सियासत में प्रशासन की फजीहत

सियासत में प्रशासन की फजीहत

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@शैलेष व्यास

दोनों प्रमुख राजनीतिक दलों की ओर से अपने-प्रत्याशियों की सूची जल्द जारी करने का दावा किया जा रहा है। भाजपा तो एक सूची जारी कर चुकी है और आधा सैंकड़ा से ज्यादा नामों की दूसरी लिस्ट दिल्ली मुख्यालय में पड़ी है। कांग्रेस भी पहली सूची से पर्दा उठाने की तैयारी में है।

दोनों ही दल उन सीटों पर नाम घोषित करने की बात कह रहे हैं, जहां पार्टी पिछला चुनाव हारी थी। ऐसा इसलिए, ताकि उम्मीदवार को चुनाव की तैयारियों और सभी ग्रुपों से तालमेल बैठाने पर्याप्त वक्त मिल जाए। राजनीतिक दलों की अपनी सोच है, लेकिन इसमें जो दुविधा में है- वो है प्रशासन।

प्रदेश में भाजपा की सत्ता है, जिन सीटों पर पार्टी हारी थी वहां उम्मीदवार तय कर दिए जाने से स्थानीय प्रशासन पर इस बात का मनोवैज्ञानिक दबाव पडऩे लगा है कि वो संबंधित विधानसभा क्षेत्र के वर्तमान विधायक को तवज्जो दे या सत्ताधारी दल के घोषित उम्मीदवार को।

सबको प्रथम आना है पर पैर भी जमाना है

भाजपा ने कांग्रेस के मुकाबले अपनी पहली सूची जल्दी जारी कर रणनीतिक रूप से तो बढ़त बना ली और दूसरी सूची भी जल्द जारी करने की बात कह दी, लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस में सूची को लेकर संभाग और प्रदेशस्तर पर कोई हड़बड़ाहट नजर नहीं आती। दरअसल, कांग्रेस नेता तीन माह पूर्व ही संभावित दावेदारों और विधायकों को स्पष्ट कर चुके हैं कि खुद को दावेदार बताकर मैदानी प्रचार से तब तक बचें, जब तक पार्टी टिकट नहीं दे देती। दावेदार मैदान में सक्रिय रहें और जमकर काम करें।

किंतु इस गाइडलाइन से परे कांग्रेसी क्षत्रप अपने-अपने क्षेत्र में दबे स्वर में ही सही यह बताने में जुटे हैं कि चुनाव मैं ही लड़ रहा हूं, बस आप ध्यान रखना। सही भी है, टिकट की रेस में फस्र्ट भी आना है और क्षेत्र में पैर भी जमाना है। दोनों काम गुपचुप तो हो नहीं सकते।

गुपचुप समर्थन जुटाने की कवायद

चुनावी मौसम में हर दावेदार, संभावित प्रत्याशी और नेतानगरी किसी भी सार्वजनिक कार्यक्रम को बढ़ा चढ़ा कर प्रचारित करने का कोई अवसर हाथ से जाने नहीं देते हैं। इसके लिए हर वह प्रयास किया जा रहा है, जिससे की उनका नाम चमके, लेकिन एक दावेदार गुपचुप तरीके से समर्थन और समर्थक जुटाने में लगे हैं। नेताजी ने अपनी दावेदारी वाले क्षेत्र के एक गांव में धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया। सुंदरकांड के बाद 500-७०० लोगों की भोजन प्रसादी भी रखी गई। इसका न पहले और ना ही बाद में कोई प्रचार-प्रसार किया गया। आने वाले दिनों में इस तरह के और भी आयोजन विधानसभा क्षेत्र के गांव में होने की चर्चा है।

अफसरों में समन्वय की कमी

हाल के दिनों में कई अवसरों पर यह देखने में आया कि पुलिस हो या प्रशासन के अधिकारी इनमें समन्वय नहीं है। दरअसल दोनों ही महकमे में अधिकांश अधिकारी नए हैं, जिन्हें शहर की भौगोलिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और परंपराओं की पूरी जानकारी नहीं है। वही अधिकारी पब्लिक फे्रंडली नहीं है। ऐसे कई दिक्कतें सामने आ रही है। महाकालेश्वर की आठ सवारी के अलावा नागपंचमी पर समन्वय का अभाव सामने आ चुका है। कुछ मामलों में तो अधिकारियों को सार्वजनिक खेद भी व्यक्त करना पड़ा है।

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