मंगलनाथ मंदिर में अव्यवस्थाओं का अमंगल
ठेकेदार के काम को देखने वाला कोई नहीं है
- भात पूजा के लिए आने वाले यात्री हो रहे हैं परेशान
- अधूरे निर्माण से मंदिर के आसपास धूल के गुबार
- पीने और हाथ धोने का पानी तक उपलब्ध नहीं
- अधिकारियों का ध्यान सिर्फ नए निर्माणों की ओर
- निर्माण एजेंसी के अधिकारी देखें तो पता चले
- जनप्रतिनिधियों के निर्देश का भी असर नहीं
अक्षरविश्व न्यूज|उज्जैन। मत्स्य पुराण में उल्लेखित, सभी का मंगल करने वाले, अविवाहितों का विवाह कराने वाले, भात पूजा के लिए देशभर मेें विख्यात, मंगल गृह की उत्पत्ति के लिए विश्व पटल पर चर्चित मंगलनाथ मंदिर पर इन दिनों अव्यवस्थाओं का साया है। ठेकेदार क्या कर रहा है, गुणवत्ता कैसी है। यह देखने वाला कोई नहीं है।
पहले जो निर्माण हुआ वह इतना घटिया था कि मंदिर ने ही पोल खोल दी। मंदिर के हालात बता रहे हैं कि काम कैसे हुआ होगा। अब नया निर्माण भी सवालों के घेरे में है। आलम यह है कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं को वह सुविधाएं नहीं मिल पाती हैं वे जिसके हकदार हैं। वे परेशानी तो झेल लेते हैं लेकिन जाते समय कुढ़ते हैं, यहां के प्रशासन पर अंगुली उठाते हैं। देश के दूसरे मंदिरों से यहां की तुलना करते हैं। सुझाव देकर जाते हैं।
बाबा महाकाल के बाद कुछ ही मंदिर हैं जहां सर्वाधिक भीड़ होती है। काल भैरव मदिरा के कारण लोकप्रिय हैं। वहां जाने के बाद भक्तों को अलग प्रकार की अनुभूति होती है। यह मंदिर कौतूहल का प्रतीक है। आश्चर्य और जिज्ञासाओं को केंद्र है। लेकिन मंगलनाथ श्रद्धा, भक्ति, आस्था और मन्नतों का केंद्र है। यहां आकर महामंगल से मांगा जाता है। यहां की भात पूजा विशेष फलदायी होती है। सर्वाधिक भीड़ वाले मंदिरों में यह भी शुमार है। बावजूद इसके इस मंदिर की ओर किसी का ध्यान नहीं है। यदि ध्यान दिया होता तो अव्यवस्थाओं का अमंगल नहीं होता।
पीने को पानी नहीं
यदि आप मंगलनाथ मंदिर जाएंगे और प्यास लगी तो पीने का पानी नहीं मिलेगा। ऐसा नहीं है कि यहां संसाधन नहीं है। सबकुछ है लेकिन लापरवाही की भेंट चढ़ गया है। टोटी तक निकाल ली गई। यहां किसी पुजारी से बात की जाए तो वे बिफर पड़ते हैं। एक पुजारी ने तो यह कह कर अपना पीछा छुड़ा लिया कि हमें यहां बारह महीने पूजा कराना है। कुछ बोल दिया तो अधिकारी निशाने पर ले लेंगे। जो कुछ है सब सामने दिख रहा है। यहां ऐसा कुछ नहीं है कि छुपाया जाए। दूसरे पुजारी ने कहा कि हालत ही बता रहे हैं कि काम कितना अच्छा हुआ। कोई कुछ भी बोल ले, कर ले। किसी ठेकेदार के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी।
सुलभ सिर्फ नाम है
सुलभ शौचालय की हालत तो और भी बदतर है। यह शौचालय सिर्फ नाम का सुलभ है। सुलभ कुछ नहीं है। यदि कोई श्रद्धालु चला जाए और लौट कर आए तो उसके चेहरे के भाव पढ़िए। पता चल जाएगा कि वह कितनी परेशानियों के दौर से गुजरा होगा। दमोह की एक महिला तो बुंदेलखंडी में भिनक गई।
उसके पति ने 20 रुपए की पानी की बोतल लाकर दी तब उसने हाथ धोए। पूरी बोतल खत्म हो गई। पति बोला, यहां पानी का बोतल का बिजनेस अच्छा चल रहा होगा। इनका धंधा बढ़ाने के लिए शायद यहां पानी की व्यवस्था नहीं की गई है। उनका कहना था कि उज्जैन मंदिरों की राजधानी है। यहां सुविधाओं का ध्यान रखना चाहिए।
चारों तरफ टूट-फूट, उड़ती है धूल…
मंदिर में घूम कर देख लीजिए, चारों तरफ टूट-फूट देखने को मिलेगी। कहीं फर्सी उखड़ रही है तो यहीं दीवार की फर्सी टूट रही है। कुर्सी पर लगी फर्सियों ने दम तोड़ दिया है। मंदिर के मुख्य द्वार की ओर का नजारा तो भयावह है। यहां दिन भर धूल उड़ती रहती है। यदि जोर की हवा चली तो यहां मौजूद रहने वालों की हालत खराब हो जाती है।
शिखर दर्शनम् पाप नाशनम्
मंदिर निर्माण की बात करें तो जिस ठेकेदार को यहां के निर्माण की जिम्मेदारी दी थी उसने तमाम लापरवाही बरती। न जाने क्या कारण था कि आज तक शिखर पूरा नहीं हो पाया। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव जब उच्च शिक्षा मंत्री थे तब निर्माण कार्यों को समय सीमा पूर्ण करने और गुणवत्ता पर ध्यान देने की बात कही गई थी।
मंगलनाथ मंदिर का जिर्णोद्धार भी उस एजेंडे में शामिल था। बैठक में तत्कालीन विधायक पारस जैन, कलेक्टर आशीष सिंह, निगमायुक्त रोशन कुमार सिंह आदि मौजूद थे। यह बैठक 12 नवंबर 2022 को आयोजित की गई थी। निर्माण एजेंसी पर इस बैठक का कोई असर नहीं हुआ।