हमें युवाओं को नंबर नहीं रूटस (संस्कृति) की ओर लौटाना होगा….

स्वामी चिंदानंद जी के परमार्थ निकेतन के वॉश मिशन की डायरेक्टर से खास मुलाकात
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उज्जैन. भाषा में अमेरिकी उच्चारण …… लेकिन सोच पूरी तरह भारतीय। नाम भले ही पहले नैंसी था, पर आज वो हैं गंगा नंदिनी। वो गंगा नंदिनी जो भारत की संस्कृति, नदियों और चेतना की सच्ची प्रतिनिधि बन चुकी हैं। जाने-माने अध्यात्म गुरु स्वामी चिंदानंद के वॉश (वाटर एंड सेनिटेनाइजेशन हाइजनिक ) मिशन की इंडिया डायरेक्टर गंगा नंदिनी कहती हैं कि भारत को विश्वगुरु बनाने के लिए युवाओं को नंबर , लाइक्स, टॉप रैकिंग के साथ भारत की रूटस (जड़ों) यानी संस्कृति की ओर लौटाना होगा। क्योंकि भारतीय कल्चर यूज एंड थ्रो पर नहीं उच्च स्तर के मूल्यों पर आधारित है। युवा पीपल, तुलसी, परिवार, गुरु, मंदिरों, धर्म, संस्कृति और प्रकृति की तरफ लौटें। गंगा नंदिनी जी इन दिनों उज्जैन में हैं। अमेरिका के कैलिफोर्निया में जन्मीं, पली और बढ़ी नैंसी त्रिपाठी से उनके गंगा नंदिनी हो जाने की कहानी अक्षरविश्व के स्थानीय संपादक विनोदसिंह सोमवंशी ने जानी।
आरती दिखावा नहीं दिशा है।
टॉयलेट मंदिर से पहले हैं क्योंकि पवित्रता की शुरुआत वहीं से होती है।
सेवा वीकएंड का काम नहीं है, वह जीवन का संकल्प होना चाहिए।
ज्ञान का मतलब प्रवचन देना नहीं है, उसे व्यवहार में लाना भी जरूरी है।
आज के युवाओं के पास सवाल हैं तो उनके व्यवस्थित जवाब भी देने होंगे।
अमेरिका से आई डिसआर्डर पीडि़त नैंसी कैसे बनीं गंगा नंदिनी
प्र. अमेरिका से सीधे ऋषिकेश, ये कैसे हुआ?
उ. वहां मैं डॉक्टर बनना चाहती थी, लेकिन शरीर बीमार हुआ। एक गंभीर डिसऑर्डर। दवाइयों ने तकलीफ और बढ़ा दी। तब लगा इलाज लक्षणों का नहीं, जीवन का होना चाहिए। योग सीखा, ध्यान किया और एक दिन पिता के साथ भारत आ गई। पहले बैंगलुरु , फिर दिल्ली और ऋषिकेश। गंगाआरती में गुरुजी चिंदानंदजी ने सेवा मांगी तो हाथ उठ गया, फिर लौटकर नहीं गई। गुरु जी और गंगा ने थाम लिया।
प्र. आज के युवाओं को आप क्या दिशा देना चाहेंगी।
उ. नंबर, लाइक्स, टॉप रैकिंग- ये सब ठीक है, लेकिन क्या हम अपनी जड़ों को जानते हैं, हमारी संस्कृति यूज एंड थ्रो की नहीं, रिस्पेक्ट एंड रीस्टोर की है। युवा अपनी रूट्स की तरफ लौटें, पीपल, तुलसी, परिवार, गुरु, प्रकृति, संस्कृति को अपनाएं। हम संस्कृति से कट गए तो एक दिन नीचे जरूर गिरेंगे। क्योंकि पेड़ को खड़े रहने के लिए मजबूत जड़ की जरूरत होती है।
प्र. वॉश मिशन का असल मकसद क्या है ?
उ. वॉश यानी वॉटर एंड सेनेटाइजेशन, हाइजीन, लेकिन हमारे लिए यह विस्डम, अवेयरनेस, सर्विस, और हेल्थ भी है। हम गंगाजी के शुद्धिकरण से शुरू हुए थे, अब पूरे भारत में जल, स्वच्छता, और नदी के प्रति लोगों की सोच बदल रहे हैं।
प्र. गंगा आरती से आपके लिए कोई सीख?
उ. आरती मेरे लिए पूजा नहीं, परिवर्तन की प्रक्रिया है। जब सैकड़ों दीप जलते हैं तो मन में भी प्रकाश फैलता है। मैं पहली बार ही आरती करके अभिभूत हो गई थी। आज परमार्थ द्वारा शुरू की गई गंगा आरती, ऋषिकेश, हरिद्वार, बनारस से लेकर पटना तक फैल चुकी है। ये स्पिरिचुअल प्रोग्राम नहीं पीपुल्स मूवमेंट बन गया है।
प्र. नैंसी से गंगा नंदिनी कैसे बनीं?
उ. यह नाम गुरुजी का दिया हुआ है। मेरी एक सहयोगी अमेरिकन थीं। उनका नाम शंाति था। जब मैंने गुरुजी से कहा कि मेरा नाम नैंसी है तो उन्होंने दीक्षा दी और नाम नैंसी से गंगा नंदिनी हो गया। अब यही नाम गुरुजी की वजह से मेरी पहचान है।
प्र. वेस्टर्न कल्चर और इंडियन कल्चर में क्या अंतर पाती हैं?
उ. इस अंतर को सेवफल के उदाहरण से समझ सकते हैं। अमेरिका का गाला सेवफल देखने में बहुत चमकदार और बड़ा होता है लेकिन खाने में वह बिल्कुल ज्यूसी नहीं होता। उसकी तुलना में भारतीय सेवफल आकार में छोटे होते हैं लेकिन खूब रसीले होते हैं। यहीं स्थिति भारतीय संस्कृति की है। उसमें इतने रस हैं कि आप जितना उतरते जाते हैं, डूबते जाते हैं। पश्चिम में दिखावट है, भारत में गहराई है। वहां की यूज एंड थ्रो सोच ने परिवार, रिश्ते और प्रकृति तीनों को नुकसान पहुंचाया है।
प्र. वॉश ने सेनिटाइजेशन का गंभीर इश्यू क्यों चुना ?
उ. भारत मंदिरों का देश है। यहां टैंपल हैं लेकिन टॉयलेट नहीं। कहते हैं टॉयलेट हमारी शौच का तरीका बदलते हैं तो टैंपल सोच का। बंदगी कभी भी गंदगी में नहीं होती। गुरुजी ने इसी सोच से आश्रमों में टॉयलेट बनवाए और सेनिटाइजेशन को गंभीर इश्यू माना।