बेटी कर सकती है अपने पितरों का श्राद्ध? गरुड़ पुराण में लिखीं ये बातें

क्या लड़कियां पितरों का श्राद्ध या तर्पण कर सकती हैं? आपके मन में भी यह सवाल कभी न कभी जरूर आया होगा। वहीं, समाज में ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें धर्म या पुराणों की पूरी जानकारी नहीं होती लेकिन वे समाज की संरचना या फिर यूं कहें कि संकीर्ण मानसिकता के कारण लड़कियों को कुछ विशेष धार्मिक कार्यों से बिल्कुल ही अलग कर देते हैं लेकिन हमारे पुराणों में हर सवाल का जवाब दिया गया है। आप मूल रूप में लिखे हुए पुराण पढ़ेंगे, तो आपको सही जानकारी मिलेगी। जैसे, गरुड़ पुराण में पुत्रियों, पुत्रवधु के तर्पण करने के बारे में कुछ विशेष बातें लिखीं हुई हैं।

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गरुड़ पुराण के अनुसार हमारे पूर्वज जो धरतीलोक छोडक़र विदा हो गए हैं, वे ही हमारे पितर होते हैं। पितृलोक में भी एक अलग संसार हैं, जहां पर सभी मनुष्यों के पितर निवास करते हैं। पितृलोक में कर्मों का लेखा-जोखा होता है, इसके आधार पर ही पितरों की भूमिकाएं निर्धारित की जाती हैं। मृत्यु के बाद आत्माएं एक वर्ष से सौ वर्ष तक पितृलोक में रहती हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार पितरों को मुक्ति देने से जुड़ा कोई भी कार्य या धार्मिक अनुष्ठान शुभ माना जाता है। पितरों के तर्पण से न केवल पितरों की आत्मा को शांति मिलती है बल्कि इससे तर्पण करने वाले मनुष्य के लिए भी सुख-समृद्धि के द्वार खुलते हैं।

पितरों का श्राद्ध कौन कर सकता है?
गरुड़ पुराण में लिखा गया है कि पितरों का श्राद्ध सबसे जरूरी धार्मिक अनुष्ठानों में से एक माना जाता है, इसलिए इसे किसी भी वजह से रोका नहीं जाना चाहिए। गरुड़ पुराण के अनुसार पितरों का श्राद्ध कुल की कोई भी संतान यानी पुत्र या पुत्री कर सकती है। इसका अर्थ यह है कि अगर किसी के माता-पिता इस धरती लोक से विदा होकर पितृलोक में जा चुके हैं, तो ऐसे में उस माता-पिता की कोई भी संतान यानी पुत्र या पुत्री में से कोई भी माता-पिता का श्राद्ध या तर्पण कर सकता है। इसके पीछे कारण यह है कि दोनों ही संताने माता-पिता का अंश हैं और दोनों में ही उनका रक्त है, जो उन्हें एक कुल के रूप में जोड़े रखती है।

पुत्रियों के श्राद्ध या तर्पण करने का महत्व?
गरुड़ पुराण के अनुसार अगर किसी के पुत्र नहीं है, तो उनकी पुत्री भी उनका श्राद्ध या तर्पण कर सकती हैं। वहीं, पुत्र के होने के बाद भी अगर पुत्री भी पितरों या स्वर्गवासी हो चुके माता-पिता का तर्पण करना चाहे, तो कर सकती है। इसका अर्थ यह है कि दो संतानें अलग-अलग जगहों पर श्राद्धकर्म कर सकते हैं। इससे कोई हानि नहीं है। पितर अपने पुत्र, पुत्रियों और पौत्रों द्वारा किए गए श्राद्ध कर्म को जरूर स्वीकार करते हैं।

विवाहित पुत्रियां भी कर सकती हैं श्राद्ध और तर्पण?
कई लोगों के मन में सवाल आता है कि क्या विवाहित हो चुकीं पुत्री भी माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी या अन्य पितरों का तर्पण कर सकती हैं? गरुड़ पुराण में इसका भी उल्लेख मिलता है कि विवाहित पुत्रियां भी पितरों का तर्पण कर सकती हैं क्योंकि दूसरे कुल में विवाह होने के बाद भी उसका सम्बध अपने कुल से जुड़ा ही रहता है। पुत्रियां अपने कुल का अंश हैं, उनका यह अस्तित्व हमेशा बना ही रहता है। ऐसे में पुत्रियों के माता-पिता रहे लोगों को परेशान होने की आवश्यकता नहीं है। सामाजिक संकीर्ण मानसिकता वाले लोगों की परवाह न करते हुए आपको यह सोचना चाहिए कि अपना पूरा जीवन जी लेने के बाद जब आप पितृलोक में निवास करेंगे, तो आपको पुत्र ही नहीं बल्कि आपकी पुत्रियां, पुत्रवधु भी मुक्ति दिला सकती हैं।

पुत्रवधु भी कर सकती हैं पितरों का श्राद्ध
गरुड़ पुराण के अनुसार अगर किसी घर में केवल पुत्रवधु ही रहती हो और स्वर्गवासी हो चुके माता-पिता की कोई संतान शेष न हो या फिर किसी अन्य कारणवश वे माता-पिता का तर्पण न कर सकते हो, तो इस स्थिति में पुत्रवधु भी पितरों का श्राद्ध और तर्पण कर सकते हैं। रामायण में भी एक ऐसा प्रसंग मिलता है जब माता सीता ने फल्गु नदी के किनारे अपने ससुर दशरथ जी का पिंडदान किया था।

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