युवा भटक न जाएं इसलिए रामकथा श्रवण करने की आवश्यकता अधिक

By AV News

महामंडलेश्वर गुरू मां आनंदमयी ने भक्तों को बताया श्रीरामकथा का महत्व

अक्षरविश्व न्यूज. उज्जैन। जब भाग्य उदय हो जाता है तब कथा सुनने और कहने का मौका मिलता है। रामचरित मानस साधारण ग्रंथ नहीं है। जीवन में जब व्यक्ति का मन निर्मल होता है तब कथा श्रवण करने का मौका मिलता है। राग, द्वेष, क्रोध, रोष, ईष्र्या, अहंकार हो तब कथा श्रवण नहीं कर सकते। विश्वास का नाम ही रामकथा है। जीवन कैसे जिया जाए, समाज में देश में कैसे जिया जाए यह सिखाती है रामकथा। राम की कथा सुनने के बाद जीवनभर की व्यथा दूर हो जाती है। राम वो हैं, कि राम बोलने से ही मन के विकार दूर हो जाते हैं, शांति और शीतलता आ जाती है। राम बोलने से ही मन पवित्र हो जाता है।

यह बात बडऩगर रोड़ स्थित मोहनपुरा में श्री बाबाधाम मंदिर में संगीतमय श्रीराम कथा के प्रथम दिन महामंडलेश्वर गुरू मां आनंदमयी ने कही। गुरू मां आनंदमयी ने प्रथम दिवस श्रीराम कथा के महत्व को बताते हुए कहा कि संसार जगत का कोई कोना ऐसा नहीं जहां भगवान नहीं। श्रीराम कथा को श्रवण करने से संसार की हर विपदा मिट जाती है। कथा हमारे जीवन के आत्मबल को मजबूत कर देती है। व्यक्ति के जीवन में सबकुछ है पर हम संस्कारों में पिछड़ते जा रहे हैं, हमारे बच्चे पब और पार्टियों में बह न जाएं इसलिए कथा को श्रवण करने की आवश्यकता है। मंदिर सचिव महंत आदित्यपुरी राजा भैया ने बताया कि कथा के मुख्य यजमान स्वयं हनुमानजी महाराजजी है।

शिवमहापुराण कथा में शिव-पार्वती विवाह प्रसंग सुनाया

उज्जैन। भगवान शंकर विवाह के समय अपना नवीन श्रृंगार नहीं करते बल्कि जो उनका नित्य सहज रूप है, दूल्हा वेश में भी उसी को धारण करते हैं। भगवान शंकर सर्पों के ही आभूषण और सिंह की छाल को वस्त्र रूप में धारण करते हैं और भस्म लगाते हैं। उनके मस्तक पर गंगा और चंद्रमा सुशोभित रहता है। भगवान शिवजी की सुंदरता वस्त्र और आभूषण पर आधारित नहीं है। सहजता व सरलता ही भगवान शंकर का जीवन दर्शन है। भगवान शिव का स्वरूप सत्यं शिवं सुंदरम है। यह बात पं. अजय नरेंद्र व्यास ने सांवेर रोड, दो तालाब स्थित गंगेश्वर महादेव मंदिर में श्री शिवमहापुराण के नौवें दिन शिव-पार्वती विवाह प्रसंग का वर्णन करते हुए कही। उन्होंने कहा भगवान शिव के तीन नेत्र सूर्य, चंद्र और अग्नि के प्रतीक हैं।

दक्षिण नेत्र सूर्य, वाम नेत्र चंद्रमा और मध्य नेत्र अग्नि है। यह तीनों मूलत: एक ही है। भगवान शिव के तीन नेत्र सुजन, पालन और संहार के प्रतीक हैं। सहजता और सरलता ही भगवान शंकर का जीवन दर्शन है। पं. व्यास ने कथा में रामेश्वर ज्योतिर्लिंग व घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग की महिमा का वर्णन किया। महिला भक्त मंडल की ओर से बाबा श्री गंगेश्वर महादेव मंदिर में शिव विवाह विवाह उत्सव के भजन-कीर्तन किए गए पश्चात शिव पूजन कर हवन यज्ञ द्वारा पूर्णाहुति कर छप्पन भोग लगाया गया व महाआरती की गई।

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