विक्रमोत्सव… अनोखी अंताक्षरी आज अन्नू कपूर के साथ

टॉवर चौक पर शाम 7 बजे होगा विशेष आयोजन

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सिने अभिनेता ने दो दिन तक शहर में रुककर ऑडिशन लिए

छह टीमों में चार-चार प्रतिभागी होंगे रोचक राउंड होंगे

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अक्षरविश्व न्यूज उज्जैन। विक्रमोत्सव-2025 के अंतर्गत अभिनेता अन्नू कपूर के साथ उज्जयिनी अनोखी अंताक्षरी का आयोजन आज शाम ७ बजे घंटाघर चौराहा (टॉवर चौक) पर होगा। इसमें कुल 6 टीमों के बीच गीत, गजल, छंद, कविता, श्लोक, मुक्तक और गैर फिल्मी गीतों का मुकाबला होगा। फिल्म अभिनेता और टीवी पर प्रसारित अंताक्षरी से लोकप्रियता अर्जित करने वाले अन्नू कपूर इस अंताक्षरी का अपने अंदाज में संचालन और निर्णय करेंगे।

आयोजन समिति द्वारा श्रोताओं के बैठने की उचित व्यवस्था की गई है। विक्रमादित्य शोध पीठ के निदेशक एवं सीएम डॉ. मोहन यादव के सांस्कृतिक सलाहकार डॉ. श्रीराम तिवारी के अनुसार देश में पहली बार यह अंताक्षरी अनोखे अंदाज में होगी। इसके लिए हुए ऑडिशन में प्रदेशभर से आए प्रतिभागियों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया। ऑडिशन के अंतिम दिन 205 प्रतिभागियों ने ऑनलाइन एवं 70 ने ऑफलाइन आवेदन किया था। इसमें से अन्नू कपूर ने ६ टीमों का संयोजन किया है। प्रत्येक टीम में चार-चार सदस्य होंगे जो विभिन्न कलाओं के निष्णात कलाकार हैं। ऑडिशन लेते समय सुर, लय, ताल, शब्द संयोजन, विषय ज्ञान आदि का ध्यान रखा गया।

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अन्नू कपूर ने बताया अंताक्षरी के बारे में

अभिनेता डॉक्टर अन्नू कपूर का कहना है भारतीय परंपरा में अंताक्षरी एक लोकप्रिय पारंपरिक खेल है, जो मुख्य रूप से गीतों, श्लोकों या कविताओं के माध्यम से खेला जाता है। यह खेल भारत की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा है। प्राचीन समय में इसे संस्कृत श्लोकों के रूप में भी खेला जाता था। अंताक्षरी न केवल मनोरंजन का एक साधन है, बल्कि यह भारतीय संगीत, भाषा और संस्कृति को जीवंत बनाए रखने का माध्यम भी है। यह परंपरा आज भी हर पीढ़ी के बीच उतनी ही लोकप्रिय है जितनी पहले थी।

क्षेत्रीय भाषाओं में प्रचलित रही: अभिनेता कपूर का मानना है कि अंताक्षरी का इतिहास भारतीय लोक-संस्कृति और काव्य-परंपरा से गहराई से जुड़ा हुआ है। यह खेल विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं और बोलियों, जैसे मालवी, अवधी, ब्रज, हाड़ौती आदि में प्रचलित रहा है। अंताक्षरी की परंपरा मौखिक कविता-संस्कृति का हिस्सा रही है, जिसमें लोग तुकबंदी और छंदबद्ध गीतों के माध्यम से संवाद करते थे। प्राचीन भारत में मौखिक परंपरा बहुत मजबूत थी, और यह वेदों के समय से चली आ रही थी। लोकगीतों और धार्मिक भजनों के माध्यम से अंताक्षरी की शैली विकसित हुई। कृष्णभक्ति और रामभक्ति काव्यधाराओं में अंताक्षरी के तत्व मिलते हैं।

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