आरएमओ का तर्क : इमरजेंसी के लिए व्यवस्था रखते हैं
अक्षरविश्व न्यूज उज्जैन। यदि किसी व्यक्ति को रात के समय स्ट्रीट डॉग काट ले और वह रैबीज का इंजेक्शन लगवाने जिला चिकित्सालय पहुंचे तो ड्यूटी स्टाफ द्वारा उसे अगले दिन ओपीडी खुलने के बाद आने का कहकर लौटा दिया जाता है। ऐसे जवाब से अस्पताल में कई बार विवाद की स्थिति भी बनती है।
जिला चिकित्सालय की इमरजेंसी 24 घंटे खुली रहती है जहां सभी प्रकार के मरीजों का उपचार होता है। ऐसी स्थिति में यदि स्ट्रीट डॉग के काटने से घायल होने वाले लोग भी रात के समय उपचार कराने जिला चिकित्सालय पहुंचते हैं लेकिन ड्यूटी स्टाफ व डॉक्टर्स द्वारा घायलों को न तो कोई दवा गोली दी जाती है और न ही ड्रेसिंग कर रैबीज का इंजेक्शन लगाया जाता है। घायल व्यक्ति अथवा उनके परिजन और अस्पताल स्टाफ के बीच कई बार विवाद की स्थिति भी उत्पन्न होती है।
इस संबंध में आरएमओ डॉ. नीतराज गौर से चर्चा की गई तो उनका कहना था कि स्ट्रीट डॉग के काटने पर मरीजों को ड्रेसिंग की आवश्यकता नहीं होती घाव को सिर्फ साबुन से स्वच्छ पानी से धोना होता है। इसके लिये घायल को दवा या गोली देने की आवश्यकता भी नहीं होती।
स्ट्रीट डॉग के काटने के 48 घंटों में रैबीज का इंजेक्शन लगवाना होता है। यदि किसी व्यक्ति को रात में स्ट्रीट डॉग ने काटा है तो वह गले दिन ओपीडी के समय अस्पताल पहुंचकर इंजेक्शन लगवा सकता है। डॉ. गौर ने बताया कि रैबीज इंजेक्शन की एक बायल से 6 से 7 लोगों को इंजेक्शन लगाया जा सकता है। इसकी कीमत भी अधिक होती है। एक बार बायल खोलने के बाद निर्धारित समय के अंदर उसका उपयोग करना होता है। यदि रात में दूसरे मरीज नहीं आते हैं तो उक्त बायल को फेंकना होगा। इस कारण मरीज को अगले दिन आने के लिये कहा जाता है। हालांकि इमरजेंसी के लिये बायल रखी जाती है और मरीज की हालत को देखते हुए उसे तत्काल रैबीज का इंजेक्शन भी लगाया जाता है।