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नियम टूटा, तो आयोजक पर 6 साल के लिए बैन,10 हजार रुपए तक के जुर्माने

गरबा, दशहरा: कार्यक्रमों को राजनीतिक गतिविधियों से दूर रखने की जिम्मेदारी भी आयोजकों की

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आम नागरिक की हैसियत से प्रत्याशी जा सकते हैं आयोजन में

अक्षरविश्व न्यूज . उज्जैन:विधानसभा चुनाव आचार संहिता का पालन नहीं करना गरबा, दशहरा उत्सव आयोजकों को भारी पड़ सकता हैं। कार्यक्रमों को राजनीतिक गतिविधियों से दूर रखने की जिम्मेदारी भी आयोजकों की होगी। नियम टूटा, तो आयोजक पर 6 साल के लिए बैन, 10 हजार रुपए तक के जुर्माने लगाया जा सकता हैं।

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विधानसभा चुनाव की आचार संहिता के बीच नवरात्रि, दशहरा और दिवाली जैसे बड़े त्योहार भी पड़ रहे हैं। इस बार होने वाले आयोजनों जैसे गरबा, दुर्गा पंडाल, रावण दहन, दशहरा मिलन समारोह, दिवाली मिलन समारोह पर चुनाव आयोग की नजर रहेगी। इसके लिए आयोग ने सभी जिलों के निर्वाचन अधिकारियों और कलेक्टर्स को निर्देश दिए हैं। नवरात्रि, दशहरा और दिवाली पर सामूहिक आयोजन होते हैं। दुर्गा पंडाल और दशहरा पर रावण दहन और मिलन समारोह में नेताओं को बतौर अतिथि बुलाया जाता है।

सीएम समेत मंत्री, विधायक लाव-लश्कर के साथ कार्यक्रमों में पहुंचते हैं। बैनर-पोस्टर लगते हैं। माइक थामकर मंच से भाषणबाजी भी करते हैं। विधानसभा चुनाव प्रक्रिया के चलते गरबा, दशहरा आयोजन में नियमों का उल्लंघन होने पर आयोजकों को अधिकतम पांच साल तक की जेल हो सकती है। उन्हें 10 हजार रुपए तक के जुर्माने की सजा का भी प्रावधान है।

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ऐसे आयोजकों को अगले छह साल के लिए ऐसी किसी संस्था का पदाधिकारी बनने पर भी रोक लग जाएगी। जानकारों का कहना है कि यह कानून आयोजकों पर ही शिकंजा कसता है। अगर प्रबंधकों ने आयोजन में वोट मांगने वाले नेता की शिकायत संबंधित थाने को नहीं की तो उस पर भी कार्रवाई होगी। उसे अधिकतम छह महीने की जेल और एक हजार रुपए तक का जुर्माना लग सकता है।

पूजा की थाली में नेताजी नहीं चढ़ा पाएंगे चढ़ावा

गरबा और दुर्गा पूजा पंडालों में राजनीतिक दल या प्रत्याशी का बैनर-पोस्टर नहीं लगाया जा सकता। ऐसा होता है, तो आयोजकों और प्रत्याशी पर कार्रवाई हो सकती है। उम्मीदवार के पूजा-पाठ या उत्सव समारोह में प्रत्याशियों के शामिल होने पर रोक नहीं है। प्रत्याशी आरती भी कर सकते हैं। अगर,वे आरती में चढ़ावा डालते हैं, तो आचार संहिता का उल्लंघन माना जाएगा।

नवरात्रि, दशहरा और दिवाली पर सामूहिक आयोजन होंगे। दुर्गा पंडाल और रावण दहन और मिलन समारोह भी होगा। अंतर इतना होगा कि आयोजनों में किसी भी पार्टी के प्रत्याशी को बतौर अतिथि नहीं बुलाया जा सकता। हां, प्रत्याशी या पार्टी का नेता कार्यक्रमों में जा सकता है, लेकिन श्रद्धालु के तौर पर। इस दौरान न तो भाषणबाजी होगी और न ही पोस्टर लगेंगे। मंच से घोषणाएं भी नहीं कर सकते। ऐसा करने पर कार्रवाई होगी। नियमों का उल्लंघन करने पर दोनों मुश्किल में पड़ सकते हैं। पंडाल का खर्च उनके चुनावी खर्च में जोड़ा जा सकता है। वहीं, आयोजकों को भी जेल भेजने के साथ जुर्माना लगाया जा सकता है।

कथा, प्रवचन के आयोजनों से भी रहना होगा दूर

 प्रत्याशी गरबों का आयोजन कर नहीं सकते हैं। आचार संहिता की वजह से राजनीतिक दल खासकर प्रत्याशी को अनुमति नहीं मिलेगी। अगर कोई प्रत्याशी ऐसा करता है, तो इसका खर्च प्रत्याशी के चुनावी खर्च में जोड़ा जाएगा। वहीं, इसे धार्मिक संस्थान (दुरुपयोग निवारण) कानून का उल्लंघन मानकर कार्रवाई होगी।

चुनाव के दौरान प्रत्याशी अथवा राजनीतिक दल का नेता कथा-प्रवचन का आयोजन नहीं कर सकता। उल्लंघन पर आयोजन का खर्च उम्मीदवार के चुनावी खर्च में जोड़ा जाएगा। अगर मंच का उपयोग वोट मांगने, चुनावी फायदे या मतदाता को लुभाने के लिए होता है, तो आयोजकों पर कार्रवाई होगी।

दशहरे पर प्रमुख नेताओं से रावण दहन करवा सकते हैं, लेकिन सरकार की ओर से होने वाले आयोजन में किसी भी राजनेता को मंच पर नहीं बुलाया जाएगा। निजी या सामाजिक आयोजनों में प्रत्याशियों के जाने पर रोक नहीं है, लेकिन उन्हें इसकी सूचना निर्वाचन कार्यालय को देनी होगी। उन्हें यह भी कहा जाएगा कि इस दौरान राजनीतिक प्रचार या बयानबाजी न करें। ऐसा करते हैं, तो आयोजन का खर्च संबंधित नेता के चुनावी खर्च में जोड़ दिया जाएगा।

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