नई बहू ससुराल में नहीं मनाती पहली होली, जानिए

होली हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक माना जाता है। हर साल फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा की रात को होलिका दहन किया जाता है। इसके अगले दिन रंगों का त्योहार यानी होली मनाई जाती है। होली को लेकर कई तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं। इस प्रथा के पीछे भारत में कई कहानियाँ प्रचलित हैं, जिनके बारे में शायद आपने कभी नहीं सुना होगा।
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कुछ हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि होलिका के आग में बैठने के अगले दिन उसका विवाह होना था। एक कहानी के अनुसार, जब होलिका की होने वाली सास बारात लेकर पहुंची, तो उसने होलिका की चिता को जलते हुए देखा। इसके बाद से हिंदुओं में होली पर नई बहू के मायके जाने की परंपरा शुरू हो गई और तब से आज भी नई बहू अपने ससुराल में पहली होली नहीं देखती। नई दुल्हन को पहली होली से कुछ दिन पहले उसके मायके भेज दिया जाता है, जिसके बाद वह अपने मायके में होली मनाती है।
नई बहू ससुराल में क्यों नहीं मनाती पहली होली?
सदियों पुरानी परंपरा के अनुसार नवविवाहित दुल्हन अपनी पहली होली अपने मायके में मनाती है। इसका कारण यह बताया जाता है कि पहली होली पर कभी भी सास-बहू को एक साथ होलिका दहन नहीं देखना चाहिए। इससे सास-बहू के रिश्ते में खटास आ सकती है।
यह मान्यता भी है प्रचलित
नई बहू की पहली होली मायके में मनाने का एक और कारण यह भी है कि शादी के तुरंत बाद दुल्हन को ससुराल में सहज महसूस नहीं होता है। यही भी एक कारण है कि पहली होली मायके में ही मनाने की परंपरा है, ताकि इस त्योहार का आनंद अच्छे से उठाया जा सके। कई मान्यताओं के अनुसार, गर्भवती महिला को भी ससुराल में होली खेलने से मना किया जाता है। गर्भवती महिला को अपने मायके में ही होली मनानी चाहिए।
रिश्ते में प्यार बनाने के लिए
जब नई दुल्हन होली मनाने के लिए अपने मायके जाती है,तो पति भी उसके साथ उसके परिवार वालों को होली की शुभकामनाएं देने जाता है। जिससे पति-पत्नी के बीच प्यार बढ़ता है और सभी के साथ रिश्ता भी मजबूत होता है।
बच्चे पर पड़ता है असर
कुछ लोगों का मानना है कि जब नई दुल्हन अपने मायके में अपनी पहली होली मनाने जाती है, तो उसका बच्चा बहुत सुंदर और संस्कारी होता है। जो उनके भविष्य के लिए बहुत अच्छा होता है।