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थर्ड क्लास बाबू को 12 साल तक बचाते रहे अफसर

मामला यूडीए में फर्जी तरीके से मकान आवंटन का, सीएम को शिकायत के बाद दर्ज हुई थी एफआईआर

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अक्षरविश्व न्यूज. उज्जैन:आखिरकार यूडीए में फर्जी दस्तावेजों के आधार पर मकान आवंटन के मामले में पुलिस ने यूडीए के बाबू और अन्य को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया है। 12 साल पहले फर्जीवाड़ा सामने आया था। प्राधिकरण प्रशासन ने कोई कार्रवाई नहीं की। थर्ड क्लास बाबू (तृतीय श्रेणी लिपिक) को अफसर बचाते रहे। कुछ दिनों पहले सीएम को फर्जीवाड़े की शिकायत के बाद एफआईआर दर्ज हुई।

 

उज्जैन में स्वतंत्रता सेनानी की मृत्यु के 27 साल बाद उनके कोटे में मकान आवंटन का कारनामा करने वाले यूडीए के बाबू और सेनानी के नाती को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है। यह फर्जीवाड़ा 2012 में किया गया था। तभी खुलासा होने के बाद आवंटन तो निरस्त हो गया था,लेकिन अफसर आरोपी बचे रहे।

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मृत स्वतंत्रता संग्राम सेनानी को फर्जी दस्तावेज के जरिए जीवित दर्शाते हुए इन्होंने भार्गव नगर में मकान आवंटित करवाया था। दोनों आरोपियों को 1 मई तक पुलिस रिमांड पर सौंपा है। मामले में स्वतंत्रता संग्राम सेनानी उत्तराधिकारी संगठन के संभागीय अध्यक्ष और राष्ट्रीय कोर कमेटी के सदस्य संजय चौबे ने शिकायत की थी।

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सीएम को शिकायत के बाद एफआइआर

14 जनवरी 2024 को स्वतंत्रता संग्राम सेनानी के उत्तराधिकारी संगठन के पदाधिकारी संजय चौबे ने मुख्यमंत्री मोहन यादव को मामले की शिकायत की, तब मामला एक बार फिर सुर्खियों में आया 12 वर्ष बाद एक बार फिर हुई शिकायत के बाद तत्कालीन बाबू प्रवीण गहलोत से सारे दायित्व छीन लिए गए।

उन्हें कमिश्नर कार्यालय अटैच कर जांच शुरू कर दी। दोबारा खुली जांच के करीब तीन माह बाद रविवार तड़के 2 बजे विकास प्राधिकरण के बाबू रहे प्रवीण गेहलोत और स्वतंत्रता सेनानी के नाती आशीष अग्रवाल के खिलाफ थाना माधव नगर में धारा 420,467,468,471, और 34 में मामला दर्ज कर गिरफ्तार कर लिया है। माधवनगर पुलिस के अनुसार दोनों आरोपियों को कोर्ट में पेश किया गया, जहां से दोनों को 1 मई तक पुलिस रिमांड पर सौंपा गया है।

पुलिस ने बताया खुरई जिला सागर निवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सुदामाप्रसाद अग्रवाल के नाम पर 13 फरवरी 2012 से 15 अप्रैल 2013 के बीच कूटरचित दस्तावेज तैयार कर यूडीए के बाबू प्रवीण पिता कैलाशचंद्र गेहलोत निवासी फव्वारा चौक और सर्विस प्रोवाइडर आशीष पिता सत्यनारायण अग्रवाल ने एलपी भार्गवनगर में स्वतंत्रता सेनानी के कोटे में आशीष ने ही मकान का आवंटन कराया था। जबकि सेनानी सुदामाप्रसाद अग्रवाल की वर्ष 1985 में मृत्यु हो चुकी है। सर्विस प्रोवाइडर आशीष तो सुदामाप्रसाद अग्रवाल का नाती है।

अब होगी गेहलोत पर निलंबन की कार्रवाई

यूडीए सीईओ संदीप सोनी का कहना है कि भार्गवनगर के मकान आवंटन में बाबू प्रवीण गेहलोत की गिरफ्तारी तथा पुलिस रिमांड पर लिए जाने के चलते कार्रवाई की जा रही है। उसके खिलाफ निलंबन की कार्रवाई की जाएगी।

किसी ने गंभीरता से परीक्षण नहीं किया

सहायक अधीक्षक से लेकर संपदा अधिकारी ने दस्तावेजों का सत्यापन करवाए बगैर ही हरी झंडी देते हुए आगे बढ़ाते गए।

सर्विस प्रोवाइडर आशीष ने यूडीए के बाबू गेहलोत के साथ मिलकर सेनानी सुदामाप्रसाद अग्रवाल को फर्जी दस्तावेज तैयार कर जीवित दर्शाते हुए उनका आय प्रमाण पत्र, शपथ पत्र आदि तैयार कर उक्त मकान आवंटित करवा लिया। शिकायत पर पुलिस ने यूडीए के बाबू गेहलोत को थाने पर तलब कर पांच घंटे पूछताछ के बाद छोड़ दिया था।

फर्जी व कूटरचित दस्तावेजों की फाइल तैयार कर संपदा शाखा के बाबू प्रवीण गेहलोत ने यूडीए में पेश की थी। इसमें तत्कालीन सहायक अधीक्षक सीके बुखारिया ने फाइल का परीक्षण किया था और फिर आगे बढ़ा दी थी।

यूडीए अधीक्षक सुल्तान खान ने फाइल में लगाए दस्तावेजों को सही मानते हुए आगे बढ़ा दी। संपदा अधिकारी डीके नीमा ने भी दस्तावेजों को लेकर कोई आपत्ति तक दर्ज नहीं करवाई। कूटरचित दस्तावेजों को ही सही मानते हुए फाइल को अधिकृत अधिकारी के समक्ष पेश कर दिया। इसके बाद आवंटन के आदेश जारी हो गए। इसमें सर्विस प्रोवाइडर आशीष पिता सत्यनारायण अग्रवाल ने करीब 8 लाख रुपए यूडीए में जमा करवा दिए। इसके बाद भार्गवनगर योजना में वर्ष 2012 में मकान नंबर 8-9 का आवंटन कर दिया गया।

खुलासा होने के बाद प्लॉट का आवंटन तो निरस्त कर दिया गया लेकिन आरोपियों पर 12 साल तक कोई कार्रवाई सामने नहीं आई। जाहिर है यूडीए के अफसर मिले हुए थे और वे ही आरोपियों को बचाते रहे। अभी भी सिर्फ दो लोग पकड़ में आए हैं, जबकि बाकी के अफसर बचे हुए हैं।

स्वतंत्रता सेनानी अग्रवाल के नाम का फर्जी आय प्रमाण पत्र दिनांक 19-02-2012 को तहसीलदार सुंदरसिंह चैहान के हस्ताक्षर से बनवाकर प्रस्तुत कर दिया।

मामले में 12 साल में यूडीए प्रशासन ने आरोपियों के खिलाफ पुलिस कार्रवाई करवाने की उचित पहल नहीं की। इसका फायदा उठा गेहलोत पूरी व्यवस्था में खुले तौर पर हस्तक्षेप करता रहा। उसे पीआरओ व सहायक संपदा अधिकारी के पद से दिया गया।

2014 में प्राधिकरण कि जांच समिति ने भी बाबू गहलोत की लापरवाही मानते हुए दोषी ठहराया और बाद में एफआईआर के लिए सिफारिश भी की गई। उसकी रसूख के चलते मामला पुलिस में नहीं गया। फर्जीवाड़े के खेल में जमा राशि किसी अन्य के खाते से बने डीडी से यूडीए में जमा हुई। मृत हो चुके व्यक्ति के नाम पर शपथ पत्र, उनका फोटो, हस्ताक्षर कर भवन कब्जाने का मामला धारा 420 का बन रहा था। इस मामला करीब 12 वर्ष पहले ही एफआइआर दर्ज की जानी चाहिए थी। लेकिन अब जाकर हुई।

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