जि़न्दगी भर गुलों से रखा वास्ता ,
आज काँटों से मेरा पड़ा वास्ता ।
ये ख़ुशी और ग़म हैं बराबर मुझे ,
इश्क़-ए-हक़ से सदा है मेरा वास्ता ।
ग़ैर की बज़्म हो या अपना ही घर ,
उनसे गाहे-ब-गाहे रहा वास्ता ।
Whatever work I do, I get drowned, I am
always concerned with one passion.
And this poetry
has deepened, ever since I had to deal with sorrows.
क़ुव्वत-ए-फ़ैसला मुझको हासिल हुई ,मेरा मुर्शिद से जब हो गया वास्ता ।
छू के मेरे बदन को हवा कह रही ,
ख़ुश्बुओं से कहीं है तेरा वास्ता ।
Lost sleep in the kerb of Hijra, the
eyes were left with tears.
-Ashish Ashk