परेशान कर रही है प्रत्याशियों के अंतिम अस्त्र की चिंता…

विधानसभा चुनाव में कुछ प्रत्याशियों द्वारा वोट के लिए प्रचार के आखरी समय और वोटिंग के पूर्व इस्तेमाल किए गए एक अंतिम अस्त्र की चर्चा जमकर हो रही है। इस अस्त्र का इस्तेमाल उन प्रत्याशियों ने किया है जिन्हें लगा कि प्रचार के अंतिम समय में वे प्रतिद्वंद्वी से पिछड़ रहे हैं।

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धन की कमी इनके पास थी नहीं, लिहाजा इन्होंने अंतिम अस्त्र के रूप में जमकर पैसे का उपयोग किया। पैसा बांटा और उपहार भी खरीद कर बंटवाए। राजनीतिक हल्कों में चर्चा है कि पानी की तरह पैसा बहाने वाले इनमें से कई प्रत्याशी चुनाव हार सकते हैं। इसका मतलब यह होगा कि जो उपहार से उपकृत हो गए, उन्होंने वोट भी नहीं दिया। ऐसा हुआ तो चुनाव लडऩे वाले राजनीति के बाजार में लूटेे-पिटे नजर आएंगे।

उन प्रत्याशियों की हालत ज्यादा खराब होगी, जिन्होंने जीत की उम्मीद में कर्ज लेकर या अपनी संपत्ति बेचकर चुनाव लड़ा और पैसा बांटा। मजेदार बात यह है कि ऐसे प्रत्याशियों के मुकाबले उनकी जीत की चर्चा हो रही है, जिन्होंने चुनाव में पैसा खर्च ही नहीं किया। खर्च के लिए इनके पास पैसा था भी नहीं। लिहाजा, उन्होंने अपना ध्यान व्यवस्थित चुनाव प्रचार और मतदाताओं से संपर्क में ही केंद्रित रखा।

किरदार बदल गए, नाटक पुराना

सियासत के रंगमंच पर अभिनय करने वालों को भले ही यह गुमां हो कि समय के साथ सबकुछ बदलता जा रहा है। टिकट वितरण के पहले होने वाली रायशुमारी दावेदारों में यह भ्रम पैदा करती है कि बहुत वैज्ञानिक तरीके से पूरी प्रक्रिया की जा रही है लेकिन कद्दावर नेता जानते हैं कि टिकट कहां से और कैसे आते हैं। ठीक उसी तरह मतदान के बाद उज्जैन में कई नेता बूथवार विश्लेषण में उन बूथ प्रभारियों की पीठ ठोक रहे हैं, जिनके क्षेत्रों में अच्छा मतदान हुआ।

बड़े पदाधिकारियों से मिली प्रशंसा का प्रमाण पत्र लेकर फूले-फूले घूम रहे इन प्रभारियों की दशा पर वरिष्ठ कार्यकर्ता मुस्कुराए बिना नहीं रह पा रहे। दरअसल वे जानते हैं कि बीते कई चुनाव से इसी तरह की प्रशंसाओं और प्रमाणपत्रों से उन्हें भी नवाजा गया था, लेकिन इससे अधिक उन्हें ‘कुछ’ अब तक प्राप्त नहीं हुआ है।

देवी-देवताओं के सामने गुहार, रिजल्ट का इंतजार

मतदान के बाद मतगणना के परिणाम में इस बार इंतजार कुछ लंबा हो गया है। शुरुआती हफ्ते में अपने विधानसभा क्षेत्र का विश्लेषण करने और आंकड़ों के जोड़-घटाव कर थक चुके नेता आराम कर-करके भी बोर हो रहे हैं। समय का सदुपयोग इन दिनों देव-दर्शन में हो रहा है। भगवान की भक्ति भी हो जाएगी और लगे हाथ चुनाव में सब संभाल लेना की गुहार भी भगवान से लगा ली जाएगी। कई मंत्री और बड़े नेता भगवान महाकाल के साथ ही अन्य देवी-देवताओं के सामने सफलता की गुहार लगाने के लिए उज्जैन यात्रा कर चुके हैं। नेताओं की इतनी आवाजाही देखकर लोग एक दूसरे से कह रहे हैं, चुनाव का रिजल्ट आने वाला है। नेता मंदिरों में सुबह-शाम शीश नवाने पहुंच रहे हैं।

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