गुप्त नवरात्रि कब से है शुरू? जानें क्या है कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त और पूजा की विधि

क्या आप जानते हैं कि साल में चार बार नवरात्रि आती है। इसमें एक चैत्र नवरात्रि दूसरा शारदीय नवरात्रि और दो गुप्त नवरात्रि। बात करें गुप्त नवरात्रि की तो ये 9 दिन तंत्र-मंत्र और साधना के लिए महत्वपूर्ण है। आषाढ़ गुप्त नवरात्रि जून में है। इसका समापन जुलाई में होगा। अगर आप इसकी डेट यानी तिथि को लेकर कंफ्यूज हैं, तो यहां से सही डेट जान सकते हैं। इस नवरात्रि में भी कलश स्थापना की जाती है। ऐसे में आप यहां से घर स्थापना के शुभ मुहूर्त के बारे में भी जान सकते हैं। इतना ही नहीं, यहां संपूर्ण पूजा विधि भी दी गई है।
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कब है आषाढ़ की गुप्त नवरात्रि-
साल 2025 में गुप्त नवरात्रि 26 जून दिन गुरुवार से शुरू हो रही है और 4 जुलाई दिन शुक्रवार तक रहेगी। आपको बता दें कि इस बार गुप्त नवरात्रि पूरे 9 दिन की रहेगी।
कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त-
गुप्त नवरात्रि गुरुवार से प्रतिपदा तिथि से शुरू हो रही है। नवरात्रि की शुरुआत में सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है। सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 8:46 से 27 तारीख प्रातः 5:31 मिनट तक रहेगा। इस योग में किए गए कार्य में सिद्धि प्राप्त होती है। गुप्त नवरात्रि घटस्थापना का शुभ मुहूर्त प्रातः 9:09 मिनट से 11:00 बजकर 34 मिनट तक अति शुभ समय रहेगा। इसके अलावा सुबह 11:34 मिनट से दोपहर 1:24 मिनट तक शुभ समय रहेगा।
पूजा की विधि-
गुप्त नवरात्रि के पहले दिन से ही सुबह जल्दी उठकर सभी कार्यो से निवृत्त होकर नवरात्र की सभी पूजन सामग्री को एक जगह रखें। अब मां दुर्गा की प्रतिमा को लाल रंग के वस्त्र में सजाएं।
मिट्टी के बर्तन में जौ के बीज बोएं और नवमी तक प्रति दिन पानी का छिड़काव करें। पूर्ण विधि के अनुसार शुभ मुहूर्त में कलश को स्थापित करें। इसमें पहले कलश को गंगा जल से भरें, उसके मुख पर आम की पत्तियां लगाएं और उस पर नारियल रखे।
कलश को लाल कपड़े से लपेटें और कलावा के माध्यम से उसे बांधें। अब इसे मिट्टी के बर्तन के पास रख दें।
फूल, कपूर, अगरबत्ती, ज्योत के साथ पूजा करें।
नौ दिनों तक मां दुर्गा से संबंधित मंत्र का जाप करें और माता का स्वागत कर उनसे सुख-समृद्धि की कामना करें।
अष्टमी या नवमी को दुर्गा पूजा के बाद नौ कन्याओं का पूजन करें और उन्हें तरह-तरह के व्यंजनों (पूड़ी, चना, हलवा) का भोग लगाएं।
आखिरी दिन दुर्गा के पूजा के बाद घट विसर्जन करें, मां की आरती गाएं, उन्हें फूल, चावल चढ़ाएं और बेदी से कलश को उठाएं।