वरुथिनी एकादशी वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को कहते हैं। यह एकादशी 4 मई को है। यह भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए शुभ अवसर माना जाता है। वैशाख मास भगवान विष्णु और उनके अवतारों की पूजा के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसलिए इस मास में पडऩे वाली एकादशी का महत्?व भी बहुत खास होता है। मान्यता है कि धन की कमी को पूरा करने के लिए वरुथिनी एकादशी का व्रत करने से बहुत लाभ होता है। वरुथिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के वराह स्वरूप की पूजा की जाती है। आइए आपको बताते हैं वरुथिनी एकादशी की डेट, शुभ मुहूर्त और महत्व।
वरुथिनी एकादशी की तिथि
वरुथिनी एकादशी तिथि का आरंभ 3 मई की रात को 11 बजकर 24 मिनट से होगा और यह तिथि 4 मई की रात को 8 बजकर 38 मिनट पर समाप्त होगी। इसलिए धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वरुथिनी एकादशी का व्रत 4 मई को रखा जाना उचित होगा।
वरुथिनी एकादशी का महत्व
वरुथिनी एकादशी का महत्व शास्त्रों में बहुत खास माना गया है। इस साल वरुथिनी एकादशी के दिन त्रिपुष्कर योग, इंद्र योग और वैधृति योग बनने से यह तिथि और भी शुभ मानी जा रही है। समस्त दुख और कष्ट से मुक्ति पाने के लिए इस व्रत को किया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु के साथ माता लक्ष्मी की भी आराधना करने से आपको भगवान लक्ष्मीनारायण का आशीर्वाद मिलता है। स्वयं भगवान वासुदेव ने अर्जुन को इस व्रत का महात्म्य बताया था। मानते हैं कि इस व्रत को करने से कन्यादान के समान पुण्य प्राप्त होता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा बताया जाता है कि राजा मान्धाता को इस व्रत के प्रभाव से ही स्वर्ग की प्राप्ति हुई थी।
वरुथिनी एकादशी पूजा विधि
- एकादशी के दिन सुबह उठें और दिन की शुरुआत प्रभु के ध्यान से करें।
- इसके पश्चात स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें और मंदिर की सफाई करें।
- चौकी पर पीला कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की प्रतिमा विराजमान करें।
- पीले चंदन और हल्दी कुमकुम से तिलक करें और मां लक्ष्मी को श्रृंगार की चीजें अर्पित करें।
- घी का दीपक जलाकर प्रभु की आरती करें और मंत्र का जाप करें।
- अब प्रभु को फल, मिठाई का भोग लगाएं। भोग में तुलसी दल को अवश्य शामिल करें। माना जाता है कि बिना तुलसी दल के भगवान भोग स्वीकार नहीं करते है।
विष्णु गायत्री मंत्र
ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि।
तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥
विष्णु मंगल मंत्र
मङ्गलम् भगवान विष्णुः, मङ्गलम् गरुणध्वजः।
मङ्गलम् पुण्डरी काक्षः, मङ्गलाय तनो हरिः॥