अस्पताल सुरक्षा: ‘कागजों’ पर कड़े नियम ‘हकीकत’ कुछ और….
उज्जैन।जबलपुर के एक निजी अस्पताल में हुए अग्निकांड के बाद एक बार फिर उज्जैन शहर के ‘फायर ऑडिट’ को लेकर चर्चा और बहस प्रारंभ हो गई है। जानकारों का कहना है कि अस्पतालों में सुरक्षा व्यवस्था को लेकर ‘कागजों’ पर कड़े नियम है पर ‘हकीकत’ कुछ और।
नगर की ही बात करें तो यह कई बड़े अस्पताल ऐसे है,जिनकी बिल्डिंग नगर निगम द्वारा स्वीकृत नक्क्षे और नगर एवं ग्राम निवेश विभाग की अनुमति के विपरीत है। इनका संचालन भी नियमानुसार नहीं हो रहा है। अस्पतालों को फायर प्लान देना जरूरी है, लेकिन बिल्डिंग ऐसी तो हो कि नगर निगम अस्पताल का ‘फायर ऑडिट’ कर सकें।
इंतजामों के बारे में बताना जरूरी :
फायर सेफ्टी के नियमानुसार कोई अस्पताल या नर्सिंग होम यदि 500 वर्गमीटर में बना है या अस्पताल की बिल्डिंग नौ मीटर से ऊंची है। उसका निर्माण क्षेत्रफल कितना भी है, ऑडिट जरूरी है।
अभी तक उज्जैन में फायर सेफ्टी पर उतना ध्यान नहीं दिया गया,इसके स्थान पर केवल एनओसी का सहारा लिया जा रहा है। ऐसी स्थिति में नगर निगम की तरफ से पूर्व में जारी होने वाली एनओसी पर भी सवाल उठ रहे हैं।
बहरहाल ‘फायर ऑडिट’ को लेकर चौकाने वाली जानकारी आ रही है। निगम सूत्रों के मुताबिक ‘फायर ऑडिट’ के दायरे में आने वाले कई अस्पतालों की इमारतों का अनियमित निर्माण सवालों के घेरे में है। इसकी पुख्ता जानकारी नगर निगम के पास है।
ऐसे में एक तरह से नियम विरूद्ध बनी इमारतों को लेकर ‘फायर ऑडिट’ करना मुश्किल ही नहीं असंभव है। अवैध बिल्डिंग का ‘फायर ऑडिट’ होने के बाद हादसा होने की स्थिति में जबाव देना भारी पड़ सकता है। सूत्रों का कहना है कि ऐसे में अस्पतालों द्वारा निजी फायर एजेंसी की एनओसी रिपोर्ट के आधार पर नगर निगम से अस्थायी फायर सेफ्टी सर्टिफिकेट लेकर सीएमएचओ कार्यालय में जमा करदेते है।
दो महीने पहले भेजा रिमाइंडर
नगरीय विकास एवं प्रशासन मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि जब नगर निगमों से रिपोर्ट नहीं मिली, तो दो महीने पहले (17 मई 2022) को राज्य सरकार ने सभी नगर निगमों व नगर पालिकाओं को अस्पतालों का सेफ्टी ऑडिट करने के संबंध में रिमाइंडर भेजा था।
गांधी मेडिकल कालेज से संबद्ध हमीदिया के अस्पताल की नवजात शिशु गहन चिकित्सा ईकाई (एसएनसीयू) में लगने के बाद सरकार ने सख्ती दिखाई थी। सरकार ने उस वक्त कहा था कि प्रदेश के सभी निजी और सरकारी अस्पतालों का ‘फायर ऑडिट’ कराया जाए।
स्वास्थ्य विभाग के पास ‘ऑडिट’ का तंत्र नहीं है
सभी जिलों में जिला प्रशासन को यह जिम्मा सौंपा गया था। कलेक्टरों की सख्ती की वजह से ज्यादातर अस्पतालों ने नगर निगम से अस्थायी फायर सेफ्टी सर्टिफिकेट लेकर जमा कर दिया। स्वास्थ्य विभाग ने भी उसे सही मानते हुए सब कुछ पुख्ता मान लिया है।
ज्यादातर जिलों में स्वास्थ्य विभाग की टीम ने यह जानने कोशिश नहीं की कि हकीकत में इन अस्पतालों में आग की घटनाओं से निपटने के क्या इंतजाम हैं? नर्सिंग होम्स के निरीक्षण के दौरान भी स्वास्थ्य विभाग की टीम सिर्फ इतना देखती है कि नगर निगम से फायर एनओसी है या नहीं।
यही वजह है कि कागजी खानापूर्ति के बाद भी आग लगने की घटनाएं हो रही हैं। बचाव के भी पर्याप्त इंतजाम नहीं होते। स्वास्थ्य विभाग के अफसरों का कहना है कि विभाग के पास फायर सेफ्टी के विशेषज्ञ नहीं होते है और ना ही डॉक्टर्सफायर सेफ्टी के विशेषज्ञ रहते है। नगर निगम की तरफ से अस्पतालों की जांच कर फायर एनओसी दी जाती है। इसी को मान्य करते हैं।
‘फायर ऑडिट’ में सबसे बड़ी बाधा नियम विरुद्ध निर्माण
सभी अस्पतालों को फायर प्लान या बिल्डिंग में आग से संबंधित पर्याप्त इंतजामों के बारे में निगम को बताना जरूरी होता है। उज्जैन में ‘फायर ऑडिट’ में सबसे बड़ी बाधा नियम विरुद्ध निर्माण होना है। शहर के अनेक अस्पताल ऐसी बिल्डिंग में चल रहे है,जो अवैध है।
कई अस्पतालों बिल्डिंग में आपातकालीन द्वार दिखावटी है।
ऐसे अस्पताल भी हैं, जो संकरी गलियों में हैं और फायर ब्रिगेड वहां तक नहीं पहुंची सकतीं।
आधार तल पर पार्किंग की जगह अस्पतालों में जनरेटर रखे गए हैं,तो कहीं कैंटिन या लैब का संचालन हो
रहा है।
एक अस्पताल का बड़ा हिस्सा तो सरकारी जमीन पर ही कब्जा कर बना लिया गया है।
एक बड़े नर्सिंग होम का निर्माण चार प्लाट मिलाकर किया गया है।
ऐसा भी अस्पताल है,जो आवासीय प्लाट पर बना दिया गया है।
नगर निगम एक्ट में स्पष्ट प्रावधान है कि दो अलग-अलग प्लाट निर्मित दो इमारतों का किसी भी प्रकार का निर्माण कर आपस में नहीं जोड़ जा सकता है। दो वर्ष पहले हादसे का शिकार एक अस्पताल ने तो नियम को धता बताकर पास की बिल्डिंग खरीदकर उसे पूर्व के अस्पताल की बिल्डिंग में से जोडकर अस्पताल का विस्तार कर लिया है।
फायर और लिफ्ट सेफ्टी ऑडिट की मांगी थी रिपोर्ट
राज्य सरकार ने मई 2021 में प्रदेश के सभी अस्पतालों के सेफ्टी ऑडिट करने के निर्देश जारी किए थे। उस समय नगरीय विकास एवं प्रशासन विभाग का मानना था कि अस्पतालों में बिजली खपत भी बढ़ी है। ऐसे में अस्पतालों में अग्नि और लिफ्ट सेफ्टी का महत्व बढ़ गया है। इसके बाद मध्यप्रदेश भूमि विकास नियम, 2012 के नियम-87 (5) के तहत सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों की फायर ऑडिट और लिफ्ट सेफ्टी ऑडिट रिपोर्ट 7 दिन में मांगी गई थी।