चतुर्दशी तिथि 13 नवंबर को दोपहर करीब 3 बजे से शुरू होकर 14 की दोपहर 2 तक
यम दीपदान शुक्रवार की शाम को
औषधि स्नान 14 नवंबर को सूर्योदय से पहले
रूप चौदस नरक चतुर्दशी को कहते हैं। इसे छोटी दिवाली के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व हर साल कार्तिक माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि अकाल मृत्यु से बचने के लिए इस दिन यम देवता के लिए दीप दान किया जाता है। इस बार नरक चतुर्दशी की तारीख लेकर यदि आपके मन में भ्रम की स्थिति है तो इस खबर के माध्यम से आप यह जान सकेंगे कि नरक चतुर्दशी 13 नवंबर को है या 14 नवंबर को होगी।
रूप चौदस की सही तिथि
हिन्दू पंचांग की गणना के अनुसार, चतुर्दशी तिथि 13 नवंबर को दोपहर करीब 3 बजे से शुरू होगी जो 14 की दोपहर 2 तक रहेगी। इसलिए यम दीपदान शुक्रवार की शाम को करना चाहिए और औषधि स्नान 14 नवंबर को सूर्योदय से पहले करना शुभ रहेगा।
नरक चतुर्दशी का मुहूर्त
यम पूजा और दीपदान मुहूर्त – शाम 5 बजकर 40 मिनट से 7 बजकर 10 मिनट तक (13 नवंबर)
अभ्यंग स्नान मुहूर्त – सुबह 5 बजकर 30 मिनट से 6 बजकर 44 मिनट तक (14 नवंबर)
रूप चौदस का धार्मिक महत्व
पौराणिक शास्त्रों में कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि का बड़ा महत्व बताया गया है। मान्यता के अनुसार इस दिन मृत्युलोक के देवता यमराज की पूजा की जाती है। यम देवता के लिए इस दिन दीप दान और औषधि स्नान करने से अकाल मृत्यु से मुक्ति मिलती है। भविष्य और पद्म पुराण के मुताबिक कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को सूर्योदय से पहले उठकर अभ्यंग यानी तेल मालिश कर औषधि स्नान करना चाहिए।
रूप चौदस के दिन इस विधि से जलाएं दीपक
- नरक चतुर्दशी पर घर के सबसे बड़े सदस्य को एक बड़ा दीया जलाना चाहिए।
- इस दीये को पूरे घर में घुमाएं।
- घर से बाहर जाकर दूर इस दीये को रख आएं।
- घर के दूसरे सदस्य घर के अंदर ही रहें और इस दीपक को न देखें।
नरक चतुर्दशी की पौराणिक कथा
कहा जाता है कि रति देव नाम के एक धर्मात्मा थे। उन्होंने अपने जीवन में कभी कोई पाप नहीं किया लेकिन फिर भी मृत्यु के दौरान उन्हें नरक लोक मिला यह देखकर राजा बोले कि मैंने कभी कोई पाप नहीं किया तो फिर आप क्यों मुझे लेने आए हो आपके आने का मतलब मुझे नरक में स्थान मिला है।
यह बात सुनकर यमदूत ने कहा कि हे वत्स एक बार आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा पेट लौट गया था, यह आपके उसी कर्म का फल है। इस बात को सुन राजा ने यमराज से एक वर्ष का समय मांगा और ऋषियों के पास अपनी इस समस्या को लेकर पहुंचे तब ऋषियों ने उन्हें कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का व्रत रखने और ब्राह्मणों को भोजन कराकर उनसे माफी मांगने को कहा।
एक साल बाद यमदूत राजा को फिर लेने आए, इस बार उन्हें नरक के बजाय स्वर्ग लोक ले गए तब ही से कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष को दीप जलाने की परंपरा शुरू हुई। ताकि भूल से हुए पाप को भी क्षमादान मिल सके।