धन के लिए मर्यादाएं तोड़ देता है व्यक्ति

अक्षरविश्व न्यूज. उज्जैन: इंसान पैसे के लिए क्या नहीं करता, पैसे के लिए अपना घर-परिवार, अपना ईमान तक बेच देता है। आजकल तो लोग देव, शास्त्र, गुरू, अपने कुल की मर्यादा तक बेचने के लिए तैयार हो जाते हैं। मात्र और मात्र पैसे के लिए, क्योंकि धन रूपी कीड़ा इंसान के दिमाग में ऐसा बैठ चुका है कि धन के लिए व्यक्ति सब मर्यादाएं तोड़ देता है।
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यह बात मुनिश्री सुप्रभसागरजी महाराज ने महाज्ञान कुंभ वर्षायोग के दौरान श्री आदिनाथ दिगम्बर जैन मंदिर ऋषिनगर में चल रही रयणसार ग्रंथ पर प्रतिदिन आयोजित होने वाली प्रवचनमाला के अंतर्गत कही। मीडिया प्रभारी प्रदीप झांझरी ने बताया कि इस दौरान समाज के प्रमुख विद्वानों का सम्मान किया गया। अपने प्रवचनों में मुनिश्री ने कहा कि जैनियों एक ऐसा भी समय हुआ करता था, जब तुम्हारी एक आदर्श पहचान हुआ करती थी।
सम्मान की दृष्टि से आपको आपके आचरण के लिए पहचाना जाता था। जैसे बुखार की पहचान थर्मामीटर से की जाती है वैसे ही इंसान की पहचान उसके आचरण से, उसकी परणति से समझ में आती है। क्योंकि आचार और विचार एक दूसरे के पूरक हैं। जैसे व्यक्ति विचार होंगे वैसा ही उसका आचार होगा और जैसे आचरण करते हुए वह दिखेगा वैसी उसकी विचार चलेगी। इसलिए संगति ऐसी करनी चाहिये जिससे हमारी दुर्गति न हो क्योंकि संगति ही जीवन के कल्याण और अकल्याण दोनों का ही कारण है।