महाशिवरात्रि का पावन पर्व फाल्गुन मास के कृष्णा पक्ष चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। जिस समय त्रयोदशी समाप्त होकर चतुर्दशी शुरू होता है, वह महाशिवरात्रि के पूजन का सबसे शुभ समय माना जाता है। इस साल, महाशिवरात्रि 26 फ़रवरी को को मनाया जाएगा। आइए जानते हैं फाल्गुन माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को मनाई जाने वाली शिवरात्रि का अत्यधिक महत्व है।
पुराणों के अनुसार, इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह हुआ था। इसे शिव-पार्वती के मिलन का दिन भी कहा जाता है। मान्यता है कि इस दिन शंकर जी और देवी पार्वती की पूजा करने से वे प्रसन्न होते हैं और सभी दुखों का निवारण करते हैं। इस अवसर पर महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए निर्जला उपवास रखती हैं।
इस दिन भक्त व्रत रखकर भगवान शिव की पूजा-अर्चना करते हैं और शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं। इस दिन जलाभिषेक और रुद्राभिषेक करने से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। माना जाता है कि इस दिन शिव की कृपा से व्यक्ति के सभी दुखों का अंत होता है और उसे सुख-समृद्धि का वास होता है। विशेष रूप से महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग की पूजा करने से व्यक्ति की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।
महाशिवरात्रि पर चार प्रहर पूजा मुहूर्त:
प्रथम प्रहर पूजा समय – 26 फरवरी को शाम 06 बजकर 19 मिनट से रात 09 बजकर 26 मिनट तक
द्वितीय प्रहर पूजा समय – 26 फरवरी को रात 09 बजकर 26 मिनट से रात 12 बजकर 34 मिनट तक
तृतीय प्रहर पूजा समय – 27 फरवरी की रात 12 बजकर 34 मिनट से सुबह 03 बजकर 41 मिनट तक
चतुर्थ प्रहर पूजा समय – 27 फरवरी को सुबह 03 बजकर 41 मिनट से सुबह 06 बजकर 44 मिनट तक
महत्व
इस रात, जो साल की सबसे अंधेरी रात भी है, ग्रहों की स्थिति मानव तंत्र में ऊर्जा का एक शक्तिशाली प्राकृतिक उभार पैदा करती है। पूरी रात सीधे खड़े होकर जागते रहना और सचेत रहना व्यक्ति के शारीरिक और आध्यात्मिक कल्याण के लिए अत्यंत फायदेमंद है।
घर पर महाशिवरात्रि की पूजा कैसे करें?
सुबह स्नान के बाद सफेद रंग के कपड़े पहनें और फिर भोलेनाथ के सामने निराहार व्रत का संकल्प लें.
अगर आप निराहार नहीं रह सकते हैं, तो दूध, फल या फलों के रस का सेवन कर सकते हैं.
दिनभर ‘ऊं नम: शिवाय’ मंत्र का जाप करना चाहिए. भोलेनाथ की पूजा में त्रिपुंड का विशेष महत्व माना गया है.
शाम को सूर्यास्त से पहले फिर से स्नान और फिर शाम के समय शुभ मुहूर्त में घर में पूजा स्थल पर गंगाजल छिड़कें.
अब उत्तर दिशा की ओर मुंह करके चंदन को तीन उंगलियों में लगाएं. अपने सिर के बायीं ओर से दायीं ओर की तरफ त्रिपुंड लगाएं.
फिर घर के मंदिर में शिवलिंग की पूजा करें. पूजा में सबसे पहले गणपति बप्पा का नाम लें. उसके बाद ही शिव पूजन शुरू करें.
पूजा करते समय आपका मुंह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए. हाथ में रुद्राक्ष और एक बेलपत्र लेकर इस मंत्र को बोलते हुए पूजा का संकल्प लें –
ममाखिलपापक्षयपूर्वकसलाभीष्टसिद्धये शिवप्रीत्यर्थं च शिवपूजनमहं करिष्ये
फिर शुद्ध जल लें और उसमें थोड़ा सा गंगाजल मिलाएं. इसी जल से शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए और इस दौरान मंत्र का जाप करें.
जल से अभिषेक करने के बाद पंचामृत बनाएं. इसे बनाने के लिए दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल, गन्ने का रस और शक्कर मिलाएं.
इस पंचामृत से शिवलिंग का अभिषेक करें. फिर एक बेलपत्र चढ़ाकर शिवलिंग की पूजा करें. भस्म या चंदन से महादेव को त्रिपुंड लगाएं.
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् । उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ॥ –
शिव जी का अभिषेक करते समय महामृत्युंजय मंत्र का जाप करते रहें. इस मंत्र का उच्चारण मात्र से शिव जी समस्त प्रार्थना पूरी करते हैं.
11 बेलपत्र में ऊं लिखकर भोलेनाथ को अर्पित करें. बेलपत्र अर्पित करते समय ये मंत्र बोलें – ‘त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम्। त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥’
भांग, पान, बेला या आक के फूल, धतूरा, अबीर, गुलाल, शमी पत्र, एक मुठ्ठी अक्षत शिवलिंग पर चढ़ाएं. साथ ही, काले धतूरे को फोड़कर उसका फल चढ़ाएं.
फिर धूप और चौमुखी घी का दीपक लगाकर शिव चालीसा का पाठ करें. इसके बाद शिवजी को भोग लगाएं. फिर ‘ऊँ गं गणपतयै नम:’ और ‘ऊँ नम: शिवाय’ मंत्रों का जाप करें.
भव, शर्व, रुद्र, पशुपति, उग्र, महान, भीम और ईशान, इन आठ नामों से फूल अर्पित कर भगवान शिव की आरती और आधी परिक्रमा करना चाहिए.
इसके बाद कपूर जलाकर आरती करें औरपूजा में हुई गलती के लिए शिवजी से क्षमा मांगे. पूजा होने के बाद सभी को प्रसाद बांटें और खुद भी खाएं.