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उज्जैन में विचित्र स्थिति… उधार का दफ्तर और साइकिलों का भार!

सरकारी योजना की ढाई हजार से ज्यादा साइकिलें बचीं, महिदपुर में साइकिलों पर जंग लगने का खतरा

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अक्षरविश्व न्यूज. उज्जैन:उधार का दफ्तर और ऊपर से साइकिलों का भार…! ये रोचक कहानी उज्जैन जिले के महिदपुर बीआरसी की है, जिनके पास अपना खुद का दफ्तर ही नहीं और विद्यार्थियों के लिए आईं 700 से ज्यादा साइकिलों को कहां रखें? इस कारण सभी साइकिलें खुलें में पड़ी हैं जिन पर जंग लगने का खतरा बढ़ गया है। जिले के पांच विकासखंडों में ढाई हजार से ज्यादा बची साइकिलें अनिर्णय के भंवर में झूल रहीं।

ये विचित्र कहानी सरकारी सिस्टम की पोल भी खोल रही है। सरकार विद्यार्थियों के लिए पैसा खर्च कर रही और विभाग के अफसर बेखबर। दरअसल, पिछले सत्र के लिए जिले में विद्यार्थियों को नि:शुल्क बांटने के लिए सरकार ने साइकिलें भिजवाई लेकिन पात्र विद्यार्थियों और साइकिलों की जरूरत का हिसाब गड़बड़ा गया। नतीजा यह हुआ कि जिले में 2522 साइकिलें बच गईं।

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उज्जैन ग्रामीण सहित महिदपुर, बडऩगर, खाचरौद और घट्टिया में अतिशेष साइकिलें हैं यानी सभी विद्यार्थियों को बांटने के बाद भी साइकिलें बच गई हैं। हालांकि इनको दूसरे उन जिलों में भेज दिया जाएगा, जहां जरूरत है लेकिन इसको लेकर विभाग सुस्त दिखाई दे रहा। जिनको साइकिल की जरूरत है वे भी और जिनके यहां बच गई वे भी इनको लेकर अभी संजीदा दिखाई नहीं दे रहे। मामले में डीईओ आनंद शर्मा ने कहा अभी पत्नी का स्वास्थ्य खराब हो गया है, रास्ते में हूं। इस मामले में आप किसी और से बात कर लीजिए।

साइकिल रखने की जगह ही नहीं, पत्र भी भेजा

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महिदपुर विकासखंड में स्थिति गंभीर है। यहां बीआरसी का अपना खुद का दफ्तर ही नहीं है। वे उत्कृष्ट स्कूल में अपना ऑफिस जैसे तैसे चलाते हैं। वर्ष 2022-23 के लिए आईं 780 साइकिलें बच गई हैं। सूत्रों के अनुसार बीआरसी ने विभाग के अधिकारियों को पत्र लिखकर अवगत कराया है कि उनके पास साइकिलें रखने के लिए जगह नहीं हैं। इस कारण उन्होंने इनको अपने पास रखने से इंकार कर दिया है। इसके बाद भी इन साइकिलों को लेकर कोई निर्णय नहीं हो सका है। ये खुले में ही पड़ी हैं और बारिश का पानी लगने से जंग लगने का खतरा भी उत्पन्न हो गया है।

राजस्व विभाग के डीपीसी, बढ़ी परेशानियां

जिला परियोजना समन्वयक (डीपीसी) का जिम्मा अब राजस्व विभाग के अधिकारी को से दिया गया है। पहले अपर कलेक्टर एकता जायसवाल को डीपीसी बनाया था। उनका स्थानांतरण होने पर सत्यनारायण सोनी को यह जिम्मा दिया गया है। उनके पास उप जिला निर्वाचन अधिकारी का महत्वपूर्ण दायित्व सहित प्रशासन की कई शखाओं का भी काम है। इस कारण वे डीपीसी के दफ्तर आने की जगह कलेक्टोरेट से ही अपना काम करते हैं। इस कारण सभी एपीसी और अधिकारियों को कलेक्टोरेट के चक्कर काटना पड़ रहे। इससे कई डीपीसी के कई काम प्रभावित हो रहे। स्कूलों के निरीक्षण जैसे काम भी नहीं हो पा रहे। मामले में डीपीसी से संपर्क करना चाहा, लेकिन वे काल अटेंड नहीं कर सके।

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