हर साल चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को कामदा एकादशी मनाई जाती है. इस साल 19 अप्रैल को कामदा एकादशी है. इस दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की भी पूजा-अर्चना की जाती है. साथ ही उनके निमित्त एकादशी व्रत किया जाता है कामदा एकादशी का व्रत भगवान विष्णु के लिए रखा जाता है. इस साल यह व्रत 19 अप्रैल के दिन रखा जाएगा. धार्मिक मान्यता के नुसार इस व्रत को करने पर पापों से मुक्ति मिलती है. कामदा एकादशी को मोक्ष प्राप्ति की एकादशी भी कही जाती है.
धार्मिक मान्यता है कि कामदा एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को सौ यज्ञों बराबर फल प्राप्त होता है. साथ ही ब्रह्म वध दोष से भी छुटकारा मिलता है. इसके अलावा, व्यक्ति द्वारा किए सभी पाप धुल हो जाते हैं. कामदा एकादशी पर आराध्य श्रीहरि विष्णु की पूजा करते हैं. आइए, कामदा एकादशी की तारीख शुभ मुहूर्त एवं पूजा विधि जानते हैं-
कामदा एकादशी कब है?
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि 18 अप्रैल की शाम 5 बजकर 31 मिनट पर शुरू होगी और अगले दिन 19 अप्रैल को शाम के 8 बजकर 04 मिनट पर समाप्त होगी. ऐसे में उदया तिथि के चलते 19 अप्रैल को कामदा एकादशी मनाई जाएगी.
कामदा एकादशी पारण का समय
व्रती 20 अप्रैल की सुबह 05 बजकर 50 मिनट से लेकर 8 बजकर 26 मिनट के बीच व्रत खोल सकते हैं. इस समय में स्नान-ध्यान कर भगवान विष्णु की पूजा करें और इसके बाद ब्राह्मणों को दान देकर व्रत का पारण करें.
ऐसी मान्यता है कि कामदा एकादशी का व्रत रखने से सभी प्रकार के पापों से मुक्ति मिल जाती है. कामदा एकादशी के पुण्य के प्रभाव से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं. यह भी माना जाता है कि इस व्रत को करने से आपको स्वर्ग की प्राप्ति होती है.एकादशी व्रत के दिन शुक्रवार का संयोग पड़ने से इस दिन का महत्व और ज्यादा बढ़ गया है. इस दिन विष्णु जी के साथ आप मां लक्ष्मी का भी आशीर्वाद प्राप्त कर सकते हैं. कामदा एकादशी को मोक्ष प्राप्त करने वाली एकादशी भी कहा जाता है.
कामदा एकादशी पूजा विधि
कामदा एकादशी के दिन सुबह उठकर नहाने के बाद साफ कपड़े पहने जाते हैं.
इसके बाद भगवान विष्णु को याद करते हुए व्रत का संकल्प लें.
पूजा करने के लिए लकड़ी की चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें.
इसके बाद प्रतिमा के सामने एक लोटे में जल, अक्षत, तिल और रोली डालकर रखें.
भगवान विष्णु को भोग में फल, दूध, फूल, पंचामृत और तिल आदि अर्पित करें.
पीले फूलों की माला अर्पित करें।
इसके बाद घी का दीपक जलाएं और मन में श्रीहरि और मां लक्ष्मी का स्मरण करें.
‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र का 108 बार जाप करें और श्री कृष्ण महामंत्र का भी 108 बार जाप करें।
फिर विष्णु भगवान की आरती करते हुए मंत्रों का जाप करें और आखिर में व्रत कथा पढ़ने के बाद पूजा संपन्न होती है.
कामदा एकादशी 2024 व्रत कथा
प्राचीन समय में भागीपुर नामक एक नगर था. जिस पर पुण्डरीक नाम का राजा राज्य करता था. राजा पुण्डरीक अनेक ऐश्वर्यों से युक्त था. उसके राज्य में अनेक अप्सरायें, गन्धर्व, किन्नर आदि वास करते थे. उसी नगर में ललित एवं ललिता नाम के गायन विद्या में पारन्गत गन्धर्व स्त्री-पुरुष अति सम्पन्न घर में निवास करते हुये विहार किया करते थे. उन दोनों में इतना प्रेम था कि वे अलग हो जाने की कल्पना मात्र से ही व्यथित हो उठते थे. एक बार राजा पुण्डरीक गन्धर्वों सहित सभा में विराजमान थे. वहां गन्धर्वों के साथ ललित भी गायन कर रहा था. उस समय उसकी प्रियतमा ललिता वहाँ उपस्थित नहीं थी.
गायन करते-करते अचानक उसे ललिता का स्मरण हो उठा, जिसके कारण वह अशुद्ध गायन करने लगा. नागराज कर्कोटक ने राजा पुण्डरीक से उसकी शिकायत की. इस पर राजा को भयङ्कर क्रोध आया और उन्होंने क्रोधवश ललित को श्राप दे दिया – “अरे नीच! तू मेरे सम्मुख गायन करते हुये भी अपनी स्त्री का स्मरण कर रहा है, इससे तू नरभक्षी दैत्य बनकर अपने कर्म का फल भोग.”
ललित गन्धर्व उसी समय राजा पुण्डरीक के श्राप से एक भयङ्कर दैत्य में परिवर्तित हो गया. उसका मुख विकराल हो गया. उसके नेत्र सूर्य, चन्द्र के समान प्रदीप्त होने लगे. मुँह से आग की भयङ्कर ज्वालायें निकलने लगीं, उसकी नाक पर्वत की कन्दरा के समान विशाल हो गयी तथा गर्दन पहाड़ के समान दिखायी देने लगी. उसकी भुजायें दो-दो योजन लम्बी हो गयीं. इस प्रकार उसका शरीर आठ योजन का हो गया. इस तरह राक्षस बन जाने पर वह अनेक दुःख भोगने लगा. अपने प्रियतम ललित का ऐसा हाल होने पर ललिता अथाह दुःख से व्यथित हो उठी. वह अपने पति के उद्धार के लिए विचार करने लगी कि मैं कहाँ जाऊँ और क्या करूँ? किस जतन से अपने पति को इस नरक तुल्य कष्ट से मुक्त कराऊँ?
राक्षस बना ललित घोर वनों में रहते हुये अनेक प्रकार के पाप करने लगा. उसकी स्त्री ललिता भी उसके पीछे-पीछे जाती और उसकी स्थिति देखकर विलाप करने लगती.
एक बार वह अपने पति के पीछे-पीछे चलते हुये विन्ध्याचल पर्वत पर पहुँच गयी. उस स्थान पर उसने श्रृंगी मुनि का आश्रम देखा. वह शीघ्रता से उस आश्रम में गयी तथा मुनि के समक्ष पहुँचकर दण्डवत् प्रणाम कर विनीत भाव से प्रार्थना करने लगी, “हे महर्षि! मैं वीरधन्वा नामक गन्धर्व की पुत्री ललिता हूँ, मेरा पति राजा पुण्डरीक के श्राप से एक भयङ्कर दैत्य बन गया है. उससे मुझे अपार दुःख हो रहा है. अपने पति के कष्ट के कारण मैं बहुत दुखी हूँ. हे मुनिश्रेष्ठ! कृपा करके आप उसे राक्षस योनि से मुक्ति का कोई उत्तम उपाय बतायें.”
समस्त वृत्तान्त सुनकर मुनि श्रृंगी ने कहा, “हे पुत्री! चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम कामदा एकादशी है. उसके व्रत करने से प्राणी के सभी मनोरथ शीघ्र ही पूर्ण हो जाते हैं.
यदि तू उसके व्रत के पुण्य को अपने पति को देगी तो वह सहज ही राक्षस योनि से मुक्त हो जायेगा एवं राजा का शाप श्राप शान्त हो जायेगा.”
ऋषि के कहे अनुसार ललिता ने श्रद्धापूर्वक व्रत किया तथा द्वादशी के दिन ब्राह्मणों के समक्ष अपने व्रत का फल अपने पति को दे दिया और ईश्वर से प्रार्थना करने लगी, “हे प्रभु! मैंने जो यह उपवास किया है, उसका फल मेरे पतिदेव को मिले, जिससे उनकी राक्षस योनि से शीघ्र ही मुक्ति हो.”
एकादशी का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त हो गया और अपने दिव्य स्वरूप को प्राप्त हुआ. वह अनेक सुन्दर वस्त्रों तथा आभूषणों से अलङ्कृत होकर पहले की भाँति ललिता के साथ विहार करने लगा.
कामदा एकादशी के प्रभाव से वह पहले की भाँति सुन्दर हो गया तथा मृत्यु के पश्चात् दोनों पुष्पक विमान पर बैठकर विष्णुलोक को चले गये.