ईश्वर करे अब किसी का गला न कटे, लोग याद रखेंगे कलेक्टर और एसपी को

नि रीह और बेगुनाह लोगों का गला काट कर मौत की नींद सुलाने वाली चायना डोर पर एक बार फिर सुर्खियों में है। कलेक्टर नीरज कुमार सिंह ने इसके दुष्प्रभाव को देखते हुए प्रतिबंध लगाया है। उन माता-पिताओं में खुशी की लहर दौड़ी है जिनके बच्चों को इसने लहूलुहान किया है। कोई साल ऐसा नहीं जाता है कि जब इसने खून न बहाया हो। खून की प्यासी यह डोर आनंद देने के लिए आई थी, लेकिन इसकी चाल ने इसे कातिल बना दिया। यह जहां भी गई लाल होती गई। लाल होना इसकी फितरत है। यह लाल होकर लालों का शिकार करती है। आंकड़े गवाही देते हैं, बताते हैं कि कितने लाल समय से पहले काल का ग्रास बन गए। जीरो पाईंट की वह घटना हमारा शहर भला कैसे भूल सकता है।

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आईपीएस बनने का सपना संजोए आंजना परिवार की बिटिया नेहा पिता अंतर सिंह आंजना स्कूटी पर सवार होकर जीरो पाइंट ब्रिज से कॉलेज जा रही थी। आसमान में पेंच लड़ाए जा रहे थे। एक पतंग कटी और जमीन पर आ गिरी। इधर चायना डोर मस्ताती हुई ब्रिज की ओर से पार हुई। उसने नेहा को अपनी चपेट में ले लिया। सीधा गले पर वार था। गले की नस कट गई। खून का फव्वारा फूट पड़ा। कटी हुई पतंग की तरह वह भी जमीन पर गिरी और तड़पने लगी। कपड़े खून से लथपथ, स्कूटी खून से तरबतर, जमीन पर खून। वह तड़पने लगी। देखने वालों का कलेजा कांप गया। गले की नस बुरी तरह कट गई थी। खून रुक नहीं रहा था। लोगों ने उसे अस्पताल भी भिजवाया। डॉक्टरों ने हाथ टेक दिए। अधिक मात्रा में खून बहने की वजह से वह इस दुनिया से चली गई। सोचिए, आंजना परिवार पर क्या बीती होगी।

नीचे पतंग उड़ाने वाले इस बात से गाफिल थे कि उनकी डोर ने किसी के परिवार का दीप बुझा दिया है। नेहा उस परिवार का दीपक ही थी। वह प्रतिभावान छात्रा पुलिस अधिकारी बनना चाहती थी, परिवार को रोता-बिलखता छोड़ गई। शहर में चायना डोर की खूब भत्र्सना हुई। फिर क्या हुआ। लोग भूल गए। लोगों को भूल जाने की आदत है। वक्त बदला, तारीख बदली, साल बदला और फिर संक्राति आई। चायना डोर फिर आ गई। बिकी और खूब बिकी।

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प्रतिबंध रस्म अदायगी बन गया। माता-पिता परेशान रहे। करें तो क्या करें। सामने ही डोर बिक रही है शिकायत कैसे करें? दुश्मनी कौन मोल ले। इसी लिहाज और भय ने चायना डोर को संरक्षण दे दिया। कतिपय पतंग बेचने वाले मौत के सौदागरों ने परहेज नहीं किया। चोरी-छुपे डोर बेची और बचने के साधन भी बना दिए। नाइलोन के अंगूठे और अंगुलियां बनाई। यह भी खूब बिके। भरोसा दिलाया गया कि इससे अंगुली नहीं कटेगी। लेकिन चायना डोर कहां मानने वाली थी। उसने इन अंगुलियों को भी काट दिया। इस बार उम्मीद जागी है। कलेक्टर सख्त मूड में हैं। अब बारी पुलिस की है।

पुलिस अधीक्षक प्रदीप शर्मा का मौका मुआयना वाला पंच लोगों को रास आ रहा है। यदि चायना डोर बेचने वालों का मौका मुआयना हो जाए तो कुछ हद तक रोक लग सकती है। पुलिस को अपना तंत्र मजबूत करना पड़ेगा। मुखबिर तैयार करना होंगे। कोई बड़ी बात नहीं है कि एक सप्ताह में रिजल्ट आ जाए। पुलिस को पतंगबाज बनना होगा। ग्राहक बनना होगा। वहां तक पहुंचना होगा जहां से डोर आती है। एक सौदागर हाथ आया तो पूरा गिरोह सामने आ जाएगा। इंदौर चायना डोर का हब है। यह बैंगलुरू और गुजरात में बनती है। चायना सिर्फ नाम है। उम्मीद करें कि इस बार कलेक्टर के मार्गदर्शन और एसपी के नेतृत्व में इनकी टीम कोई बड़ा काम करे और बच्चों को चायना डोर से बचा ले। यदि ऐसा होता है तो हजारों लोगों की दुआएं इन दोनों अधिकारियों को लगेगी।

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