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महाकाल की नगरी उज्जैन में जिस पार्टी के विधायक अधिक जीतेंगे, उसी पार्टी की प्रदेश में सरकार बनेगी

धार्मिक सांस्कृतिक एवं पौराणिक नगरी उज्जैन का इतिहास पांच हजार वर्षों पूर्व का है। बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक राजा श्री महाकालेश्वर मंदिर जहां प्रात: भस्मार्ती होती है, बारह वर्ष में एक बार सिंहस्थ महापर्व लगता है। भगवान कृष्ण और सुदामा की शिक्षा स्थली, न्यायप्रिय राजा विक्रमादित्य की नगरी जहां से विक्रम संवत् प्रारंभ हुआ। नाथ संप्रदाय की भर्तहरी गुफा जहां राजा भर्तहरी ने तपस्या की।

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ऋणमुक्तेश्वर मंदिर जहां राजा हरिशचंद्र का ऋण मुक्त हुआ। उसके अलावा चिंतामण गणेश, कालभैरव, सिद्धपीठ मां हरसिद्धि, गढ़कालिका, सिद्धवट, अंगारेश्वर महादेव, जहां से कर्क रेखा निकली है, मंगलनाथ मंदिर, जंतर-मंतर, सांदीपनि आश्रम अनेक ऐतिहासिक पौराणिक और सांस्कृतिक इतिहास इस नगरी का है।

उसके अलावा यह इतिहास भी है कि 1 नवंबर 1956 के बाद जब-जब भी विधानसभा चुनाव हुए और उज्जैन जिले की विधानसभा सीटों में जिस किसी भी पार्टी के अधिक उम्मीदवार विजयी हुए है, उसी पार्टी का मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री बनता है क्योंकि भूतभावन ज्योतिर्लिंग राजा श्री महाकालेश्वर उज्जैन में विराजते है और उन्हीं के आशीर्वाद से प्रदेश की बागड़ोर महाकाल जिसे विजयी बनाते है, उसी पार्टी को बागड़ोर मिलती है।

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उज्जैन जिले की सात विधानसभा सीट है और 17 नवंबर को मतदान हो चुका है, परिणाम 3 दिसंबर को आएंगे। याने सातों विधायकों एवं कौनसी पार्टी का प्रदेश में मुख्यमंत्री बनेगा, यह परिणाम ही बताएगा। मध्यप्रदेश के गठन के बाद सन् 1957 के विधानसभा चुनाव में कुल पांच सीटे थी, जिसमें कांग्रेस चार पर विजयी हुई और कांग्रेस के भगवंतराव मण्डलोई मुख्यमंत्री बने। सन् 1962 के विधानसभा चुनाव में कुल छह सीटों में तीन कांग्रेस एक जनसंघ, एक निर्दलीय और एक एसओसी को मिली थी, कांग्रेस को अधिक सीट मिली थी सो भगवंतराव मण्डलोई पुन: मुख्यमंत्री बनें।

सन् 1967 के चुनाव में छह सीटों में से पांच पर भारतीय जनसंघ का कब्जा हुआ और उस समय राजमाता सिंधिया के नेतृत्व में संविदा सरकार बनी थी और जनसंघ के अधिक विधायक होने के कारण गोविन्द नारायणसिंह मुख्यमंत्री बने। सन् 1972 में कुल छह सीटों में से कांग्रेस को पांच पर विजयश्री मिली थी और मुख्यमंत्री प्रकाशचंद्र सेठी बने थे।

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सन् 1977 में जनता पार्टी सात सीटों में से सात पर विजयी हुए थे और मुख्यमंत्री जनता पार्टी के कैलाश जोशी बने थे। सन् 1980 में कांग्रेस के सात में से चार विधायक विजय हुए थे तब अर्जुनसिंह कांग्रेस के मुख्यमंत्री बने और सतत् 1990 तक कांग्रेस के मुख्यमंत्री रहे। सन् 1990 के चुनाव में भाजपा सात में से पांच सीट पर विजयी हुई थी तो भाजपा के सुंदरलाल पटवा मुख्यमंत्री बने। सन् 1994 के चुनाव में कांग्रेस के सात विधानसभा में से पांच विधायक विजय हुए तो कांग्रेस के दिग्विजयसिंह मुख्यमंत्री बने। सन् 1998 में कांग्रेस को सात में से छह सीटों पर कांग्रेस विजयी हुए तो पुन: दिग्विजयसिंह मुख्यमंत्री बनें।

सन् 2003 में जिले की सात में से छह पर भाजपा विजयी हुई तब भाजपा की उमा भारती मुख्यमंत्री बनी। सन् 2008 के चुनाव में जिले की सात में से चार सीटों पर भाजपा विजयी हुई तब भाजपा के शिवराजसिंह चौहान मुख्यमंत्री बनें। सन् 2013 में जिले की सात सीटों में से सात पर ही भाजपा विजय हुई थी तो पुन: शिवराजसिंह चौहान मुख्यमंत्री बने। सन् 2018 के विधानसभा चुनाव में जिले की सात सीटों में से चार पर कांग्रेस विजयी हुई थी और भाजपा तीन पर विजयी हुई थी तब कांग्रेस के कमलनाथ मुख्यमंत्री बने।

सन् 2023 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस-भाजपा द्वारा मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए अनेको प्रकार की धोषणाएं की, महिलाओं के वोट अपने पक्ष में करने के लिए लाड़ली लक्ष्मी योजना के तहत प्रतिमाह राशि देना, गैस की टंकी 500 रूपए में, बेरोजगारों को रोजगार देना एवं रोजगार भत्ता देना, किसानों का ऋण माफ करना, 100 यूनिट तक बिजली बिल माफ करना आदि प्रलोभन जिले के मतदाताओं को राष्ट्रीय पार्टी के उम्मीदार एवं निर्दलीय उम्मीदारों ने अपने पक्ष में मतदान डालने के लिए दिए है।

आगामी 3 दिसंबर को होने वाली मतगणना में भूतभावन भगवान महाकालेश्वर की नगरी में किस पार्टी के उम्मीदवारों को मतदाताओं का आशीर्वाद मिलेगा और जिस पार्टी के जिले में विधायक अधिक बनेंगे, उसी पार्टी की मध्यप्रदेश में सरकार एवं मुख्यमंत्री बनेगा।
-द्वारकाधीश चौधरी

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