खरी-खरी : रसूख ने तोड़ी ‘मर्यादा’, हारा अनुशासन, मौन प्रशासन

कर्मचारियों को धमकाकर पिता के साथ महाकाल मंदिर के गर्भगृह में की पूजा, 100 दिन पहले
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देवास माता टेकरी पर पुजारी को पीटा था
इंदौर-3 के भाजपा विधायक गोलू शुक्ला के बेटे रुद्राक्ष ने सोमवार सुबह भगवान महाकालेश्वर के गर्भगृह में प्रवेश कर मंदिर के नियमों को तोड़ा है। रुद्राक्ष कर्मचारियों को धमकाते हुए गर्भगृह में घुस गया। घटना के बाद मंदिर समिति के जिम्मेदार अधिकारी चुप्पी साधे हैं।
अक्षरविश्व न्यूज उज्जैन। सोमवार सुबह भस्मारती के बाद यह घटना हुई है। ड्यूटी पर तैनात मंदिर के कर्मचारी आशीष दुबे ने उसे रोकने का प्रयास भी किया। विधायक शुक्ला और अन्य समर्थक भी साथ थे। करीब 5 मिनट पूजा-अर्चना के बाद वे बाहर आए। विधायक शुक्ला रविवार को कावड़ यात्रा लेकर उज्जैन आए थे। विधायक शुक्ला ने कर्मचारियों को बताया था कि उनके पास परमिशन है, जबकि मंदिर समिति सूत्र बताते हैं गर्भगृह में प्रवेश की कोई परशिमन जारी नहीं हुई थी। रुद्राक्ष ने महाकाल मंदिर के नियम दूसरी बार तोड़े हैं। वे १२ मार्च 2023 को भस्मारती के दौरान गर्भगृह में पहुंचे थे। हाल ही में 12 अप्रैल को रुद्राक्ष ने देवास के चामुंडा टेकरी मंदिर में आधी रात को हंगामा किया और पुजारी से कथित मारपीट की। बाद में रुद्राक्ष को माफी मांगनी पड़ी थी।
4 जुलाई 2023 से लगी है प्रवेश पर रोक
महाकाल मंदिर के गर्भगृह में किसी भी श्रद्धालु के प्रवेश पर करीब दो वर्ष पहले 4 जुलाई 2023 से रोक लगी हुई है। 4 जुलाई 2023 को सावन महीने में आने वाली भीड़ को देखते हुए 11 सितंबर 2023 तक के लिए गर्भगृह बंद किया गया था। तब मंदिर समिति ने कहा था कि सावन खत्म होते ही गर्भगृह आम श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया जाएगा। तीन साल से अधिक का समय बीत जाने के बाद भी गर्भगृह नहीं खोला गया है। सिर्फ पंडे-पुजारियों, सीएम, राज्यपाल या अतिविशिष्ट श्रद्धालु को ही अनुमति लेकर मंदिर के गर्भगृह में जा सकते हैं। शेष श्रद्धालु शिवलिंग से 100 फीट दूर से दर्शन करते हैं।
खरी-खरी : रसूख ने तोड़ी ‘मर्यादा’, हारा अनुशासन, मौन प्रशासन
विनोदसिंह सोमवंशी | भगवान शिव के प्रिय सावन माह में श्री महाकालेश्वर मंदिर की गरिमा और अनुशासन को जिस तरह विधायक गोलू शुक्ला और उनके पुत्र रुद्राक्ष ने साथियों के साथ ठेस पहुंचाई है, वह केवल नियम का उल्लंघन नहीं बल्कि आस्था के अपमान जैसा है। गर्भगृह में जबरन प्रवेश, कर्मचारी से अभद्रता और उस पर मंदिर प्रबंधन की चुप्पी… यह सभी मिलकर यह दर्शाते हैं कि मंदिर में सभी के लिए नियम एक समान नहीं हैं।
यह स्थिति तब और अधिक विचलित करती है जब हम देखें कि उज्जैन के निवासी प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और उनका परिवार हर बार पूर्ण ‘मर्यादा’, निर्धारित प्रक्रिया और बिना किसी ‘विशेषाधिकार’ के दर्शन करते हैं। चाहे वे मुख्यमंत्री बनने के पहले का वाक्या हो या मुख्यमंत्री बनने के बाद का। उनका आचरण और मंदिर अनुशासन के प्रति सम्मान एक ‘आदर्श’ प्रस्तुत करता है। मुख्यमंत्री का आचरण बताता है कि पद से पहले ‘धर्म’ और ‘मर्यादा’ का पालन आता है।
जब प्रदेश का शीर्ष नेतृत्व इस अनुशासन का पालन कर सकता है तो फिर विधायकों और उनके परिजनों को किस आधार पर ‘विशेष व्यवहार’ मिलना चाहिए। इसके विपरीत इंदौर की ३ नंबर विधानसभा के विधायक गोलू शुक्ला के पुत्र रुद्राक्ष को नियमों को तोडऩे की आदत बन गई है। वह इससे पहले भी महाकाल गर्भगृह में घुस चुका है, जबकि देवास के प्रसिद्ध चामुंडा माता मंदिर में तो उसने धर्म विरुद्ध आधी रात को पट खुलवा लिए थे। इस दौरान उसके साथियों ने पुजारी के साथ हाथापाई भी की थी। इन मामलों ने खूब सुर्खियां बटोरी, मगर रुद्राक्ष का कुछ नहीं हो सका। इसलिए उसने एक बार फिर हिमाकत की है।
देश के कई प्रमुख मंदिरों तिरुपति, रामेश्वरम, और सोमनाथ में भी राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तक सामान्य दर्शनार्थी की तरह दर्शन करते हैं लेकिन उज्जैन में जब ‘रसूख’ मर्यादा से ऊपर खड़ा होता दिखे और प्रशासन बार-बार ‘मौन’ साधे तो यह मंदिर की ‘गरिमा’ के लिए चिंताजनक बात है। श्री महाकालेश्वर मंंदिर में अब जरूरत एक समान और सख्त नीति की है, जिसमें न पद देखा जाए, न पहचान। केवल श्रद्घा और अनुशासन का ध्यान रखा जाए। वरना यह मौन स्वीकृति व्यवस्था को खोखला कर देगी और भक्तों की आस्था को चोट पहुंचाती रहेगी। अब समय हैं कि शासन-प्रशासन और राजनैतिक नेतृत्व कोई ठोस पहल करे।