Advertisement

कार्बाइड गन पर देश की नजर हमारे सीएमएचओ ही बेखबर

निजी क्लीनिक में इलाज कराकर चले गए मरीज स्वास्थ्य विभाग सोता रहा…

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

Advertisement

अक्षरविश्व एक्सक्लूसिव

उज्जैन। उज्जैन में स्वास्थ्य विभाग गहरी नींद में सोया हुआ है। कार्बाइड गन से दृष्टिबाधित होने की कगार पर पहुंच गए बच्चे अपने घरों पर परेशानी झेल रहे हैं और विभाग के अफसरों को इसकी खबर ही नहीं है। अक्षरविश्व के साथ दो बच्चों के पिताओं ने परेशानी साझा की।

Advertisement

अचानक धुआं उठा, अब दिखाई देना बंद

उज्जैन की अंबर कॉलोनी के पास स्थित राजीव रत्न नगर मल्टी के रहवासी शक्ति जायसवाल का 12 वर्षीय बेटा ऋषभ जायसवाल भी कार्बाइड गन से झुलसा है। दिल्ली पब्लिक स्कूल में कक्षा पांचवीं में पढऩे वाले ऋषभ ने चामुंडा माता चौराहे से 200 रुपए में कार्बाइड गन खरीदी थी। दिवाली वाले दिन (20 अक्टूबर) की शाम उसने कार्बाइड गन उठाई और जैसे ही चलाई तो धुआं निकला और उसकी आंखों की पुतलियां सफेद हो गईं। उसे दिखाई देना बंद हो गया। फर्नीचर का काम करने वाले पिता शक्ति जायसवाल उसे लेकर फ्रीगंज में डॉ. भरत जैन के अस्पताल पहुंचे, लेकिन चिकित्सक उपलब्ध नहीं होने से वह डॉ. पराग शर्मा के पास पहुंचे। उन्होंने उपचार किया और कुछ ड्रॉप लिखे। ऋषभ को अभी भी दिखाई नहीं दे रहा है। उसे इंदौर ले जाने की सलाह दी गई है। पिता शक्ति जायसवाल ने बताया कि उन्हें बहुत दिक्कत हो रही है। इंदौर में भी उपचार ठीक से नहीं हो पा रहा है।

Advertisement

गन को स्टार्ट किया तो धुएं से पुतलियां हुई सफेद…
आगर-मालवा के मालीपुरा में रहने वाले जितेंद्र अजमेरा के बेटे समर्थ अजमेरा भी कार्बाइड गन का शिकार हुए हैं। 9 साल के समर्थ ने पिता से जिद करके कार्बाइड गन खरीदी थी। दिवाली वाले दिन उसने सोफे पर रखी गन उठाई और स्टार्ट की तो धुआं निकला और उसकी पुतलियां सफेद हो गईं। पेशे से ड्राइवर जितेंद्र को आगर-मालवा में कोई मदद नहीं मिली तो वह उज्जैन पहुंचे और डॉक्टर पराग शर्मा को दिखाया। समर्थ को पास का तो धुंधला दिखाई दे रहा है लेकिन दूर का बिल्कुल दिखाई नहीं दे रहा। उसका कार्निया काले की जगह सफेद हो गया है। जितेंद्र अजमेरा को समझ नहीं आ रहा है कि अब आगे क्या होगा।

जब अक्षरविश्व ने हकीकत बताई तो सीएमएचओ सकपकाए….

इधर उज्जैन का स्वास्थ्य विभाग कागजी खानापूर्ति कर सो गया। सीएमएचओ डॉ अशोक पटेल ने एक बयान जारी कर कहा कि कार्बाइड गन का कोई केस उज्जैन में रिपोर्ट नहीं किया गया। अक्षरविश्व ने जब उनसे बात की और दो पीडि़तों की जानकारी दी तो वह सकपका गए। अपना बचाव करते हुए उन्होंने सरकारी खानापूर्ति वाली बातें कीं और कहा कि कोई भी डॉक्टर कार्बाइड गन से बच्चों की आंख झुलसने की बात नहीं कह रहा है।

वह फायर क्रेकर की बात कर रहे हैं। अब ऐसे में सवाल उठता है कि फायर क्रेकर की परिभाषा स्वास्थ्य विभाग की नजर में क्या है? क्या स्वास्थ्य विभाग को पीडि़तों के घर पर टीम भेजकर जमीनी हकीकत पता नहीं करनी चाहिए थी? या फिर हर हादसे की तरह इसे भी यूं ही टाल देना चाहिए था। यह बच्चों के जीवन से जुड़ा गंभीर मसला है। अगर इन बच्चों की दृष्टि को कुछ हो गया तो उनका तो जीवन ही खराब हो जाएगा।

Related Articles