संकष्टी चतुर्थी कल, भगवान गणेश की पूजा से मिलते हैं इतने फल

इस बार चतुर्थी के दिन सर्वाथसिद्धि योग बन रहा है। यानी पूरे मनोरथ से गणेशजी का पूजा करने से हर मनोकामना पूरी होगी।
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पूर्णिमा के बाद आने वाली चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। इस बार संकष्टी चतुर्थी 3 दिसंबर, गुरुवार को है। इस दिन सभी तरह के कष्टों के हरने वाले प्रथम पूज्य श्रीगणेश की पूजा की जाती है। इस दिन व्रत का भी बड़ा महत्व है। बड़ी संख्या में भक्त आर्थिक तंगी दूर करने के लिए भी संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखते हैं और चंद्रोदय के बाद भोजन किया जाता है। इस बार चंद्रोदय का समय रात में 8 बजकर 10 मिनट रहेगा। खास बात यह है कि इस बार की Sankashti Chaturthi विशिष्ट योग में मनाई जा रही है। इस बार चतुर्थी के दिन सर्वाथसिद्धि योग बन रहा है। यानी पूरे मनोरथ से गणेशजी का पूजा करने से हर मनोकामना पूरी होगी।
Sankashti Chaturthi पर चंद्रदर्शन का महत्व
3 दिसंबर को सूर्योदय के साथ ही संकष्टी चतुर्थी का व्रत शुरू हो जाएगा। ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, यह व्रत रात्रि में चंद्रदर्शन के साथ पूरा होगा। दिनभर व्रत रखें। रात में चंद्रमा के दर्शन करने के बाद गणेशजी की पूजा करें। उन्हें तिल, गुड़, लड्डू, दुर्वा, चंदन और मीठा अर्पित करें, कथा श्रवण करें और फिर प्रसाद ग्रहण करें।
जानिए संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा की विधि
सुबह जल्दी उठे और स्नन कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। दिनभर सात्विक रूप से रहने के बाद शाम को पूजा की तैयारी करें। गणेशजी का मूर्ति लें। चंद्रोदय के बाद उनकी पूजा आरंक्ष करें। सबसे पहले चंदन, कुमकुम, अक्षत, हल्दी, मेंहदी, अबीर, गुलाब, और वस्त्र अर्पित करें। मोदक, लड्डू, ऋतुफल, पंचामृत और सूखे मेवे का भोग लगाएं। धूप दें। गणेशजी का दुर्वा घास प्रिय है। इसकी कम से कम तीन या पांच पत्तियां चढ़ाएं। कथा का वाचन करें। गणेश जी के साथ ही भगवान शिव और मां पार्वती का ध्यान करें। आखिरी में आरती करें और प्रसाद ग्रहण कर व्रत खोलें
जानिए साल में कितनी चतुर्थी आती हैं
पूर्णिमा के बाद आने वाली चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी कहते हैं। वहीं अमावस्या के बाद आने वाली चतुर्थी विनायक चतुर्थी कहलाती है। दूसरे शब्दों में कहें तो कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को संकष्टी चतुर्थी और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहा जाता है।