सरगर्मी… भाजपा में संगठन चुनाव की कवायद जोरों पर, चर्चा में कई नाम, लेकिन तय है पहले से नाम
- नगर अध्यक्ष कौन बनेगा, सिर्फ चर्चाओं में ही है नाम
- कालूहेड़ा ही बन सके हैं नगर अध्यक्ष और विधायक डॉ. जटिया जब
- चुनाव हारे तो बनाए गए जिलाध्यक्ष
- डॉ. चौहान जिलाध्यक्ष थे, बाद में विधायक बने खाचरौद के
नरेंद्र सिंह अकेला | उज्जैन। भाजपा का नगर अध्यक्ष कौन होगा? हर दूसरे तीसरे दिन यही चर्चा होती है। चर्चा के साथ ही एक नया नाम सामने आ जाता है। कभी जातिगत समीकरण, कभी ऊपर तक पहुंच और कभी संघ के प्रति समर्पण भाव की बात होने लगती है। अभी तक कोई ऐसा नाम नहीं है जिसके बारे में यह दावा किया जाए कि अध्यक्ष यही बनेंगे।
दरअसल, नगर अध्यक्ष का ताज देखने में चमकदार लगता है लेकिन इसके कंटीले कंगुरे आगे जाकर बड़ा कष्ट देते हैं। अध्यक्ष बनने के बाद कार्यकर्ताओं की अपेक्षाएं बढ़ जाती है। यदि अपेक्षा पूरी नहीं हुई तो उपेक्षा का भाव जागृत होगा। यही भाव आगे जाकर तकलीफ देता है। अध्यक्ष को अपना कार्यकाल बहुत सोच समझ कर चलाना होता है।
यदि इस दौरान कोई चुनाव आ गए तो बड़ी जिम्मेदारी का निर्वहन भी करना पड़ता है। यदि सफलता नहीं मिली तो इतिहास के पन्ने तैयार रहते हैं एक इबारत के लिए। तत्काल लिखा जाता है कि उनके कार्यकाल में पार्टी का प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सका।
पहले अध्यक्ष बने गौड़
जब भाजपा अस्तित्व में आई तब अपने जमाने के जाने-माने अभिभाषक, तेजतर्रार वक्ता और ईमानदारी के प्रतीक श्यामलाल गौड़ भाजपा के नगर जिलाध्यक्ष बने। दरअसल, उस जमाने में ग्रामीण अध्यक्ष नहीं होते थे। गौड़ ने भाजपा के लिए बहुत काम किए। वे प्रसिद्ध समाजसेवी भी थे। युवराज जनरल लाइब्रेरी को सजाने और संवारने में उनके योगदान को आज तक रेखांकित किया जाता है। वे महापौर भी रहे।
पं. राधेश्याम उपाध्याय महापौर बने
हरसिद्धि की पाल पर रहने वाले पं. राधेश्याम उपाध्याय 80 के दौर में महापौर बने और ईमानदारी की मिसाल कायम की। उनके ही कार्यकाल में सिंहस्थ का आयोजन हुआ। वे बाद में भाजपा के नगर जिलाध्यक्ष बने। लेकिन पद रहते हुए कोई पद नहीं मिला। कम खर्च में काम कैसे बेहतर होता है यह उन्होंने सिखाया।
विशु गुरुकी बात अलग ही थी: विश्वनाथ व्यास विशु गुरू नगर जिलाध्यक्ष बनाए गए। उनकी बात ही अलग थी। बेहद मिलनसार, अच्छे वक्ता और गुस्सैल भी थे। अपने इरादों के अटल थे। ब्राम्हण नेता के रूप में जाने जाते थे। युवाओं में बहुत लोकप्रिय थे।
छात्रनेता को बनाया अध्यक्ष
अब बारी थी भगत सिंह तोमर की। महाकाल मंदिर के सामने रहने वाले भगत सिंह तोमर छात्र नेता थे। लंबे कद के तोमर देवासगेट सहकारी पेढ़ी में क्लर्क थे। संघ के प्रति समर्पित और अच्छे संगठक थे। उन्हें अध्यक्ष बनाया गया। वे भी अध्यक्ष ही रह गए।
नातू-कोटवानी का दौर
शिक्षा शास्त्री दिवाकर नातू को अध्यक्ष बनाया गया। नातू सर के नाम से विख्यात दिवाकर भाजपा के लिए दिवाकर (सूरज) साबित हुए। सभी को साथ लेकर चले और निर्विवाद रहे। इनके दौर में युवा शक्ति तेजी से उभरी। दौर आया शिवा कोटवानी का। कोटवानी भी छात्र नेता थे। अध्यक्ष बने। विधायक बने तब अध्यक्ष नहीं थे। यानी अध्यक्ष रहते हुए विधायक नहीं बने।
अग्रवाल, कालूहेड़ा, गांधी और विवेक
कोटवानी के बाद जगदीश अग्रवाल अध्यक्ष बने। बाद में विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष बनाए गए। विधायक की दौड़ में रहे लेकिन सफल नहीं हो सके। वे अपने मिलनसार और सहयोगी व्यक्तित्व के लिए जाने जाते हैं। अनिल जैन कालूहेड़ा अध्यक्ष बने। कालूहेड़ा एकमात्र नेता हैं जो नगर अध्यक्ष बनने के बाद विधायक बने। इकबाल सिंह गांधी लोकप्रिय अध्यक्ष रहे। शहर में होने वाले हर कार्यक्रम में देखे गए। दक्षिण से दावेदार रहे, लेकिन सफल नहीं रहे। अब विवेक जोशी अध्यक्ष हैं।
डॉ. जटिया को बनाया अध्यक्ष
सर्वाधिक बार सांसद बने डॉ. सत्यनारायण जटिया 1984 के दौर में लोकसभा का चुनाव हार गए थे। चुनाव हारने के बाद पार्टी ने उन्हें संगठन की जिम्मेदारी दी। वे जिलाध्यक्ष बनाए गए। तेजबहादुर सिंह जिलाध्यक्ष थे लेकिन अध्यक्ष रहते विधायक नहीं बने।
अध्यक्ष के लिए नाम चर्चा में
नए अध्यक्ष के लिए महामंत्री संजय अग्रवाल और उपाध्यक्ष आनंद सिंह खींची का नाम चर्चाओं में है। अब देखना है इस सूची में और कितने नाम बढ़ते हैं।