राहत की रजिस्ट्री अब संभव नहीं, क्योंकि सॉफ्टवेयर डाउन हो जाता है, कराता है इंतजार
पहले एक दिन में हो जाती थी, अब लग रहा पखवाड़ा
बाहर से आने वालों को सबसे ज्यादा हो रही है दिक्कत
अक्षरविश्व न्यूज|उज्जैन। रजिस्ट्री कार्यालय के कर्मचारी मजे में हैं, लेकिन वकीलों के लिए नई व्यवस्था परेशानी का सबब बन गई है। काम दो गुना हो गया है। कागजी प्रक्रिया कार्यालय से बेशक खत्म हो गई हो, लेकिन वकीलों के यहां दस्तावेजों का अंबार लगना शुरू हो गया है। कार्यालय का काम डिजीटल से और वकील का काम कागज से।
प्रदेश सरकार ने लोगों को रजिस्ट्री कार्यालय से होने वाली परेशानियों से बचाने के लिए पूरी व्यवस्था को डिजीट्लाइट कर दिया था। व्यवस्था शुरू करने से पहले यह समझा गया कि रजिस्ट्री कार्यालय में आने के बाद लोगों को किन परेशानियों के दौर से गुजरना पड़ता है। पल-पल पर पैसा लगता है। जो लोग जानकार हैं वे तो बातचीत और अपने ज्ञान से बच कर निकल जाते हैं। जिन्हें ज्ञान नहीं है उन्हें तो बात मानना ही है। ऐसे कई उदाहरण थे जो सरकार के संज्ञान में आए। नतीजतन, नई व्यवस्था बनाने की परिकल्पना को क्रियान्वित किया गया।
वकीलों की परेशानी बढ़ गई
नई व्यवस्था में वकीलों को परेशानियों से दो-चार होना पड़ रहा है। काम का बोझ बढ़ गया है। पोर्टल ठीक ढंग से काम नहीं कर पाता। एक वकील ने अक्षर विश्व से चर्चा करते हुए बताया कि अब कागज ज्यादा लग रहे हैं। पहले संपत्ति की रजिस्ट्री कराने वालों का आधा दिन रजिस्ट्रार ऑफिस में बीतता था।
अब उसका पूरा वक्त, यानी जब तक रजिस्ट्री न हो जाए तब वह वकीलों के साथ ही रहता है। क्लइंट को बार-बार समझाना पड़ता है कि दिक्कत कहां आ रही है। कई बार तो क्लांइट उलझ लेता है। उसे लगता है वकील साहब, नाहक परेशान कर रहे हैं। जबकि ऐसा नहीं है। कोई भी वकील यह नहीं चाहता कि उसके यहां आने वाला क्लाइंट परेशान हो। हर वकील यही चाहता है कि क्लाइंट का काम जल्दी हो जाए ताकि अगले के लिए दस्तावेज तैयार किए जाएं।
संपदा-टू से काम समय पर नहीं होते
वकीलों का कहना है कि किसी भी व्यवस्था को डिजिटल करने से पहले उसकी गति पर ध्यान देने की जरूरत रहती है। व्यवस्था बदल तो गई लेकिन बदलाव के दुष्परिणाम भी जनता को ही भुगतना पड़ रहे हैं। पहले किसी भी तरह रजिस्ट्री हो जाया करती थी। अब तो टोकन आने के बाद अगली कार्रवाई होती है। टोकन का इंतजार भी वकीलों को ही करना पड़ता है। उसे क्लाइंट को बताना पड़ता है कि अपना नंबर आ गया है। दिक्कत यह भी आ रही है कि मंत्रा का डिवाइस नहीं चल रहा है। पुराना को फिर भी ठीक था। नए में तो तमाम दिक्कतें हैं। पुराने डिवाइस के माध्यम से करीब 200 रजिस्ट्री रोज हो जाया करती थी।
अब सन्नाटा छाया रहता है। एक-एक रजिस्ट्री के लिए 15-20 दिन के नंबर लग रहे हैं। रजिस्ट्री कराने वाला तो परेशान होता ही वकील भी परेशान होते हैं। संपदा-2 में वैल्यूएशन में भी गड़बड़ हो जाती है। थंब इंप्रेशन नहीं लेता। साफ्टवेयर ठीक ढंग से काम नहीं करता। बार-बार हैंग हो जाता है। यदि आप रजिस्ट्री की प्रक्रिया कराने बैठै हैं तो सिस्टम के अपडेट होने इंतजार करें। क्लाइंट को बुलाएं और दोबारा थंब इंप्रेशन लें। आप चाहें कि एक राउंड में काम हो जाए तो यह संभव ही नहीं है। केवाइसी है फिर साफ्टवेयर बताता है नहीं है। पेन और आधार लिंक्ड है, लेकिन साफ्टवेयर में शो नहीं होता।
सरकार ने यह व्यवस्था बनाई
संपत्ति के रजिस्ट्रेशन में अब एमपी के लोगों को परेशानियों का सामना नहीं करना पड़ेगा। क्योंकि मध्य प्रदेश में संपत्ति के रजिस्ट्रेशन के लिए नए नियम बनाए गए हैं, यह नियम 10 अक्टूबर से प्रदेश के सभी 55 जिलों में लागू हो गए हैं। सरकार ने रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया को आसान बनाने के लिए इसे डिजिटल किया है।
लोगों को कई दस्तावेजों के पंजीयन के लिए उप पंजीयन कार्यालय में मौजूद रहने की जरूरत नहीं है। खरीदार और संपत्ति को बेचने वालों की पहचान अब ई-केवाईसी से ही हो जाएगी। राज्य सरकार ने संपदा-2 सॉफ्टवेयर और मोबाइल एप को लांच किया है। सरकार ने संपदा-2 सॉफ्टवेयर और संपदा-2 विशेष मोबाइल एप को लांच किया। जिसके बाद प्रदेश में रजिस्ट्रेशन का काम काफी आसान हो जाएगा और लोग अपना रजिस्ट्रेशन बहुत ही आसानी से करवा पाएंगे। संपत्ति की जीआईएस मैपिंग, दस्तावोजों की फॉर्मेटिंग और बायोमैट्रिक की पहचान पूरे तरीके से डिजिटल हो जाएगी. सबसे अच्छी बात ये है कि ये सभी सुविधाएं आपके मोबाइल फोन पर भी उपलब्ध होगी।
पहले यहां शुरू किया गया
बता दें कि इस सुविधा को प्रदेश भर में लागू करने से पहले गुना, हरदा, डिंडौरी और रतलाम जिलों में पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर पहले शुरू किया गया था, ताकि अगर किसी भी तरह की कोई खामी हो तो उसे सुधारा जा सके। इस दौरान परीक्षण पूरी तरह सफल रहा जिसके बाद सरकार ने प्रदेश के सभी 55 जिलों में इसे लागू करने का फैसला लिया।
भटक रहे हैं रजिस्ट्री के लिए
रजिस्ट्रार कार्यालय और वकीलों के चक्कर काट कर परेशान हो गए। मात्र एक मकान की रजिस्ट्री कराना थी, आज पंद्रह दिन हो गए हैं। साफ्टवेयर डाउन हो गया। कल आना। गांव से यहां आना और फिर जाना। यह कोई खेल नहीं है।–रणजीत सिंह, कानीपुरा
इंतजार कीजिए, आपका नंबर भी आएगा एक प्लॉट खरीदा है। हम चाहते हैं यह दोनों बेटों के नाम कर दें। अखबार में पढ़ा था कि घर बैठे रजिस्ट्री हो जाएगी। हमने कोशिश की, सफल नहीं हुए ंअंतत: रजिस्ट्रार ऑफिस आना ही पड़ा। यहां आए तो पता चला कि पहले से नंबर लगे हुए हैं। राजेंद्र वर्मा, निजातपुरा, उज्जैन