देवशयनी एकादशी 10 जुलाई को, एकादशी के दिन करें ये पुण्य के कार्य

आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवशयनी एकादशी, आषाढ़ी एकादशी के नाम से जाना जाता है। कहीं-कहीं इस तिथि को पद्मनाभा और हरिशयनी एकादशी भी कहते हैं। इस बार यह शुभ तिथि 10 जुलाई दिन रविवार को है। इसी तिथि से चातुर्मास का आरंभ माना जाता है।
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शास्त्रों में बताया गया है कि भगवान विष्णु आषाढ़ी एकादशी से चार महीनों के लिए क्षीरसागर में योग निद्रा में रहते हैं और कार्तिक मास की एकादशी को योग निद्रा से उठते हैं। भगवान विष्णु सृष्टि के पालनहार हैं, उनकी ही कृपा से सृष्टि चलती है। इसलिए जब वह योग निद्रा में रहते हैं तो मांगलिक कार्य वर्जित हो जाते हैं आओ जानते हैं इस दिन कौनसे 10 पुण्य के कार्य करना चाहिए।
1. व्रत : इस दौरान विधिवत व्रत रखने से पुण्य फल की प्राप्त होती है और व्यक्ति निरोगी होता है।
2. पूजा : इस दिन प्रभु श्रीहरि की विधिवत पूजा करने और उनकी कथा सुनने से सभी तरह के संकट कट जाते हैं।
3. तुलसी : इस दिन तुलसी और शालिग्राम की विधिवत रूप से पूजा और अर्चना करना चाहिए।
4. कथा : इस दिन देवशयनी की पौराणिक कथा का श्रवण करें।
5. यात्रा : इस दिन सभी ओर के तीर्थ ब्रज में एकत्रित हो जाते हैं। अत: ब्रज यात्रा पुण्य का कार्य है।
6. वामन : आषाढ़ के महीने में अंतिम पांच दिनों में भगवान वामन की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है।
7. दान : इस दिन गाय, कौवा, कुत्ते और पक्षियों को अन्नदान करने से पुण्य की प्राप्ति होती है।
8. स्नान : जल में आंवले का रस मिलाकर स्नान करने से बहुत पुण्य प्राप्त होता है और समस्त पाप कट जाते हैं।
9. संतान : विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने और ब्राह्मणों को दक्षिणा देने से संतान सुख प्राप्त होता है।
10. श्रीसूक्त : देवशयनी एकादशी पर श्रीसूक्त का पाठ करने से मां लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है।
ये है देवशयनी एकादशी की कथा
देवशयनी एकादशी व्रत की कथा स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को सुनाई थी। उसके अनुसार, पौराणिक काल में मांधाता नाम का एक चक्रवर्ती राजा थे। एक बार उसके राज्य में तीन साल तक वर्षा नहीं हुई, जिसकी वजह से उनके राज्य में भंयकर अकाल पड़ गया। इस समस्या के समाधान के लिए राजा मांधाता ब्रह्माजी के पुत्र अंगिरा ऋषि के आश्रम पहुंचे और उन्होंने पूरी बात बताई। तब ऋषि अंगिरा ने राजा मांधाता को आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी का व्रत करने को कहा। राजा मांधता ने विधि-विधान से ये व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से राजा मांधाता के राज्य में मूसलधार वर्षा हुई और अकाल भी खत्म हो गया।