स्मृति शेष… पिता के साथ बिताए पल याद कर भावुक हुए मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव पिता पूनमचंद के निधन पर बेहद व्यथित दिखे। बुधवार को उनके निवास पर जब लोग संवेदना जताने पहुंचे तो वह पिता के संस्मरण सुनाकर भावुक हो उठे। अक्षरविश्व के संपादक सुनील जैन से स्मृति साझा करते हुए उन्होंने बताया कि बड़े से बड़े पद पर रहने के बाद भी उनके पिता ने सरकारी सुविधा से हमेशा परहेज रखा।
यादव के मुताबिक जब मैं विधायक का चुनाव जीतकर आया और पिताजी के पैर छुए तो उन्होंने कहा- जीत गए अच्छी बात है लेकिन हमेशा स्वाभिमान की जिंदगी जीना। कभी किसी के पैरों में मत गिरना। अपने दम पर, कर्म के आधार पर आगे बढऩा। स्वयं के द्वारा की गई मेहनत ही एक दिन रंग लाएगी और ऊंचाई तक पहुंचाएगी। जब मैं मुख्यमंत्री बना और आशीर्वाद लेने उज्जैन आया तो घर पर चरण स्पर्श करते समय पिताजी ने कहा- अच्छा काम करना, लोगों का भला करना। किसी को दु:ख पहुंचे, ऐसा काम कभी मत करना।
पिताजी हमेशा आशीर्वाद के साथ एक नई सीख देते थे। वे अपना स्वयं का काम आखिरी समय तक स्वयं ही करते रहे। कोई मिलने आता तो वे कभी यह नहीं कहते थे कि मैं विधायक, मंत्री, मुख्यमंत्री का पिता हूं। ताउम्र वे सामान्य जीवन जीते रहे। जब मुख्यमंत्री निवास में जाते समय मैंने उनसे साथ चलने का आग्रह किया तो पिताजी ने कहा मैं तो यहीं पर अच्छा हूं। आज तक तुम्हारी सरकारी कार में भी नहीं बैठा और आगे भी नहीं बैठना चाहता हूं।
तुम वहां जाकर रहो और लोगों की सेवा करते रहो। मैं यहीं पर अच्छा हूं। उनके दैनिक जीवन का एक हिस्सा खेत पर जाना भी था। फसल तैयार होने पर उसे अपनी देखरेख में कटवाना और ट्रॉली के साथ स्वयं उपज बेचने के लिए मंडी जाना… उनका क्रम था। हम सब कहते भी थे कि यह सब आप मत किया करो।
आराम करो। आपको जाने की क्या आवश्यकता है? लेकिन वे कहते थे कि यह मेरा काम है, मैं ही करूंगा। वे बाजार भी जब तब सामान लेने निकल जाते थे। कभी उन्होंने किसी की भी किसी काम के लिए मुझसे सिफारिश नहीं की। मैं उनके लिए एक पुत्र था, न कि कोई राजनेता। उनकी तरह ही मां भी थीं। वह भी बेहद कर्मशील थीं। दोनों ने कर्मशील रहने की सीख दी और इसी पर मैं अब तक चला हूं और आगे भी चलता रहूंगा।