अभी तक यह पता नहीं कि किसने कितनी कमाई की

अक्षरविश्व महाकाल की मार भ्रष्टाचार का अंत
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उज्जैन। महाकाल मंदिर में भ्रष्टाचार करने वाले सभी आरोपी जेल चले गए हैं। अपने पीछे वह कई सवाल छोड़ गए हैं। पुलिस ने केस बनाया, न्यायालय भेजा लेकिन यह खुलासा नहीं किया कि इनके मोबाइल से कितनी राशि का ट्रांजेक्शन हुआ? प्रशासन अभी इसका खुलासा नहीं कर सका है। अभिषेक भार्गव प्रोटोकॉल अधिकारी के रूप में कार्य कर रहा था। मंदिर से निकली चर्चा के अनुसार शाम सात बजे बाद भस्मार्ती के दौरान श्रद्धालुओं को नंदी हॉल में बैठाने का खेल शुरू होता था। रोजाना ७५ से लेकर 100अनुमति जारी होती थी, लेकिन पास इससे ज्यादा जारी होते थे। जो पास ज्यादा जारी होते थे, उसी में भ्रष्टाचार होता था।
प्रशासन ने दावा किया कि सीसीटीवी कैमरे में सबकुछ कैद होता था। अभी तक यह खुलासा नहीं हुआ है कि कितने पास जारी हुए और नंदी हॉल में कितने बैठे? यानी यहां गड़बड़ झाला है। जनता पूरी सच्चाई जानना चाहती है। यह सच्चाई अभी दबी हुई है। चर्चा तो यहां तक है कि जैसा यजमान, वैसा पैसा। यदि चर्चा पर भरोसा करें तो एक ही दिन में चार से लेकर पांच लाख रुपए तक का खेल होता था। इतनी बड़ी राशि क्या एक व्यक्ति अकेला ही अपने पास रखता था। सवाल यह भी है कि लंबे समय तक अभिषेक भार्गव को ही यह जिम्मेदारी क्यों दी गई? उसने जेल जाने से पहले यह कहा कि अब कोई नाम सामने नहीं आएगा। उसका यह बयान बहुत कुछ कहता है। क्या मंदिर के भ्रष्टाचार की कहानी यहीं विराम ले लेगी? अब रितेश भी आ गया है। वह मंदिर में हुए भ्रष्टाचार के कई राज खोल सकता है। सवाल यह है पुलिस कुछ बताएगी?
क्या यह भी सच है
क्रिस्टल कंपनी कर्मचारी जीतेंद्र पंवार के बारे में चर्चा-ए-आम है कि उसने एक पोकलेन और जेसीबी खरीदी थी। दोनों की कीमत कितनी है यह पाठक जानते हैं। इस खरीदी पर उसके पास इतनी धनराशि कैसे आई? पुलिस ने पूछताछ के बाद इसका खुलासा भी नहीं किया।
साइबर एक्सपर्ट की रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई
सीसीटीवी देख कर विशेषज्ञों ने क्या रिपोर्ट दी प्रशासन को
और वह आईटी सेल का प्रभारी बन गया
राजकुमार सिंह के मोबाइल और बैंक अकाउंट ने भी यह नहीं बताया उसमें कितने का ट्रांजेक्शन हुआ है? सिर्फ इतनी चर्चा जरूर हुई है कि मंदिर में उसका बड़ा दबदबा था। वह करीब २२ साल से काम कर रहा था। सफाई निरीक्षक के रूप में काम करने के बाद वह धर्मशाला प्रभारी बना फिर आईटी सेल का प्रभारी बन गया। अभी तक सिर्फ यही जानकारी सामने आई है कि उसने लाखों का ट्रांजेक्शन किया है। कितना किया है, किसको दिया है यह खुलासा नहीं किया गया है।
ट्रेवल्स एजेंसी किसकी है?
राजेंद्र सिसौदिया के बारे में बताया गया कि वह करीब २२ साल से मंदिर की व्यवस्था से जुड़ा रहा। उसके पास सभा मंडप का प्रभार था। उसने कितना पैसा कमाया? प्रशासन अभी यह खुलासा नहीं कर सका है। यदि इसके पास ट्रेवल्स एजेंसी है तो इसमें उसका कितना रोल है? उसके पास इतना पैसा कहां से आया?
गिरोह में कैसे शामिल हुआ जीतेंद्र
क्रिस्टल कंपनी का सुपरवाइजर जीतेंद्र पंवार अभी जेल मेें है। वह इस गिरोह में किस तरह शामिल हुआ। यदि वह भ्रष्टाचार कर रहा था तो कंपनी के अधिकारी क्या देख रहे थे। उसके बारे में कंपनी के अधिकारियों को जानकारी क्यों नहीं मिली? यह कृष्णा कंपनी से आया था। इसके बारे में भी प्रशासन ने अभी तक कोई जानकारी नहीं दी है।
कंपनी ने ओम पर नजर नहीं रखी…
ओमप्रकाश मालवीय यह क्रिस्टल कंपनी का सुपरवाइजर था। कंपनी को सुरक्षा की जिम्मेदारी है। यह भ्रष्टाचार करता रहा और कंपनी के अधिकारियों को पता नहीं चला, यह कैसे संभव हो सकता है। यह भी पहले कृष्णा कंपनी में काम कर चुका था। इसे सभा मंडप प्रिय था। इसके बारे में जांच करने वाले अधिकारियों ने कोई जानकारी नहीं दी है।