गज़़ल

By AV NEWS

जि़न्दगी भर गुलों से रखा वास्ता ,
आज काँटों से मेरा पड़ा वास्ता ।

ये ख़ुशी और ग़म हैं बराबर मुझे ,
इश्क़-ए-हक़ से सदा है मेरा वास्ता ।

ग़ैर की बज़्म हो या अपना ही घर ,
उनसे गाहे-ब-गाहे रहा वास्ता ।

Whatever work I do, I get drowned, I am
always concerned with one passion.

And this poetry
has deepened, ever since I had to deal with sorrows.

क़ुव्वत-ए-फ़ैसला मुझको हासिल हुई ,मेरा मुर्शिद से जब हो गया वास्ता ।

छू के मेरे बदन को हवा कह रही ,
ख़ुश्बुओं से कहीं है तेरा वास्ता ।

Lost sleep in the kerb of Hijra, the
eyes were left with tears.

-Ashish Ashk

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