सियासत आगे क्या मोड़ लेगी

By AV NEWS

@शैलेष व्यास\कांग्रेस इन दिनों जिस हालात से गुजर रही है, उसे देखकर तो खांटी नेता भी यह अंदाजा नहीं लगा पा रहे कि उनकी सियासत आगे क्या मोड़ लेगी। कांग्रेस नेता जिस तरह से भाजपाई हो रहे हैं उसके बाद लोकसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार चुनना भी बड़ी मशक्कत रहा।

कांग्रेस नेतृत्व ने किसी तरह उपलब्ध विकल्पों में से चुनाव कर टिकट बांट दिए, लेकिन संगठन तक जो रिपोर्ट पहुंची उसने बड़े नेताओं की चिंता और बढ़ा दी। दरअसल टिकट तय होने के बाद भी मालवा-निमाड़ की कई लोकसभा सीटों पर पार्टी के नेता मैदान में उतरे ही नहीं। न चुनाव प्रचार में रुचि न संपर्क पर ध्यान दे रहे हैं।

चुनाव में याद आती है

भाजपा हो या कांग्रेस दोनों दलों के नेताओं को ‘चुनाव में याद आती है’ ताने सुनने पड़ रहे हैं। लोकसभा चुनाव के लिए वार्ड सम्मेलन, कार्यकर्ता सम्मेलन, बैठकों का दौर जारी है। इसके लिए पदाधिकारी और सक्रिय कार्यकर्ताओं के साथ-साथ भूले-बिसरे कार्यकर्ताओं को भी तलाश-तलाशकर बुलाया जा रहा है।

महीनों तक पार्टी कार्यालय से कोई संदेश नहीं मिलने के बाद चुनाव के पहले हर दूसरे दिन पदाधिकारियों के फोन और संदेश पहुंच रहे हैं। कई बार की मान-मनुहार के बाद ये कार्यकर्ता बैठक में पहुंचते हैं, लेकिन वहां मन की पीड़ा व्यक्त करना नहीं भूलते। उस पर भी बैठक शुरू होने के पहले यदि किसी ने यह पूछ लिया कि ‘क्या भाई साहब आजकल दिखते नहीं’ तो कयामत आ जाती है। इसकी कीमत वहां मौजूद नेताओं को कई सारी तीखी बातें सुनकर चुकानी पड़ती है। अब चुनाव हैं तो याद आई है बाद में तो बड़े-बड़े कार्यक्रम हो जाते हैं हमें कोई पूछने वाला नहीं जैसे जुमले सुनकर नेताओं के पास भी गर्दन झुकाने के अलावा दूसरा रास्ता नहीं होता।

चुनावी ड्यूटी से तो डर लगता ही है साहब

अभी तक तो चुनाव ड्यूटी से सरकारी कर्मचारियों को ही परेशान होते या ड्यूटी निरस्त करवाने के लिए तरह-तरह के जतन करवाते देखा है, लेकिन इस लोकसभा चुनाव में यह प्रक्रिया सियासी दलों तक भी पहुंच गई है। भाजपाई इसके सबसे ज्यादा शिकार हो रहे हैं। बूथ, वार्ड और चुनाव प्रबंधन में जुटे नेताओं को इन दिनों बूथ पर बैठने वाले, मतदान केंद्रों के बाहर लगने वाली टेबलों तक सामग्री पहुंचाने सहित अन्य कार्यों से जुड़े कार्यकर्ताओं के संदेश इसी आग्रह के आ रहे हैं कि चुनाव ड्यूटी से उन्हें मुक्त कर दिया जाए। किसी ने अपने परिवार में शादी होने का तर्क दिया है तो किसी ने स्वास्थ्य का हवाला और गर्म मौसम को लेकर चिंता जताई है। दरअसल इस बार का चुनाव अब तक भी रंग में नहीं आ सका है। उज्जैन जैसे क्षेत्र में कार्यकर्ता यह बोलते भी सुने जाते हैं कि जब मालूम ही है कि परिणाम क्या होना है फिर व्यर्थ पसीना बहाने से क्या फायदा।

शहर में नहीं चुनावी शोर गांवों में प्रचार पर जोर

लोकसभा चुनाव के लिए होने वाले मतदान में अब एक माह से भी कम समय शेष है, लेकिन शहरी क्षेत्रों में कहीं भी चुनावी माहौल नजर नहीं आ रहा। राजनीतिक दल भी प्रचार को लेकर अब तक उदासीन हैं। हालांकि ग्रामीण इलाकों में जरूर चुनावी शोर सुनाई देने लगा है। भाजपा की ग्रामीण इकाई लोकसभा चुनाव के लिए विशेष रणनीति तैयार कर मैदान में उतर गई है। कांग्रेस नेताओं ने सम्मेलन के माध्यम से कार्यकर्ताओं को साधने में जुटे है। फिलहाल उनका ध्यान ग्रामीण क्षेत्र पर अधिक है।

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