सनातन श्रमण संस्कृति संवाहक वैशाली के महावीर

By AV NEWS

नर से नारायण होने की विधा बताने वाली सनातन श्रमण संस्कृति के संवाहक तीर्थंकरों की पंरपरा में अंतिम तीर्थंकर हुए महावीर। महावीर का जन्म चैत्र शुक्ल त्रयोदशी चन्द्रवार 27 मार्च 598 ईसवी पूर्व ‘कुण्डपुर’ में हुआ। कुण्डपुर वैशाली ( पटना से ३0 मील उत्तर में आधुनिक बसाढ़ ग्राम) का उपनगर था। ‘वैशाली’ विदेह की समृद्ध राजधानी थी। कुण्डपुर (कुण्डग्राम) या क्षत्रियकुण्ड का अर्थ सुख रूपी जल का कुण्ड है।

अनेक प्राचीन नगरों के साथ यह वैशाली भी दीर्घकाल तक इतिहासविदों के लिए अज्ञात रहा। किंतु विगत एक शताब्दी में जो पुरातत्व संबंधी खोज शोध हुई है उससे प्राप्त प्राचीन भग्नावशेषों, मुद्राओं व शिलालेखों आदि के आधार से प्राचीन वैशाली की ठीक स्थिति अवगत हो गई है और निसंदेह रूप से प्रमाणित हो गया है कि बिहार राज्य में गंगा के उत्तर में मुजफ्फरनगर जिले के अंतर्गत बसाढ़ नामक ग्राम ही प्राचीन वैशाली है जो कि वर्तमान में वैशाली जिला है।

दीर्घकाल से महावीर स्वामी का जन्मस्थान बिहार में नालंदा के समीप कुण्डलपुर भी माना जाता है, इसी प्रकार श्वेताम्बर संप्रदाय द्वारा महावीर का जन्मस्थान मुंगेर जिले में लच्छुआड़ ग्राम के समीप क्षत्रिय कुण्ड को माना गया है किंतु व्यापक रूप से वर्तमान बसाढ़ के समीप वासु कुण्ड नामक ग्राम को ही प्राचीन कुण्डपुर या कुण्डग्राम स्वीकार किया गया है । स्थानीय जनकथा के अनुसार एक उर्वर भूखंड जो वहीं के एक सिम्हा या नाथ क्षत्रिय परिवार के स्वामित्व में है, जिस पर कभी खेती नहीं की गई। क्योंकि उनकी प्रत्येक पीढ़ी यह विश्वास करती आ रही है कि भगवान महावीर का जन्म इसी स्थान पर हुआ था, इसलिए यह पूजनीय स्थान है, इस पर हल नहीं चलाया जाना चाहिए। इन सब बातों पर समुचित विचार करके विद्वानों व इतिहासज्ञों ने उसी स्थल को महावीर की जन्मस्थली स्वीकार किया।

तत्कालीन बिहार सरकार द्वारा इस स्थल को अपने अधिकार में लेकर उस पर चारदीवारी करा कर वहां पर संगमरमर की कमलाकार वेदिका स्थापित कर दी गई तथा एक शिलापट्ट अर्धमागधी भाषा (प्राचीन स्थानीय भाषा) एवं हिंदी भाषा में अंकित किया गया है, जिसमें वर्णन किया गया है कि यह वह स्थल है जहां भगवान महावीर का जन्म हुआ था और जहां से वे अपने ३0 वर्ष के कुमारकाल को पूरा कर प्रव्रजित हुए थे।

शिलालेख में यह भी उल्लेखित है कि भगवान के जन्म से 2555 वर्ष व्यतीत होने पर दिनांक 2३ अप्रैल 1956 को भारत के महामहिम राष्ट्रपति श्री राजेन्द्रप्रसाद ने यहां आकर इस स्मारक का उद्घाटन किया। महावीर स्मारक के समीप ही बिहार राज्य शासन द्वारा प्राकृत जैन शोध-संस्थान भी स्थापित किया गया है। महावीर के जीवनवृत के संदर्भ में अनेक संश्रुतियां उपलब्ध है। राजा सिद्धार्थ एवं उनकी रानी त्रिशला या प्रियकारिणी के द्वारा आसाढ़ शुक्ल षष्ठी, शुक्रवार 17 जून 599 ईसवी पूर्व को गर्भधारण करने के 9 माह 7 दिन और 12 घंटे पश्चात पुत्र महावीर का जन्म हुआ।

पिता सिद्धार्थ की गोत्र कश्यप और माता त्रिशला का पैतृक गोत्र वशिष्ठ था। महावीर का नाम जन्म से वर्धमान था। अपने विशेष गुणों के अनुरूप ही वे ज्ञातपुत्र, वैशालीय, अतिवीर, सन्मति आदि नामों से भी विख्यात हुए। महावीर ने अल्पवय में ही भौतिक जीवन की क्षणभंगुरता एवॅं क्षणिक सुख – दु:ख के कारणों को जान लिया और इस क्षणभंगुरता से मुक्ति पाने हेतु इसके बीज रूप पराश्रय जनित कर्मों की सकल निर्जरा हेतु राग-द्वेष रहित वीतरागी श्रमण साधना को अंगीकार कर अपनी अविनाशी शाश्वत सत्ता यानी शुद्धात्मा को प्राप्त कर अपनी आत्मा को परमात्मा स्वरूप में प्रतिष्ठित कर जन्म – जरा- मृत्यु के अनवरत चक्र से स्वयं तो मुक्त हुए ही साथ ही जगत को भी चिदानन्द भोग का मार्ग बतलाया।

@दिनेश गोधा
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