मनमानी का राज, मक्सी रोड की सब्जी मंडी जिसने जहां चाहा वहां अतिक्रमण कर लिया

1999 में बसी थी सब्जी मंडी

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अक्षरविश्व न्यूजउज्जैन। मक्सी रोड की सब्जी मंडी को आदर्श सब्जी मंडी का दर्जा दिया गया। अब यह मंडी मनमानी की मंडी हो गई है। कोई रोकने, देखने और टोकने वाला नहीं है। आप चाहें तो किसी भी स्थान को घेर लें और अतिक्रमण कर लें। नियम, कानून-कायदे की कहीं दुहाई दी जाती होगी, लेकिन यहां कानून-कायदे नहीं चलते।

नगर निगम की लापरवाही के कारण लोगों का शह मिल रही है। निगम के किसी भी बड़े अधिकारी ने यहां आकर नहीं देखा कि मंडी कैसी चल रही है। लोगों से बात नहीं की। लोग भरे बैठे हैं। वे निगम के अधिकारियों तक अपनी बात पहुंचाना चाहते हैं।

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मक्सी रोड सब्जी मंडी नगर निगम ने इसलिए बनाई थी, क्योंकि शहर का विस्तार हो रहा था। यह मंडी पहले फ्र्री गंज में लगती थी। इस वजह से क्षेत्र में गंदगी और कानून व्यवस्था का सवाल भी खड़ा हो गया था। फ्री गंज के व्यापारियों ने मांग की थी कि यहां से सब्जी विक्रेताओं को हटाया जाए। इस मुद्दे को लेकर व्यापारी और सब्जी विक्रेता कई बार आमने-सामने हुए। तत्कालीन जनप्रतिनिधियों ने भी माना कि सब्जी मंडी से फ्री गंज का सौंदर्य प्रभावित हो रहा है। इस बात को ध्यान में रखते हुए नगर निगम ने सब्जी मंडी का निर्माण किया।

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अतिक्रमण की भरमार से सब हैं परेशान

सब्जी मंडी में गजब का अतिक्रमण है। कई बाहरी लोगों ने आकर यहां डेरा जमा लिया है। जो अधिकृत सब्जी बेचने वाले हैं, वे भी इन अतिक्रमण करने वालों से परेशान हैं। दिक्कत यह है कि वे बोल नहीं पाते, लिहाज के कारण शिकायत नहीं कर पाते। यदि उनसे बात की जाए तो वे भी अपनी परेशानी बताएंगे।

कोई नहीं बैठता चबूतरे पर

सब्जी विक्रेताओं को बैठने के लिए चबूतरे अलॉट किए गए थे। सभी को इसके नंबर भी दिए गए। कुछ महीनों तक व्यवस्था बहुत बढ़िया चली। नगर निगम आयुक्त अपने मातहतों को भेजते थे। वे देखते थे कि मंडी कैसी चल रही है। व्यापारी भी खुश थे। उन्हें पहले आशंका थी कि यहां कोई सब्जी खरीदने नहीं आएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। मक्सी रोड जाना लोगों की आदत में आ गया। सब्जी मंडी चल निकली, लेकिन अब हालात बदतर हो गए हैं। चबूतरे या तो खाली पड़े हैं, या उन्हें गोदाम बना दिया गया है। नीचे बैठ कर सब्जी बेची जा रही है। दोनों तरफ बैठ जाने से आने-जाने वालों को दिक्कत आती है।

निगम आयुक्त नहीं आएंगे, कलेक्टर आ सकते हैं

सब्जी मंडी को लेकर शर्त भी लगाई जाने लगी है। यहां प्रतिदिन आने वाले लोगों का कहना है इस सब्जी मंडी की बदइंतजामी को सुधारने के लिए निगम आयुक्त आशीष पाठक नहीं आएंगे। उनका कहना है कि कलेक्टर नीरज कुमार सिंह सीएम डॉ. मोहन यादव की राह पर चल रहे हैं। सीएम चाहते हैं कि इस शहर का विकास हो।

शहर सुंदर हो। सौंदर्यीकरण को बढ़ावा दिया जाए। इसीलिए वे कई योजनाएं ला रहे हैं। कलेक्टर सीएम के नक्शे कदम पर चल कर योजनाओं को अंजाम देने में जुटे हैं। वे शहर में नजर आते हैं। कार्रवाई करने में देरी नहीं करते। इसलिए हो सकता है कि कलेक्टर सब्जी मंडी में आएं और अपने मातहतों को निर्देश दें। (जिन्होंनेे कहा, जयप्रकाश वर्मा, आनंद सिंह सिंकरवार, मोहन सिंह सेंगर, जय सिंह तोमर, अनिल पांचाल, रामतीर्थ शर्मा, साबिर हुसैन, विजय ठाकुर, संतोष शर्मा, उदय पंड्या)

चौहान और शर्मा की दबंगता रंग लाई थी

नगर निगम ने सब्जी मंडी का निर्माण तो कर दिया लेकिन सब्जी विक्रेताओं में जागृति आ गई। कई गुटों में बंटे सब्जी वाले सभी एक हो गए। नगर निगम का विरोध शुरू हो गया। कोई यहां से जाने को तैयार नहीं हुआ। उस समय नगर निगम के आयुक्त एसएन सिंह चौहान थे। वे दबंग आयुक्त के रूप में जाने जाते थे।

उनकी गाड़ी में चार बाउंसर हमेशा रहते थे जो नगर निगम के ही थे। किसी की मजाल नहीं कि कोई व्यक्ति आयुक्त तक पहुंच जाए। इधर एसडीएम विनोद शर्मा थे। वे भी हैकड़ किस्म के अधिकारी थे। वे कलेक्टर से ज्यादा लोकप्रिय हुए। कड़े निर्णय लेने में माहिर थे। चौहान और शर्मा की जोड़ी बहुत लोकप्रिय हुई। इन दोनों ने तय किया कि सब्जी मंडी तो अब मक्सी रोड पर ही लगेगी। भारी विरोध हुआ।

पुलिस बल भी बुलाया गया। तब माधव नगर थाना प्रभारी गिरीश सुबेदार थे। उनके क्षेत्र में उनके भी जल्वे थे। वे दबंग थाना प्रभारियों में शुमार थे। अब तीन दबंग एक साथ थे। नतीजतन, मक्सी रोड सब्जी मंडी शुरू हो गई। फ्री गंज के व्यापारियों में हर्ष की लहर दौड़ गई। व्यापारियों ने तीनों के अभिनंदन का प्रयास किया, लेकिन तीनों ने यह कह कर इनकार कर दिया कि यह हमारा फर्ज है। आने वाली पीढ़ी हमें याद रखे। वही हुआ। तीनों रिटायर हो गए, लेकिन उन्हें याद किया जाता है।

इसकी दुकान उसके नाम जय श्रीराम

सब्जी मंडी में एक नारा सुनने में आया है। इसकी दुकान उसके नाम, जय श्रीराम। एक व्यक्ति से पूछा गया कि इसका मतलब क्या होता है। वह हंस दिए, बोले भाई साहब, बड़े घावले हैं। सब्जी की दुकान पर नमकीन और नमकीन की दुकान पर जरकिन। आप मतलब समझ जाइए। यानी, बहुत से लोगों ने दुकानें दूसरों के नाम कर दी है। बहुत से लोग किराएदार के किराएदार हो गए हैं। इसमें कितनी सच्चाई है यह तो वे अधिकारी ही जान सकेंगे जिन्हें जांच करने का अधिकार है। लोगों का कहना है कि इस आदर्श सब्जी मंडी का नाम डूबना नहीं चाहिए। इस मंडी को सुंदर बनाने के लिए पेड़ पौधे लगाए गए। इस तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा है।

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