैं जिसके कारण कांग्रेस में लोकतांत्रिक संस्कृति का विकृत स्वरूप सामने आया। आज भाजपा में और अन्य दलों में भी बाहुबलियों का उतना ही बोलबाला है जितना कांग्रेस में रहा। आज भाजपा में भी राजनीतिक लाभ को लेकर बंदरबांट देखने को मिल रही है।

ऐसे में यह कहा जा सकता है कि जो इतिहास कांग्रेस के साथ घटित हो गया,वह इतिहास स्वयं को अभी और आनेवाले समय में भाजपा के साथ दोहराएगा। लेकिन यह वह वक्त होगा,जब कांग्रेस अपने पैरों पर पुरानी गलतियों की धूल झाड़कर खड़्ी हो चुकी होगी। फिर से एक नया दौर आएगा।

अब नेताओं को समझ में आ गया है कि जमीन से जुड़कर ही आम आदमी को अपने विश्वास में लिया जा सकता है। राहुल गांधी द्वारा शुरू की गई भारत जोड़ो यात्रा इसका एक उदाहरण है। इस यात्रा का देशभर में प्रभाव पड़ा। आज परिणाम शतप्रतिशत नहीं दिख रहे लेकिन बीज पड़ गए। अंकुरित होना शुरू हो गए। कांग्रेस में नई पौध फिर से लहलहाएगी,यह मानकर चलें।

गांधी विचारधारा ने बनाया कांग्रेस में प्रवेश का रास्ता
अपने जीवन के 80वें वर्ष को शिघ्र ही पूर्ण करनेवाले श्री पंवार से जब यह पूछा गया कि आपने क्या सोचकर कांग्रेस को ज्वाईन किया था? आज ऐसे हालात होंगे,क्या इसकी कल्पना थी? श्री पंवार ने जवाब दिया- जन्म आजादी के पहले हुआ। गुलामी के समय बहुत छोटे थे। जब समझने लगे तो घर में ही परिजनों से आजादी के आंदोलन के बारे में सुना। गांधीजी ने अहिंसात्मक लड़ाई लड़कर आजादी दिलवाई,यह भी जाना। गरीबी थी,परिवार के सभी सदस्य काम करते थे तब घर चलता था। कुशलपुरा में निवास था।

वहीं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अमृतलाल अमृत (ज्वेल) का निवास था। उनके सम्पर्क में आए। वे आजादी के बाद मौहल्ला सुधार कमेटी चलाते थे। उनके घर पर आजादी के पूर्व से संचालित अमृत वाचनालय था,जहां शहरभर के लोग क्रांतिकारी और गांधीवादी साहित्य का अध्ययन करने आते थे। बाद में गांधी स्वाध्याय केंद्र भी यहीं संचालित हुआ। यहां पर उचित मानदेय पर श्री अमृत ने नौकरी पर रख लिया।

स्कूल जाते,घर का काम करते और गांधी स्वाध्याय केंद्र पर बैठते। पुस्तकें पढऩे आनेवालों को पुस्तक देना और रखरखाव करना मुख्य काम था। फ्री समय में गांधी साहित्य पढ़ते। महादेवभाई देसाई की डायरियां पढ़ते,जिसमें गांधीजी के जीवन वृत्त का एक-एक पल शामिल था। श्री अमृत के साथ सर्वोदय एवं अखिल भारतीय नशाबंदी परिषद के सम्मेलनों में जाते। वहीं से गांधीवाद जीवन में उतरा,जिसने सेवा को धर्म मानना सिखया। मात्र 18 वर्ष की आयु में कांग्रेस सेवादल ज्वाईन कर लिया। सेवादल कांग्रेस का प्रकल्प था,जो सेवाकार्यो में लगा रहता था।

ऐसे मिली टिकट….. श्री पंवार बताते हैं कि पद की कभी अपेक्षा नहीं की। मिटिंगों में दरी बिछाते और समाप्त होने पर दरियों की घड़ी करते। यह वह काम था,जो सभी नहीं करते थे। इंदिराजी की शहादत के बाद राजीवजी प्रधानमंत्री बने। चुनाव आए और उन्हे टिकट मिल गया। उस समय मीडिया की पंच लाइन थी….कांग्रेस ने दरी बिछानेवाले कार्यकर्ता को दिया लोकसभा का टिकट…….।

Related Articles