Rishi Panchami व्रत कब है, जानें पूजा मुहूर्त और महत्व

By AV NEWS

ऋषि पंचामी हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को मनाई जाती है. हिंदू धर्म में ऋषि-मुनियों का खास महत्व है. यही कारण है कि उनके सम्मान के लिए ऋषि पंचमी (Rishi Panchami 2022) का व्रत रखा जाता है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऋषि पंचमी (Rishi Panchami) सप्तऋषियों को समर्पित है.

ऋषि पंचमी को गुरू पंचमी (Guru Panchami 2022) भी कहा जाता है. इस दिन सप्त ऋषियों की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस दिन ऋषियों की पूजा करने से इंसान पाप कर्म से मुक्त हो जाता है. आइए जानते हैं ऋषि पंचमी की तिथि, शुभ मुहूर्त, मंत्र और महत्व के बारे में.

ऋषि पंचमी शुभ मुहूर्त 

  • ब्रह्म मुहूर्त – 1 सितंबर को सुबह 04 बजकर 29 मिनट से सुबह 05 बजकर 14 मिनट तक
  • रवि योग – 1 सितंबर को सुबह 05 बजकर 58 मिनट से दोपहर 12 बजकर 12 मिनट तक
  • अभिजित मुहूर्त – 1 सितंबर को सुबह 11 बजकर 55 मिनट से 12 बजकर 46 मिनट तक
  • विजय मुहूर्त – 1 सितंबर को दोपहर बाद 02 बजकर 28 मिनट से 03 बजकर 19 मिनट तक

ऋषि पंचमी व्रत का महत्व 

ऋषि पंचमी (Rishi Panchami 2022) के दिन सप्त ऋर्षियों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए व्रत रखा जाता है. मान्यता है कि इस दिन व्रत रखने से सुख, शांति और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है. माना जाता है कि ऋषि पंचमी का व्रत करने से अगर किसी महिला से रजस्वला (पीरियड्स) के दौरान कोई भूल हो जाती है, तो इस व्रत को करने उस भूल के दोष को समाप्त किया जा सकता है

ऋषि पंचमी 2022 व्रत पूजा मंत्र 

‘कश्यपोत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोथ गौतमः।

जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः॥

दहन्तु पापं सर्व गृह्नन्त्वर्ध्यं नमो नमः’

पूजा विधान

यह व्रत जाने अनजाने हुए पापों के प्रक्षालन के लिए स्त्री-पुरुष दोनों को करना चाहिए। व्रत करने वाले को गंगा नदी या किसी अन्य नदी अथवा तालाब में स्नान करना चाहिए। यदि यह सम्भव न हो तो घर पर ही पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर लेना चाहिए। तत्पश्चात्, गोबर से लीपकर, मिट्टी या तांबे का जल भरा कलश रखकर अष्टदल कमल बनावें। अरुन्धती सहित सप्त ऋषियों को पूजन कर कथा सुनें तथा ब्राह्मण को भोजन कराकर स्वयं भोजन करें।

ऋषि पंचमी कथा

सिताश्व नाम के राजा ने एक बार ब्रह्माजी से पूछा – पितामह! सब व्रतों में श्रेष्ठ और तुरन्त फलदायक व्रत कौन सा है? ब्रह्माजी ने बताया कि ऋषि पंचमी का व्रत सब व्रतों में श्रेष्ठ और पापों का विनाश करने वाला है। ब्रह्माजी ने कहा, विदर्भ देश में उत्तंक नामक एक सदाचारी ब्राह्मण रहता था। उसकी पत्नी बड़ी पतिव्रता थी, जिसका नाम सुशीला था। उस ब्राह्मण के एक पुत्र तथा एक पुत्री दो संतान थी। विवाह योग्य होने पर उसने समान कुलशील वर के साथ कन्या का विवाह कर दिया। दैवयोग से कुछ दिनों बाद वह विधवा हो गई। दुखी ब्राह्मण दम्पति कन्या सहित गंगा तट पर कुटिया बनाकर रहने लगे।

एक दिन ब्राह्मण कन्या सो रही थी कि उसका शरीर कीड़ों से भर गया। कन्या ने सारी बात मां से कही। मां ने पति से सब कहते हुए पूछा- प्राणनाथ! मेरी साध्वी कन्या की यह स्थिति होने का क्या कारण है?

उत्तंक ने समाधि द्वारा इस घटना का पता लगाकर बताया- पूर्व जन्म में भी यह कन्या ब्राह्मणी थी। ये रजस्वला होने पर भी बर्तनों को छू लेती थी। इसलिए इसके शरीर में कीड़े पड़े हैं।

धर्म-शास्त्रों की मान्यता है कि रजस्वला स्त्री पहले दिन चाण्डालिनी, दूसरे दिन ब्रह्मघातिनी तथा तीसरे दिन धोबिन के समान अपवित्र होती है। वह चैथे दिन स्नान करके शुद्ध होती है। यदि यह शुद्ध मन से अब भी ऋषि पंचमी का व्रत करें तो इसके सारे दुख दूर हो जाएंगे और अगले जन्म में अटल सौभाग्य प्राप्त करेगी।

पिता की आज्ञा से पुत्री ने विधिपूर्वक ऋषि पंचमी का व्रत एवं पूजन किया। व्रत के प्रभाव से वह सारे दुखों से मुक्त हो गई। अगले जन्म में उसे अटल सौभाग्य सहित अक्षय सुखों का भोग मिला।

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