साल की आखिरी अमावस्या पर शिप्रा और सोमकुंड में आस्था की डुबकी लगाने आएंगे श्रद्धालु
अक्षरविश्व न्यूज|उज्जैन। भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन। सप्तपुरियों में से एक। यहीं मां शिप्रा में अमृत गिरा था। हर १२ साल में इसके आंचल में सिंहस्थ का आयोजन होता है जिसमें स्नान के लिए श्रद्धालु के साथ साधु-संत लालायित रहते हैं लेकिन मोक्षदायिनी कहलाने वाली मां शिप्रा खुद अपनी दुर्दशा पर आंसू बहा रही है।
कान्ह के दूषित पानी और गंदगी के चलते इसमें कीड़े हो गए हैं जिससे बदबू आ रही है। इसके अलावा घाट की सीढ़ियों पर काई जमी है जिसके कारण फिसलकर श्रद्धालु घायल हो रहे हैं। इस ओर ध्यान देने वाला कोई नहीं। साल के आखिरी में 30 दिसंबर को अमावस्या है। इस दिन सोमवार होने से इसका महत्व बढ़ गया है। सोमवती अमावस्या पर बड़ी तादाद में श्रद्धालु शिप्रा और सोमकुंड में आस्था की डुबकी लगाने आएंगे लेकिन मोक्षदायिनी मां शिप्रा में कैसे डुबकी लगाएंगे, यह बड़ा सवाल है।
हर बार लेते हैं नर्मदा का पानी
शिप्रा का पानी गंदा होने की समस्या नई नहीं है। जिम्मेदारों की अनदेखी के चलते सालों से ऐसे ही हालात बने हैं। किसी भी पर्व एवं त्यौहार के मौके पर नर्मदा का पानी शिप्रा में छोड़कर अपने कर्तव्यों से इतिश्री कर ली जाती है। २७ नवंबर को भी त्रिवेणी के पीछे स्थित नागफनी पाइप लाइन से नर्मदा-शिप्रा लिंक परियोजना के तहत तीन दिनों तक १.५ एमएलडी (मिलियन लीटर पर-डे) पानी लिया गया था ताकि त्रिवेणी पर श्रद्धालु साफ पानी में स्नान कर सकें। उम्मीद है इस बार भी जिम्मेदार सोमवती अमावस्या से पहले नर्मदा का पानी लेकर अपनी जिम्मेदारी निभा देंगे।