बुरी नहीं होती हैं ना कहने वाले मां, इनका अलग है परवरिश का तरीका?

By AV News

अगर आप भी मां हैं, तो इस बात को बखूबी समझती होंगी कि बच्चों से हर वक्त या हर बात पर ना कहना ठीक नहीं है। इससे बच्चों पर नेगेटिव असर पड़ता है और उनका मां या पिता के साथ रिश्ता खराब हो सकता है। इस बात में कोई शक नहीं है कि बच्चों को अपने पेरेंट्स से ना सुनना बिलकुल भी अच्छा नहीं लगता है। लेकिन आज के मॉडर्न पेरेंट्स इस शब्द को भी ऐसे इस्तेमाल करते हैं

जिससे उनके बच्चे को बुरा न लगे या उस पर कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़े। इसे वो बहुत केयर और नरम टोन के साथ यूज करते हैं। इस सबके बीच यह सवाल भी महत्वपूर्ण बन गया है कि आखिर बच्चों की परवरिश में ना शब्द इतना नेगेटिव क्यों बन गया है। आइए समझते हैं कि पेरेंटिंग में नो कहने का क्या नुकसान है या इसकी जगह आप और क्या कर सकते हैं।

उदाहरण से समझें
उदाहरण के लिए, अपने बच्चे को थोड़ा अतिरिक्त स्क्रीन टाइम देने के लिए अपना स्कूल बैग पैक न करने देना उस समय हानिरहित लग सकता है, लेकिन यह अनहेल्दी आदतों की शुरुआत कर सकता है, जहां महत्वपूर्ण जिम्मेदारियों को अनदेखा कर दिया जाता है।

हमेशा ना कहने का क्या मतलब है
हमेशा न कहने का मतलब सख्त होना नहीं है, यह उन सीमाओं को निर्धारित करने के बारे में है जो बच्चों को अनुशासन, जिम्मेदारी और संतुलन सीखने में मदद करती हैं। कभी-कभी, नरमी लेकिन दृढ़ता से नो कहना बेहतर विकल्प होता है, भले ही उस समय यह असहज लगे, लेकिन यह बच्चों को सिखाता है कि वे जो चाहते हैं वह हमेशा संभव या उनके लिए अच्छा नहीं होता है।

पॉजिटिव भाषा यूज करें
सीधे नहीं कहने की जगह सकारात्मक शब्दों का प्रयोग करें। उदाहरण के लिए, भागो मत कहने के बजाय, कहें, आराम से चलो। इसी तरह, शोर मत करो की जगह कह सकते हैं, धीमी आवाज में बात करो। सकारात्मक भाषा बच्चों को निर्देशों का पालन करने के लिए प्रेरित करती है और उनके व्यवहार में सुधार लाने में मदद करती है।

शांत रहें
कभी-कभी नहीं कहने के बजाय बच्चे को शांत और प्यार भरे लहजे में समझाना अधिक फायदेमंद होता है। उदाहरण के लिए, कहें, अभी यह काम करना ठीक नहीं है, लेकिन हम इसे बाद में कर सकते हैं। ऐसा कहने से बच्चे को यह महसूस नहीं होता कि आप उसकी बातों को अनदेखा कर रहे हैं।

Share This Article