महाकाल मंदिर में मोबाइल, मस्ती और सफाई के नाम पर सिर्फ दिखावा

सफाई के नाम पर सिर्फ दिखावा, साफ जगह को साफ किया कर्मचारियों ने
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उज्जैन। केक कटने के बाद भी महाकाल मंदिर की व्यवस्थाओं में सुधार नहीं आया है। प्रतिबंधित मोबाइल चल रहे हैं। सेल्फी ली जा रही है और वीडियो भी बनाए जा रहे हैं। मस्ती का आलम है कोई देखने वाला नहीं है। जिन्हें देखने की जिम्मेदारी दी गई है वे कहीं और देख रहे हैं। यानी सुरक्षा और व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं है।

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महाकाल मंदिर में इन दिनों अव्यवस्था और मनमानी का बोलबाला है। जो व्यवस्था है वह शायद दिखावे के लिए ही है। हाल ही में केक काटकर जन्मदिन मनाने की घटना पूरे देश ने देखी। केक काटने वाले निलंबित हो गए हैं, लेकिन तब भी यह सवाल उठा था कि केक कट कैसे गया। इस घटना ने मंदिर की व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी। अब आगे का हाल भी देख लीजिए। महाकाल मंदिर में मोबाइल पूर्ण रूप से प्रतिबंधित है।
मंदिर समिति की ओर से मोबाइल रखने की व्यवस्था की गई है। जिनके पास मोबाइल होते हैं वे यहां रख देते हैं और उन्हें टोकन दे दिया जाता है। यहां तक बात समझ में आती है कि समिति ने व्यवस्था बना दी। सवाल यह है कि इसका पालन कितना होता है। मोबाइल चेकिंग कितनी होती है। बस यहीं से अव्यवस्था और लापरवाही की शुरुआत होती है। कर्मचारियों को उनका कत्र्तव्य याद दिलाएं तो वे सुधरने के बजाय मुंहजोरी करने लगते हैं।
चैकिंग वाले क्या देखते हैं
मंदिर समिति की ओर से प्रवेश मार्ग पर चेकिंग होती है। यहां कर्मचारी तैनात किए गए हैं। इन कर्मचारियों ने यदि ठीक तरह से अपनी ड्यूटी निभाई होती श्रद्धालु मोबाइल लेकर नहीं जाते। मंदिर में गुरुवार को आलम यह था कि सरेआम सेल्फी ली जा रही थी। श्रद्धालु वीडियो बना रहे थे। इन्हें रोकने-टोकने वाला कोई नहीं था। ऐसा नहीं है कि मंदिर में कर्मचारी नहीं थे। थे, लेकिन उनका ध्यान कहीं ओर था। इतना ही नहीं, वीडियो कॉलिंग हो रही थी। यहां आए श्रद्धालु और दूर बैठै परिजन को मोबाइल पर मंदिर दिखा रहे थे। यानी मस्ती और मनमानी का आलम था।
सफाई के नाम पर भी दिखावा
स्वच्छता ही सेवा अभियान के तहत गुरुवार को कलेक्टर नीरज कुमार सिंह के निर्देशन सफाई अभियान चलाया गया। सभी शासकीय कार्यालयों और परिसर में सफाई हुई। महाकाल मंदिर में दिखावा हुआ। सफाई करने वालों ने उस स्थान पर सफाई की जिसे सफाई कर्मचारी पहले ही साफ कर चुके थे।
सफाई करते समय इनके चेहरे पर मुस्कान थी। मुस्कुराते हुए वे अपने साथियों को झाडू़ दे रहे थे। मुस्कान गवाही दे रही थी कि जो रहा है वह भावना नहीं औपचारिकता और दिखावा था। ऐसी सफाई करने का मतलब जिसमें भाव न हो। ऐसे दिखावे से किसी को प्रेरणा नहीं मिलेगी। ऐसी सफाई की समाज में जगहंसाई होती है। सफाई अभियान की मूल भावना और मूल तत्व यही है कि आगाज हम करें, अंजाम तक आप पहुंचाएं। यदि आगाज ऐसा होगा जो महाकाल मंदिर में हुआ तो समझ लीजिए कि अंजाम क्या होगा।









