जानिए कब है शीतला सप्तमी, पूजा विधि व महत्व 

By AV News

शीतला सप्तमी 01अप्रैल 2024

हिन्दू धर्म में मनाये जाने वाले सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से चैत्र माह में पड़ने वाली कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को महाशक्ति के ही मुख्य रूप यानि शीतला माता की पूजा-अर्चना की जाती है। आपको बता दें शीतला अष्टमी का यह मुख्य पर्व दो दिनों यानि कभी-कभी सप्तमी और कभी-कभी अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। शीतला अष्टमी के इस पर्व को बसोड़ा के नाम से भी जानते हैं।

शीतला सप्तमी शुभ मुहूर्त

सप्तमी तिथि प्रारम्भः- 31 मार्च 2024 रात्रि 09ः30 मिनट।

सप्तमी तिथि समाप्तः- 01 अप्रैल 2024 रात्रि 09ः09 मिनट तक।

शीतला सप्तमी पूजा मुहूर्तः- सुबह 06ः11 मिनट से 06ः39 मिनट तक।

शीतला सप्तमी का महत्व

प्रसिद्ध ’स्कंद पुराण’ में इस दिन के महत्व का उल्लेख है। हिंदू लिपियों के अनुसार, शीतला मां को दिव्य पार्वती देवी और दुर्गा माता का अवतार कहा जाता है। देवी शीतला संक्रमण की बीमारी चेचक को देने और ठीक करने दोनों के लिए जानी जाती हैं। इसलिए, इस दिन हिंदू भक्तों द्वारा अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए माता शीतला की पूजा की जाती है। ’शीतला’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है ’ठंडा’, जो अपनी शीतलता से इन रोगों को ठीक करने का संकेत देता है।

कौंन थी माता शीतला

माता शीतला के स्वरूप की बात करें तो स्कन्द पुराण में इसका अत्यधिक विस्तार से वर्णन करके बताया गया है। उसमें माँ शीतला के बारे में यह बताया गया है कि शीतला माता चेचक जैसे रोगों की देवी है। इनके स्वरूप के वर्णन के अनुसार इनके हाथों में सूप, कलश, झाडू, नीम के पत्ते और कलश इत्यादि उपस्थित है।

माता शीतला की सवारी गधा है जिस पर माँ सवारी करती हैं। इसके अलावा माता शीतला के साथ-साथ ज्वरसुर के दैत्य, चौसठ रोग, हैजा की देवी, त्वचा रोग के देवता घेटुकर्ण तथा रक्तवती देवी यह सभी बताये गये देवी-देवता भी माता शीतला के साथ विराजमान है। इसके अलावा माता के कलश में दाल के दाने के रूप में विषाणु, स्वास्थ्य वर्धक और रोगाणुनाशक जल है इसके अलावा उनके जल में 33 करोड़ देवी-देवताओं का भी निवास हैं।

माँ शीतला के हाथो में स्थित झाडू का मतलब लोगों कोे समाज के प्रति जागरूक करना भी है। कहा जाता है कि माता शीतला देवी की पूजा करने से व्यक्ति के सभी प्रकार के पापों और रोगों का भी नाश हो जाता है।

शीतला अष्टमी पूजा सामग्री और पूजा विधि

शीतला अष्टमी की विधिपूर्वक पूजन के लिए आवश्यक सामग्रियाँ। रोली, कुमकुम, अक्षत, मेंहदी, हल्दी, वस्त्र, मौली, दक्षिणा, फूल, दही, जल से भरा कलश, होली के बड़कुले, व्रत की कथा, आटे का दीपक, प्रसाद, मीठा आत, खाजा, नमक पारा, चूरमा, मगद, खाजा, पुए, पकौड़ी, बेसन चक्की, बाजरे की रोटी, चने की दाल, पूरी और कडवारे इत्यादि सामग्रियाँ माँ शीतला देवी की पूजा-अर्चना करने के लिए ले लें।

शीतला माता पूजा विधि

 शीतला माता की पूजा के लिए सप्तमी तिथि के दिन प्रातः जल्दी उठकर ठंडे पानी से स्नान करना चाहिए उसके बाद शीतला माता की मूर्ति के समक्ष स्वच्छ जल अर्पित करना चाहिए।

सप्तमी तिथि के एक दिन पहले प्रसाद बनाकर रख लें इसके लिए पहले चूल्हे की अच्छी तरह से सफाई करके स्नान करने के बाद ही भोग को बनायें।

उसके बाद रोली, मेंहदी, हल्दी, अक्षत और कलावा अर्पित करें यह सभी पूजा की सामग्रियाँ उन पर अर्पित करते समय यहाँ बताये गये ‘हं श्री शीतलायै नमः’ मंत्र का उच्चारण अवश्य करें

उसके बाद आटे के दीपक में शुद्ध घी और उसमें बाती डालकर केवल मूर्ति के सामने रख दें उसे प्रज्वलित न करें।

यह सभी विधि हो जाने के बाद बासी हलवे, बाजरे की रोटी, पूरी और राबड़ी इत्यादि का भोग लगायें।

भोग लगा लेने के बाद माँ शीतला देवी के शीतलाष्टक स्त्रोत का पाठ करें पाठ करने के बाद ध्यानपूर्वक शीतला सप्तमी के व्रत की कथा सुनें।

उसके बाद दोबारा माँ शीतला माता को जल चढ़ाकर बहते हुए जल में से थोड़ा सा जल लोटे में अवश्य रख लें यह जल अत्यधिक पवित्र माना जाता है। लोटे में लिए हुए जल को घर के सभी सदस्यों के आँख में लगायें और घर के हर एक कोने में इस जल का छिड़काव करें।

अब होलिका दहन वाले स्थान पर भी जल चढ़ाकर विधिपूर्वक पूजा करें।

अब उसके बाद हल्की को गिला करके अपने हाथ में लगाकर घर के मुख्य द्वार या रसोई घर के दरवाजे पर छाप लगाकर उस पर कुमकुम और अक्षत अवश्य लगायें।

अंत में भोग लगाये गये पकवान के साथ-साथ नीम का पत्ता भी भोग के साथ अपने परिवार के सदस्यों को खिलायें कहा जाता है नीम के पत्ते खाने से सारे रोग, दोष हमेशा के लिए दूर हो जाते हैं।

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