कब मनाई जाएगी बसंत पंचमी? जानें पूजा का शुभ मुहुर्त और महत्व

By AV NEWS

हिंदू धर्म में बसंत पंचमी का विशेष महत्व है। शास्त्रों के अनुसार, बसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती प्रकट हुई थी। इसके साथ ही इस दिन से बसंत ऋतु का भी आरंभ हो जाएगा। बसंत पंचमी के दिन कला, विद्या की देवी मां सरस्वती की विधिवत पूजा करने के विधान है। क्योंकि इस दिन मां सरस्वती कलम में विराजमान होकर हाथों में पुस्तक, माला और वीणा लेकर प्रकट हुई थी।

इस साल बसंत पंचमी का पर्व 26 जनवरी को मनाया जा रहा है। पंचांग के अनुसार, बसंत पंचमी को अबूझ मुहूर्त माना जाता है। इस दिन शुभ और मांगलिक कार्य करना अच्छा होता है। जानिए बसंत पंचमी में विवाह, मुंडन, छेदन सहित किन कामों को करना होगा शुभ।बसंत पंचमी को नए काम यानी नौकरी, बिजनेस या फिर किसी जगह पर निवेश करना शुभ माना जाता है। बसंत पंचमी के दिन इन कार्यों को शुरू करने से अधिक सफलता हासिल होती है।

ज्योतिषियों के मुताबिक, अगर किसी बच्चे का पढ़ाई में मन नहीं लगता है या उसकी एकाग्रता कमजोर है तो बसंत पंचमी के दिन वास्तु के कुछ विशेष उपाय करने से बड़ा लाभ मिल सकता है.

बसंत पंचमी का त्योहार विद्या, ज्ञान, संगीत, वाणी और कला की देवी सरस्वती को समर्पित हैं. मान्यता है कि इस दिन मां सरस्वती की पूजन और इन क्षेत्रों में विद्यारंभ करने से साधक पर देवी सरस्वती की कृपा बरसती है और वह अपार सफलता प्राप्त करता है. बसंत पंचमी के खास पर्व पर बच्चों का विद्यारंभ संस्कार कर उनमें शिक्षा और ज्ञान के प्रति जिज्ञासा का भाव जागृत किया जाता है. इससे बच्चे के द्वारा गणपति, मां सरस्वती, कलम, दवात का पूजन कराया जाता है.

ज्योतिषशास्त्र कहता है कि विद्यारंभ संस्कार उत्तरायण में करना उत्तम माना जाता है. इसके लिए द्वितीया, तृतीया, पंचमी, षष्टी, दशमी, एकादशी, द्वादशी तिथि श्रेष्ठ मानी गई है वहीं बसंत पंचमी, बुधवार, सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार और शुक्रवार को विद्यारंभ संस्कार करना अनुकूल रहता है.

बसंत पंचमी पर विद्यारंभ संस्कार की विधि

गणपति पूजन

बच्चे के हाथ में रोली, अक्षत, पुष्प देकर सर्व प्रथम गणपति के इस मंत्र का जाप करते हुए गणेश जी की प्रतिमा पर अर्पित कराएं- गणानां त्वा गणपति हवामहे, प्रियाणां त्वा प्रियपति हवामहे, निधीनां त्वा निधिपति हवामहे, वसोमम। आहमजानि गभर्धमात्वमजासि गभर्धम्। गणपतये नम:। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि॥

सरस्वती पूजन

एक फूल में हल्दी, रोली लगाएं और अक्षत संग इन सभी चीजों को बच्चे के हाथ में दें. अब इस मंत्र को बोलते हुए मां सरस्वती को चरणों में ये सामग्री अर्पित कर दें – पावका न: सरस्वती, वाजेभिवार्जिनीवती। यज्ञं वष्टुधियावसु:। सरस्वत्यै नम:। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।

कलम पूजन

बच्चे के हाथ में कलम और ऊपर बताई सभी सामग्री दें और फिर इसे पूजा की चौकी पर इस मंत्र का उच्चारण करते हुए स्थापति करें – पुरुदस्मो विषुरूपऽ इन्दु: अन्तमर्हिमानमानञ्जधीर:। एकपदीं द्विपदीं त्रिपदीं चतुष्पदीम्, अष्टापदीं भुवनानु प्रथन्ता स्वाहा।

दवात पूजन

दवात के बिना कलम अधूरी मानी जाती है. दवात के लिए स्याही या खड़िया को पूजा की चौकी पर स्थापित करें. अब इसपर मौली, रोली, अक्षत, पुष्प आदि बच्चे के हाथ से अर्पित कराएं और इस मंत्र का जाप करें – देवीस्तिस्रस्तिस्रो देवीवर्योधसं, पतिमिन्द्रमवद्धर्यन्। जगत्या छन्दसेन्द्रिय शूषमिन्द्रे, वयो दधद्वसुवने वसुधेयस्य व्यन्तु यज।।

पट्‌टी पूजन

पट्‌टी यानी स्लेट, इसके पूजन के लिए संतान द्वारा मंत्रोच्चार के साथ पूजा स्थल पर स्थापित पट्टी पर पूजन सामग्री से उपासना करें. पट्‌टी पूजन के लिए मंत्र – सरस्वती योन्यां गर्भमन्तरश्विभ्यां, पतनी सुकृतं बिभर्ति। अपारसेन वरुणो न साम्नेन्द्र, श्रियै जनयन्नप्सु राजा॥

गुरु पूजन

विद्यारंभ संस्कार में गुरु पूजन का भी महत्व है. गुरु पूजन के लिए यदि बच्चे के गुरु उपस्थित हों तो उनकी पूजा की जानी चाहिए नहीं तो प्रतीक रूप में नारियल की पूजा की जानी चाहिए. गुरु को तिलक करें, पुष्प, माला, कलावा, फल आदि अर्पित करें और बालक से आरती करवाएं. मंत्र – बृहस्पते अति यदयोर्ऽ, अहार्द्द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु, यद्दीदयच्छवसऽ ऋतप्रजात, तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्। उपयामगृहीतोऽसि बृहस्पतये, त्वैष ते योनिबृर्हस्पतये त्वा॥ श्री गुरवे नम:। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।

हवन

विद्यारंभ संस्कार का अंतिम चरण है हवन. हवन सामग्री में कुछ मिष्ठान मिलाकर पांच बार मंत्रोच्चार के साथ बच्चे से 5 बार आहूति डलवाएं. मंत्र – ऊं सरस्वती मनसा पेशलं, वसु नासत्याभ्यां वयति दशर्तं वपु:। रसं परिस्रुता न रोहितं, नग्नहुधीर्रस्तसरं न वेम स्वाहा। इदं सरस्वत्यै इदं न मम।

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