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उपभोक्ता आयोग ने SBI को दिए निर्देश, ब्याज सहित रु. लौटाए

13 साल बाद ग्राहक जीता केस: रसीद दी लेकिन खाते में रुपए नहीं डाले

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अक्षरविश्व न्यूज . इंदौर:पिता ने बेटी का भविष्य सुरक्षित रखने के लिए समृद्धि योजना में पैसा जमा कराया, बैंक ने उसकी रसीद भी दी। 4 साल बाद जब पॉलिसी मैच्योर हुई तो पिता बैंक में पैसा निकालने आए। लेकिन बैंक ने ऐसा कोई अकाउंट होने से ही साफ मना कर दिया। पिता ने इसके खिलाफ 13 साल तक केस लड़ा।

अब उपभोक्ता आयोग ने पिता के पक्ष में फैसला दिया है। बैंक को ब्याज सहित पूरा पैसा लौटाने के निर्देश दिए। 40 हजार के बदले करीब 58 हजार रुपए देने होंगे। 25 हजार रुपए क्षतिपूर्ति और 10 हजार रु. केस व्यय अलग से देना होगा।आयोग ने यह भी माना कि तत्कालीन कैशियर ने रुपए हड़प लिए, इसके बावजूद बैंक उसी का बचाव करती रही। बैंक ने साख बचाने के लिए मामले को मुकदमेबाजी में भी उलझाया।

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मामला इंदौर के इंदौर के न्यायमित्र शर्मा (50) का है। उन्होंने बेटी के समृद्धि योजना में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में 40-40 हजार रुपए की तीन स्नष्ठ कराई थी। दो स्नष्ठ के 40-40 हजार रुपए अपने अकाउंट से ट्रांसफर किए। तीसरी एफडी के 40 हजार रुपए नकद दिए थे। रसीदें और तीन जमा प्रमाण पत्र भी प्राप्त किए। मैच्योरिटी डेट मार्च 2011 को जब बैंक से रुपए मांगे तो कहा गया कि आपकी दो ही रसीदें सही है, तीसरी गलती से जारी हुई थी। उसके पैसे नहीं मिलेंगे क्योंकि तब आपने केवल दो के ही रुपए जमा कराए थे, तीसरे के नहीं। यानी बैंक ने कहा कि जो 40 हजार रुपए नकद दिए थे, वो तब दिए ही नहीं गए थे।

रसीद से सिग्नेचर ही मिटा दिए थे

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जवाब में न्यायमित्र शर्मा ने ओरिजनल रसीद की फोटोकॉपी पेश कर दी, जो उन्होंने कराई थी। इसमें बैंक के अधिकृत व्यक्ति के साइन के साथ ही बैंक की ओर से लगने वाली तारीख की सील भी थी। उन्होंने बताया कि गलती छुपाने के लिए बैंक ने व्हाइटनर लगाकर या और किसी तरह से साइन हटाकर, पेश किया था जिसका सच सामने है।

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