एकादशी व्रत शुरू करने की सही तारीख और व्रत के नियम

एकादशी व्रत हर माह में दो बार आता है, एक शुक्ल पक्ष में और दूसरा कृष्ण पक्ष में. एकादशी व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और अगले दिन पारण करके व्रत को पूरा किया जाता है. एकादशी व्रत करने से पाप, दुख, रोग, दोष आदि मिटते हैं, पितृ दोष की शांति होती है, पितरों का उद्धार होता है और जीवन के अंत में मोक्ष भी मिलता है. एकादशी व्रत करने वालों को बैकुंठ धाम में स्थान प्राप्त होता है. यदि आपको एकादशी व्रत की शुरूआत करनी है तो जानते हैं एकादशी व्रत शुरू करने की सही तारीख और व्रत के नियम.
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एकादशी व्रत कब शुरू करें?
जो लोग इस साल एकादशी व्रत की शुरूआत करना चाहते हैं, उन लोगों को मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि से एकादशी व्रत शुरू करनी चाहिए. मार्गशीर्ष माह को अगहन भी कहा जाता है. मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी व्रत उत्पन्ना एकादशी के नाम से प्रसिद्ध है.
2025 में एकादशी व्रत शुरू करने की तारीख
इस साल उत्पन्ना एकादशी 15 नवंबर शनिवार को है. पंचांग के अनुसार, मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी तिथि 15 नवंबर को 12:49 ए एम से लेकर 16 नवंबर को 02:37 ए एम तक है. 15 नवंबर 2025 से आप एकादशी व्रत का प्रारंभ कर सकते हैं. यह एक बेहद शुभ दिन है.
उत्पन्ना एकादशी से क्यों शुरू करते हैं एकादशी व्रत?
पौराणिक कथा के अनुसार, मार्गशीर्ष एकादशी तिथि को देवी एकादशी की उत्पत्ति हुई थी, उन्होंने विश्राम कर रहे भगवान विष्णु की रक्षा दैत्य मुर से की थी. देवी एकादशी के हाथों मुर मारा गया था. इससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उस देवी से कहा कि आपकी उत्पत्ति एकादशी को हुई है, इसलिए एकादशी के दिन आपकी भी पूजा की जाएगी. यह एकादशी उत्पन्ना एकादशी कहलाएगी.
इस वजह से उत्पन्ना एकादशी के दिन से एकादशी व्रत का शुभारंभ करना उत्तम माना जाता है. उत्पन्ना एकादशी के अलावा आप चैत्र, वैशाख और माघ की एकादशी से भी एकादशी व्रत का शुभारंभ कर सकते हैं.
एकादशी व्रत के नियम
एकादशी व्रत की शुरूआत करने वाले व्यक्ति को दो दिन पहले से ही सात्विक भोजन करना चाहिए. मांस, मदिरा, लहसुन, प्याज का त्याग कर देना चाहिए. तामसिक वस्तुओं से दूर रहना चाहिए.
एकादशी व्रत के दिन प्रात:काल में स्नान करके व्रत और विष्णु पूजा का संकल्प लेते हैं. शुभ मुहूर्त में भगवान विष्णु और देवी एकादशी की पूजा करते हैं. उस समय एकादशी व्रत कथा सुनना जरूरी है.
एकादशी व्रत करने वाले व्यक्ति को ब्रह्मचर्य के नियमों का पालन करना होता है.
एकादशी व्रत में पूरे दिन फलाहार करते हैं, अन्न का सेवन वर्जित है. पानी पीने पर रोक नहीं है.
एकादशी की रात जागरण करते हैं. उस समय भजन, कीर्तन, नाम जप आदि करना उत्तम रहता है.
हरि वासर के समापन के बाद द्वादशी तिथि में एकादशी व्रत का पारण किया जाता है.
एकादशी व्रत के पारण से पूर्व किसी ब्राह्मण को अपनी क्षमता के अनुसार अन्न, वस्त्र, फल आदि का दान करना चाहिए.
एकादशी व्रत आप पूरे 12 माह यानि 24 एकादशी तक कर सकते हैं. उसके बाद एकादशी व्रत का उद्यापन कर सकते हैं. यदि आपकी क्षमता है तो आप एकादशी व्रत 3, 5, 7, 11 साल तक कर सकते हैं.
कुछ लोग जीवनपर्यंत तक एकादशी का व्रत रखते हैं और जब शरीर कमजोर हो जाता है तो भगवत आज्ञा से उसका उद्यापन कर देते हैं.









