हार की जिम्मेदारी भी लेने को पार्टी का कोई पदाधिकारी तैयार नहीं

By AV NEWS

कांग्रेस : विधानसभा चुनाव में इस बार फिर वही कहानी, न संगठन ना ही तालमेल

अक्षरविश्व न्यूज. उज्जैन:विधानसभा चुनाव परिणाम में भाजपा की आंधी की सनसनाहट कांग्रेस के कानों में गूंज रही है। मतगणना शुरू होने के कुछ घंटों पहले तक कांग्रेस की अग्रिम पंक्ति के नेता जिस आत्मविश्वास से सरकार बनाने के दावे करते नजर आ रहे थे अब वे खामोशी से इस बड़ी पराजय को पन्नों में समेटने में जुटे हैं। हर बार की तरह इस मर्तबा वही कहानी रही। न संगठन था और ना ही नेताओं तालमेल। हालात यह है कि पराजय कि संगठन स्तर पर जिम्मेदारी भी लेने को कोई तैयार नहीं है।

2018 के चुनाव में जिले 4 सीट जीतने वाली कांग्रेस इस बार 2 सीट पर सिमट गई। हर बार की तरह इस बार भी कमजोर संगठन, नेताओं में आपसी तालमेल की कमी, सुस्त चुनाव प्रचार और कांग्रेस नेताओं के अति आत्मविश्वास ने कांग्रेस को करारी हार के मुहाने पर ला खड़ा किया। उज्जैन की सात सीटों की बात करें तो कांग्रेस के स्थानीय नेता भी प्रचार के दौरान जमीन पर दिखाई नहीं दिए। पार्टी के पदाधिकारियों ने प्रत्याशियों को उनके ही हाल पर छोड़ दिया। कांग्रेस के स्थानीय संगठन की कमजोर नीतियां भी हार का कारण बनी हैं।

सिर्फ बयानों का सहारा…मैदान से किनारा

चुनाव के दौरान भाजपा ने जिस आक्रामक शैली में प्रचार अभियान चलाया, कांग्रेस उसके आसपास भी नजर नहीं आई। प्रत्याशी चयन में महीनों पहले ‘हमारी तैयारी पूरी’ का दावा करने वाली कांग्रेस चुनाव लडऩे की रणनीति तैयार करने में भी पीछे रह गई। कांग्रेस नेता बार-बार हमारा क्या कसूर था, हमारी सरकार क्यों गिराई जैसे जुमले बोलकर सहानुभूति बटोरने का प्रयास अवश्य करते रहे। भाजपा के बड़े नेता मैदान में उतरे तो मुकाबले के लिए कांग्रेस की अग्रिम पंक्ति उतनी ताकत नहीं झोंक पाई।

तालमेल और जानकारी का अभाव

चुनाव के दौरान कोई भी राष्ट्रीय स्तर का नेता सभा, रोड-शो या रैली के लिए नहीं आया। दो तीन नेता आए और सभा लेकर चले गए, इसकी जानकारी नेता तो दूर कार्यकर्ताओं तक को नहीं रही। चुनाव के पहले जन आक्रोश यात्रा में रणदीप सूरजेवाल तराना, जीतू पटवारी अन्य विधानसभा में आए। चुनाव के दौरान दिग्विजय सिंह नागदा-खाचरौद और घट्टिया में तथा राजस्थान के राजेश पायलट तराना में आमसभा को संबोधित करने आए थे।

इन नेताओं के आने और सभा लेने की जानकारी केवल संबंधित विधानसभा के उम्मीदवार, समर्थक और कार्यकर्ताओं को थी। कांग्रेस का स्थानीय संगठन इससे अनजान तो था ही,संगठन के नगर-ग्रामीण अध्यक्ष ने भी इसे प्रचारित करने की जेहमत नहीं ली। इतना ही नहीं पूरे चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस के नगर अध्यक्ष रवि भदौरिया और ग्रामीण इकाई के अध्यक्ष महेश पटेल यह बताने की स्थिति में नहीं थे कि कांग्रेस के बड़े नेता आएंगे या नहीं।

घोषणा-वादे मतदाताओं के बीच नहीं पहुंचे
कांग्रेस के स्थानीय संगठन की यह कमजोरी रही कि राष्ट्रीय और प्रदेश संगठन की घोषणा-वादों को मतदाताओं तक नहीं पहुंचा पाए। कांग्रेस ने वादा किया था कि सरकार बनते ही जाति आधारित गणना करवाएंगे। सरकारी कर्मचारियों के लिए फिर से ओल्ड पेंशन योजना शुरू कर देंगे। 500 रुपये में गैस सिलेंडर देंगे। 25 लाख रुपये की स्वास्थ्य बीमा योजना लागू की जाएगी। घोषणाएं चुनाव में मतदाता तक पहुंची नहीं।

प्रदेश संगठन के निर्देश का पालन होगा

भाजपा किस स्थिति में चुनाव जीती है यह जगजाहिर है। कांग्रेस के प्रदेश और स्थानीय संगठन ने अपनी जिम्मेदारी के साथ काम किया। साहब (कमलनाथ) स्पष्ट कर चुके है कांग्रेस की हार के कारण। चुनाव परिणाम को लेकर इस्तीफा देने का सवाल है,मुझे जिम्मेदारी मिले एक साल ही हुआ। इसके बाद भी प्रदेश संगठन के जो निर्देश होंगे, उनका पालन किया जाएगा। -रवि भदौरिया अध्यक्ष उज्जैन शहर कांग्रेस

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